सोमवार, 28 जून 2010

FAITH & SURRENDER win HIS GRACE

जनम दिया जिसने तुझे ,जो पल पल रहा सभार -
नहीं     तजेगा   वह   तुझे   भव  सागर  में   ड़ार .


निज  अनुभव - साउथ अमेरिकन पोस्टिंग 




हिंद महासागर से अतलांतिक की गोद में लहराते , नील वर्ण उत्तुंग तरंगो वाले करेबियन सागर तट तक की यात्रा जिस हरि की शुभेच्छा से हुई , वह कृपालु पालनहार प्रभु हमें  और हमारे परिवार को अवश्य कोई विशेष लाभ दिलाने के लिए ही इस देश में  यहाँ लाया है. हमें  लाभ ही लाभ होगा ,हमारा कोई अनर्थ नहीं हो सकता  .हमें  इस का पूरा भरोसा था.


तुलसी दास जी का  एक सूत्रात्मक कथन है " चाहे भौतिक जगत की बात हो अथवा आध्यात्मिक  जगत की,,बिना विश्वास के सिद्धि नहीं मिलती और ऐसा विश्वास केवल हरि भजन से ही उपलब्ध होगा ."

कवनिऊ सिद्धि क़ि बिनु बिस्वासा ,
बिनु हरि भजन न भव भय नासा . 

सांसारिक जीवन में वस्तु,व्यक्ति,परिस्थिति,पर विश्वास रखना अभीष्ट है इससे मन और बुद्धि को बल मिलता है ,चिंता मिटती है और आत्म शक्ति प्रबल होती है. सद्गुरु तथा परमात्मा पर अटूट भरोसा रखने वालों को  सफलता और प्रसन्नता का प्रसाद मिलता  है  प्रभु कृपा पर ,मेरा निजी विश्वास और मुझसे कहीं अधिक मेरी धर्मपत्नी कृष्णाजी और हमारे पाँचो बच्चों का भरोसा ही था जो उन दिनों हमारा संबल था .प्रियजन .जानते हैं कहां से ऐसा आत्मबल ह्म सब को मिला था. हमे यह अडिग विश्वास हमारी दैनिक  प्रार्थना से प्राप्त हुआ था.नित्य प्रति ह्म अपने अधिष्ठान के सन्मुख बैठ कर प्रार्थना करते थे क़ि " हे देवाधिदेव हमे ऎसी बुद्धि और शक्ति दो क़ि ह्म अपना कर्तव्य पालन लगन उत्साह और प्रसन्न चित्त से करते रहें. मुझसे कोई ऐसा कर्म न हो जो मेरे विवेक के विरुद्ध हो. " हमारे बच्चे (जो तब ८ से १६ वर्ष के थे) यह प्रार्थना उस दिन से  बोल रहे  थे जिस दिन से उन्होंने बोलना शुरू किया था. जन्म से ही यह प्रार्थना करते करते इसमें निहित सूत्र , उनके हर कर्म में जीवंत था.


हमारी यह प्रार्थना हमारे उन वेस्ट इंडियन भारतीयों को इतनी भायी क़ि केवल यही प्रार्थना सुनने और हमारे साथ मिल कर इसका उच्चारण करने के लोभ से (जैसा वे जोर जोर से कहते थे) वे दोनों सपरिवार हमारे साथ बैठ कर सत्संग करने को सदा ही उत्सुक रहते थे.


शेष अगले अंकों में 


निवेदक:- व्ही  एन  श्रीवास्तव  "भोला".

कोई टिप्पणी नहीं: