शुक्रवार, 25 जून 2010

LOVE-DEVOTION -BLISS

प्रेम-भक्ति-परमानन्द
निज अनुभव (अमेरिकन पोस्टिंग)


प्रियजन अब तक ह्मने अपने साऊथ अमेरिका के जो अनुभव बताये वह केवल भौतिक उपलब्धियों के विषय में थे जो भारतीय आध्यात्म की दृष्टि में निम्न कोटि की जानी जाती हैं. हमारी भौतिक प्रगति केवल हमारे सांसारिक सुख-समृद्धि की बृद्धि की द्योतक है. इससे अधिक और  कुछ नहीं.


हमे यह दुर्लभ मानव जन्म  इसलिए नही मिला  क़ि ह्म केवल धन संचय करें और ऐशो आराम में यह अनमोल जीवन रत्न लुटा कर ,खाली हाथ वापस चले जाएँ . इस जीवन में हमे ऎसी कमाई करनी चाहिए जिसके सहारे ह्म भौतिक सुख के साथ आत्मिक आनंद उठा सकें और अपना अगला जन्म भी संवार सकें. 


तुलसी कृत राम चरित मानस में ,मर्यादा पुरुषोत्तम अयोध्या नरेश श्री राम ने  प्रजाजनों को संबोधित करते हुए उन्हें मानव जन्म  का विशेष उद्देश्य इस प्रकार बताया :


एही तन को फल विषय न भाई  . स्वर्गउ   स्वल्प  अंत  दुखदाई.
नर तनु पाई विषय  मन   देहीं .   पलटी   सुधा ते शठ  विष लेहीं  
जो  परलोक   इहाँ   सुख चहहू .  सुनु मम वचन हृदय दृढ गहऊ
बैर  न विग्रह आस न त्रासा         .सुखमय ताहि  सदा सब आसा .
प्रीति सदा सज्जन संसर्गा           तृण सम बिषय स्वर्ग अपबर्गा
भक्ति सुतन्त्र सकल सुख खानी.  बिनु सत्संग  न  पावहीं प्रानी  



"प्रेम की पराकाष्ठा है भक्ति". सब प्राणियों का जीवन प्रेममय हो . सब एक दूसरे से ऐसा व्यवहार करे जिसमे न किसी से द्वेष हो न शत्रुता ;न किसी से कोई अपेक्षा हो न कोई दुराशा. सब को सभी प्राणी निजी संबंधियों के समान प्रिय लगने लगें. समस्त सृष्टि आनंदमयी  हो जायेगी. .


अस्तु आइए ह्म भी सांसारिक सुख सम्पदाओं और विषय भोगों का विष त्याग कर अब सत्संग का प्रेमामृत पान करें और सकल मंगलाकारिणी "भक्ति" तथा परमानन्द के अधिकारी बन जाएँ.


प्रियजन.  हमारा यह साऊथ अमेरिकन प्रवास अनेकानेक ऎसी चमत्कारिक घटनाओं से भरा हुआ है जिनमे सत्संगो के प्रसाद स्वरूप मिली भक्ति की शक्ति ने हमे भयंकर संकटों से उबारा और कितनी ऎसी उपलब्धियां प्रदान कीं जिन्हें ह्म साधारण स्थिति में कभी नहीं पा सकते थे..


धीरे धीरे सब बताउंगा ,थोड़ी प्रतीक्षा और कर लें..


निवेदक: व्ही एन श्रीवास्तव  "भोला"

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