शनिवार, 1 मई 2010

"कृपा" प्राप्ति के साधन

गतांक से आगे

"प्रभु-कृपा" प्राप्ति के साधन

"सत्संग" से जगती है साधक में "कृपाप्राप्ति" की तीव्रतम अभिलाषा और उसके साथ ही उदय होता है उसकी पूर्ति के लिए एक शुभसंकल्प. यह है प्रभु-कृपा-प्राप्ति की "साधना " का प्रथम सोपान. इस संकल्प की पूर्ति के लिए दूसरा सोपान है , गुरुजन के आदेशानुसार धर्ममय जीवन जीना. व्यक्ति यदि ऐसा कर पाए तो वह निश्चित ही कृपाप्राप्ति का अधिकारी बन जाता है.

इस सन्दर्भ में और किसी का दृष्टांत क्या देना. आज निर्भयतासे अपनी ही कहानी सुना देता हूँ.

सत्संगों का क्रम हमारे जीवन में जन्म से ही चल पडा था गुरुजनों के आदेशों का पालन शायद अपने माता पिता की पुन्यायी जनित संस्कारवश, आजीवन होता रहा.

शैशव में अम्मा (प्रथम गुरु)की गोद में सीखा "प्रेम" और "करुणा" का पाठ. बालपन में उन्ही ने बताई "सत्य" की महिमा, हमे सत्य हरिश्चंद्र की करुण कहानी सुना कर और फिर प्रति पूर्णमासी मोहल्ले में कहीं न कहीं होने वाली "भगवान सत्यनारायण" की कथा" सुनकर (जहाँ हम तब केवल प्रसाद प्राप्ति हेतु जाते थे) हमने जाना, असत्य बोलने का परिणाम. झूठों को शतानंद के समान कष्ट झेलने पड़ते हैं. इस भय ने हमारा सत्य प्रेम और दृढ कर दिया.

प्रेम ही नहीं वह करुणा की भी साकार मूर्ति थीं. प्रियजन, अपने बच्चों को तो सभी माताएं प्यार करतीं हैं. लेकिन हमारी अम्मा तो घर में काम करने वाले नौकरचाकर और आसपास के निर्धन और अनाथ बच्चों पर जितना प्यार लुटातीं थी आज कल की बहुत माताएं अपने बच्चों को उतना प्यार नही दे पाती.

मुझे १९३४ की याद है. कभी कभी अम्मा घर की जमादारिन की नन्ही सी बच्ची "मखनिया" को सर्दी के दिनों में स्वयं गरम पानी से नहलातीं धुलातीं थी और भूख लगने पर उसे चम्मच से दूध पिलाती थीं. यही नही वो हमारे निर्धन साधनहीन मित्रो की भीअक्सर हम से छुपा कर सब प्रकार की मदद करती रहती थीं.

इस प्रकार अम्मा के सिखावन से सत्य, प्रेम और करुना का समावेश हमारे जीवन में हुआ और प्रभु कृपा प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ.


क्रमश:

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सर जी, आपके संस्मरण एवं भजन "दाता राम दिए ही जाता..." वाकई
में बहुत शानदार और गहरा अर्थ लिए हुए हैं... मैंने भी अपने जीवन में श्री महावीर हनुमानजी महाराज की कृपा का अनुभव किया है और सतत अनुभव कर रहा हूँ..उनकी कृपा का बखान करना सूरज को दिया दिखाने जैसा है और सियाराम भक्त की कृपा अनंत है...सदैव उनकी कृपा बनी रहे हम सब पर.. आपका ब्लॉग पहली बार पढ़ा..अच्छा लगा सर.. और श्री महावीर के नाम से बना देख कर मै यहाँ ठहर गया...
सर, आपके लेखों से आपके अनुभवों का प्रकाश भी हम तक पंहुचा..
धन्यवाद जी!
जय बाबा की ! संदीप जैन, इंदौर, भारत.

Bhola-Krishna ने कहा…

प्रियवर संदीप जैन जी , राम राम , सच कहा है आपने ! "उनकी "कृपा बिना कुछ भी कर पाना असंभव है ! मुझे तो ---

हाथ पकड़ कर लिखवाते हैं"वह",मै लिखता जाता हूँ
राग छेड़ते हैं "वह" जो मैं , उन्हीं सुरों पर गाता हूँ

साठ वर्ष तक "उनकी" इच्छा से मैंने "रैदासी" की
अब "उनकी" आज्ञां से ही मैं अपनी कथा सुनाता हूँ

भैया , सूर ने कहा है :
सब कोउ कहत गुलाम श्याम को , सुनत सिरात हियो
सूरदास प्रभु जू को चेरो जूठन खाय जियो
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और आज मैं सगर्व कहता हूँ :
भोला लिपिक "राम" का लिखता वह जो राम लिखावे
ऐसा "अफसर" पाकर वह फिर और कहीं क्यों जावे ?
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जय श्री राम ,

Smart Indian ने कहा…

अम्मा के बारे में पढकर मन प्रसन्न हुआ. आभार!