सोमवार, 19 अप्रैल 2010

बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता

गतांक से आगे -

केवल तन ही नहीं "प्रभु" ने, अतिशय कृपा कर, हमें मन, बुद्धि, अहंकार आदि अन्य सुविधाओं से भी अलंकृत किया.जिसका प्रदर्शन हम आजीवन करते रहते हैं .इसके अतिरिक्त उनकी सबसे महान कृपा जो हम सब को यथा समय प्राप्त होती है वह है सद्गुरु मिलन.

तुलसी के शब्दों में "बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिं संता" . इस प्रकार हरि कृपा से संतों के दर्शन होते हैं . सत्संगों से साधना प्रेरित होती है और अन्ततोगत्वा सच्चे साधकों को, प्रभु की कृपा से, सद्गुरु मिल ही जाता है और "गुरु पद पंकज सेवा " करके उन्हें "नवधा भक्ति" का एक और लक्ष्य प्राप्त हो जाता है.

देखा सच्चे साधकों पर कितनी कृपा करते हैं "भगवान्" ! अब तो केवल एक यही आरजू है की प्रभु हमें सच्चा साधक बनाएं . आइये हम समवेत स्वरों में, श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के शब्दों पर आधारित यह प्रार्थना प्रभु के श्री चरणों पर अर्पित करें : -

"हे प्रभु मुझको दीजिये अपनी लगन अपार
अपना निश्चय अटल और अपना अतुल्य प्यार .

शरणागत जन जान कर मंगल करिए दान
नमो नमो भगवान तू मंगल-दयानिधान "

1 टिप्पणी:

suresh goyal ने कहा…

Prabhu kripa se hi sad guru milate hain aur sad guru ki kripa se prabhu darshan / sakshatakaar ho jata hai.