सोमवार, 12 जुलाई 2010

SRI MAA ANANDAMAYIs GRACE


श्री श्री माँ आनंदमयी की कृपा 

गतांक से आगे 


प्रियजन , मैं तो मानता ही हूँ ,आपको भी मानना  पड़ेगा क़ी मुझेअनायास ही प्राप्त हुई श्री श्री माँ  आनंदमयी क़ी कृपा का दर्शन मेरी किसी साधना के कारण नहीं  मिला था. सच तो  यह है क़ी मैंने ऎसी कोई तपश्चर्या   इस जीवन में की ही नही  थी जिसके फलस्वरूप मुझे इतना- रोमांचक, इतना मधुर एहसास इतनी सरलता से मिलता.. मुझे जो कुछ भी मिला वह केवळ-केवळ हरि कृपा से ही मिला  तुलसीकृत रामचरितमानस में विभीषण का यह कथन कितना सत्य  है :- 


अब   मोहि भा  भरोस  हनुमंता 
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता 


चलिए आपको बता ही दूँ क़ी प्रभु ने क्या क्या  जुगाड़ किये मुझे उस दिन यथा समय माँ के सत्संग में पहुँचने के लिए.भाई मैं तो जानता भी नहीं था क़ी माँ का सत्संग हमारे निवासस्थान के बहुत करीब अंधेरी ईस्ट में ही हो रहा है पर उस दिन बात कुछ  ऎसी हुई क़ी इत्तेफाक से हमारे एक बंगाली कुलीग कोल्कता से टूर पर हमारे दफ्तर में आ गये लंच के समय ही उन्होंने एलान किया क़ी वह लंच के बाद किसी सरकारी कार्य से बाहर जायेंगे.मैं दफ्तर का अध्यक्ष था अस्तु  .उन्होंने मुझे कोंफिदेंस में लेकर बता दिया क़ी वह सरकारी काम के बहाने टूर बना कर माँ आनंदमयी के साधना सत्संग में शामिल होने को आये हैं.(भारत के सरकारी अफसर,अक्सर एक पन्थ दो काज कर लेते हैं"  हाँ ओंन ड्यूटी होने के कारण वह कानूनन स्टाफ कार का  इस्तेमाल कर सकते थे.अस्तु गाड़ी में बैठ कर वह सर्किट हाउस होते हुए सत्संग में जाने का.कार्यक्रम बना कर दफ्तर से निकल गये. 


न जाने किस प्रेरणा से उसी समय ह्म ने भी मन बना लिया क़ी ह्म भी आज माँ का दर्शन करेंगे. अस्तु .ह्म लोकल ट्रेन से अपना वही हज़ारों कागज़ पर साइन करने वाला दिन भर का काम निपटा कर चल पड़े और फटा फट घर पहुँच गये. तब तक  धर्म पत्नी और पाँचो बच्चे भी अपने अपने दैनिक कार्य निपटा कर घर पहुँच चुके थे.पूरा परिवार यह जान कर क़ी किसी सत्संग में जाना है बहुत उत्साहित था.जल्दी ही ह्म सब ,अपने ताम-झाम के साथ सज धज कर उस पंडाल के बाहर पहुँच गये  जिसमे  श्री श्री माँ का आगमन कुछ समय में होने को था. पंडाल खचाखच भरा हुआ था, बैठने की कौन कहे  कहीं तिल रखने की जगह नहीं थी. ह्म सातो प्रानी इस दरवाज़े से उस दरवाजे दौड़ लगा रहे थे ,क़ी कोई पहचाना व्यक्ति मिल जाये.कहीं किसी कोने बैठने की जगह बता दे हमारे  .कोल्कता वाले कोलीग मोशाई भी दिखाई दिए लेकिन वह भी हमारी अनदेखी करके बगल से गुजर गये..


शेष अगले अंक में.


निवेदक: व्ही. एन.  श्रीवास्तव "भोला"

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