रविवार, 8 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPI SOOR

हनुमत कृपा - निज अनुभव
गतांक से आगे 

"उनका" आदेश है क़ी आत्म कथा के अन्तिम छोर से "कृपा" के दृष्टांत प्रस्तुत करूं.और मैं वैसा ही कर रहा हूँ. समस्या यह है क़ी इस अंतिम पडाव में मुझे अपने आस पास ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है जो "उनकी" कृपा के बिना मुझे प्राप्त हुआ हो .मुझे ऐसा लग रहा है क़ी मेरी हरेक सांस मेरे  हृदय की प्रत्येक धडकन ,मेरा रोम रोम ,मेरी  शिराओं में प्रवाहित रक्त की एक एक बूंद ,जो कुछ भी इस समय मेरे पास है वह सब ही "उनका"" कृपा प्रसाद है. यह खुलासा हो जाने के बाद मुझे आगे और कुछ बयान करने की ज़रूरत ही नही है.गुरुजन की सिखायी निम्नांकित प्रार्थना का गहन तत्व मुझे अब ,इस उम्र में समझ में आ रहा है :


तन है तेरा ,मन है तेरा 
प्राण है तेरे,जीवन तेरा 
सब हैं  तेरे ,सब है तेरा 
मैं  हूँ तेरा ,  तू   है मेरा 

प्रियजन,ऐसा न समझिये क़ी इष्ट देव ने हमे उपरोक्त तन,मन,जीवन के अतिरिक्त ,अन्य कोई सांसारिक उपभोग की सामग्री प्रदान ही नही की .असल में मैं यदि सोचने बैठूं क़ी "उन्होंने" कौन सी भौतिक सुविधा हमे नहीं दी तो सुनिए, मैं आपको ऎसी एक भी वस्तु का नाम नहीं बता पाउँगा क़ी जिसकी  मुझे ज़रूरत है और वह मेरे पास नहीं है. इससे अधिक किसी को और क्या चाहिए.?

अब तो सोचना यह है क़ी मैं क्या था, और अपने इष्ट की कृपा से  अभी क्या हूँ तथा अन्ततोगत्वा क्या होना चाहता  हूँ. यह चिंता छोड़ दो क़ी मैं क्यों, बिल गेटस के समान अरबपति , अशोक कुमार, दिलीप कुमार या देवानंद सा हीरो,अथवा मुकेश,रफी साहेब या ग़ुलामअली के समान गायक नहीं बन पाया.

यह देखो क़ी अपनी प्रतिभा,चेष्टा,श्रम तथा कभी कभी अपनी आशाओं से  भी बेहतर फल तुम्हे मिले या नहीं ? प्रियजन  मैं जब अपना हिसाब करता हूँ, देखता हूँ क़ी मुझे  मेरे हर ओनेस्ट प्रयास का आशाओं से कहीं अच्छा फल  मिला हैं.

यह इष्ट की कृपा नहीं तो और क्या है? मैं अपने मुंह से अपनी भौतिक उपलब्धियां बताना उचित नह़ी समझता. .जैसे जैसे आत्म कथा आगे खिसकेगी ,यदि ऊपरवाले का आदेश हुआ अथवा वह प्रेरणा प्रदान करेंगे , सब बता दूंगा.

आज इतना ही, शेष अगले अंकों में.

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 
एंडोवर, (एम् ए)यू एस ए .दिनांक अगस्त ८, २०१० 

1 टिप्पणी:

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

आप अंग्रेज़ी शब्द पुष्टिकरण हटा लें।