शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

SRI SRI MAA AANANDMAYII

श्री श्री माँ आनंदमयी का संदेश  

(माँ का चिन्तन - निवेदक के शब्दों में)

पिताजी ,सबसे पहले आपसे एक प्रार्थना करूंगी,क़ि आप हमे "माँ" कह कर न पुकारें . मैं आपकी बच्ची हूँ.आप सब मेरे माता पिता हैं. कृपया,आप सदा ही  मुझे अपनी अबोध नन्ही बालिका के स्वरूप में  स्वीकारिये .मुझे  "माँ  माँ" क़ह कर,  देवी बना कर ,सोना-चांदी-या संगमरमर में गढ़वाकर, किसी मन्दिर में स्थापित कर ,ताले- कुंजी से बंद करके अपने से दूर न कर दीजिये. इस बच्ची को आपकी देख रेख ,आपका प्यार और आशीर्वाद चाहिए. मैं  प्रार्थना करती हूँ मुझे अपने हृदय मन्दिर में थोड़ा स्थान दीजिये.और मुझे वहीं से सेवा करने का अवसर दीजिये. पिताजी आज आपके प्रश्नों के उत्तर देने से पहले   स्पष्ट कर दूँ क़ि मेरा यह शरीर इस मानव जीवन में,जो थोड़ा बहुत स्वयं समझ पाया है उसके आधार पर वह आप लोगो की शंका का समाधान करेगा

.समस्त भव रोगों से मुक्ति की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम:उस सर्वशक्तिमान परमात्मा पर अखंड विश्वास रक्खे (TRUST HIM) और उस परम  को ही अपना एकमात्र हितकारी और शुभचिंतकजानें     

  •  यह विश्वास दृढ़ बनाये रक्खे क़ि हमारे जीवन में जो कुछ हुआ ,जो हो रहा है और जो कुछ भी भविष्य में होने वाला है वह सब उस परमपिता की इच्छा और कृपा से ही हो रहा है
  • हम जो भी करें वह प्रभु की सेवा समझ कर करें.
  • जितना बन पाए,अधिक से अधिक सत्संग करें.
  •  प्रभु का सुमिरन सदा  करें
  • सदा प्रभु को अपने अंग संग बनाये रखें .
  • अपना समस्त भार प्रभु का सौंप दें .
  •  प्रभु केवल हमारे माता पिता ही नहीं ,वह हमारे सर्वस्व हैं.
  • तुम मानो या न मानो पर वह जानते हैं क़ि तुम केवल उनके ही हो
  • .वह इस सृष्टि  के कण कण से झांक कर तुम्हारे समक्ष अपने आपको ज़ाहिर करते हैं पर तुम उन्हें पहचान नहीं पाते.  ,इसलिए पहले मन में उन्हें पहचान पाने की तीव्र इच्छा जगाओ ,फिर एक दिन उनकी कृपा होगी और तुम न केवल उन्हें जान जाओगे तुम उन्हें पहचान भी लोगे .
  • इस प्रकार तुम जान जाओगे क़ि इस सृष्टि के कण कण में हम सब का एकमात्र हितैषी और शुभ चिंतक सर्वशक्तिमान ,करुनानिधान प्रभु स्वयं व्याप्त है.
  • तुम्हारा अज्ञान मिट जायेगा."THUS THE VEIL OF IGNORANCE WILL VANISH "
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क्रमश;"माँ का चिंतन " अगले संदेशों में
निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"

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