शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

JAI JAI JAI KAPISOOR ( Aug.27,'10)

हनुमत कृपा-निज अनुभव 
गातांक से आगे 

लगभग ५० वर्ष पूर्व जब मैं तीस एक वर्ष का था तभी प्रभु की अहैतुकी कृपा का प्रत्यक्ष दर्शन मुझे हुआ.उन दिनों मैं भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक आयुध निर्माणी में कार्य करता था.तभी एक दिन प्रधानमंत्री नेहरू जी का एक बयान आया,उन्होंने बहुत  दुख़ी हो कर कहा था,"हमारी पीठ में ह्मारे पड़ोसी ने ही छुरा भोंक दिया " उस दिन से  ही ,भाई-भाई एक दूसरे के जानी दुश्मन हो गये.भारत में युद्ध की तैयारियां जोर शोर से चालू हो गयी आयुध निर्माणियां पुनः सजीव हो गयी.काम इतना बढ़ा क़ी युद्ध स्तर पर भर्ती भी  .चालू हुई, अफसर छुट्टी से वापस बुलाये जाने लगे. आयुध निर्माण  के लिए लाखों रूपये का कच्चा माल प्रति दिन खरीदा जाने लगा. 

उन दिनों मैं निर्माणी में, खरीदे जाने वाले एक विशेष कच्चे माल के निरीक्षण विभाग का अध्यक्ष था. इस विभाग में ऊपरी कमाई का बहुत स्कोप था. ह्म यदि चाहते तो  प्रति दिन इतनी कमाई कर लेते जितनी हमारी महीने भर की तनख्वाह थी.मुझसे सीनियर और जूनियर  सभी ऊपरी कमाई से परहेज़ नहीं करते थे.


अब यहाँ बताउंगा क़ी तब,प्यारे प्रभु ने मुझ पर कैसे ,कब और किस प्रकार कृपा की.

विश्वयुद्ध (२)  के बाद से ही सारी दुनिया एक भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रही थी भारत इससे अछूता न था. देश में आम जनता को दो जून खाने के भी लाले पड़े थे.ह्मारे जैसे सरकारी मुलाजिम कम वेतन मिलने के कारण बड़ी कठिनाई  से घर खर्च  चलाते थेऐसे में ऊपरी आमदनी के लालच से बचना असंभव था पर "उनकी" कृपा से ह्म इस लालच के दानव की मार से बच गये. कैसे?  बताता हूँ.

ह्म भी अभाव ग्रस्त थे.ह्म भी अपने बच्चों को  न वैसा खिला  सकते थे ,न वैसा पहना सकते थे जैसा क़ी चाहिए था. पर हमारी पत्नी और बच्चों ने इन सब अभावों को,हंस हंस कर झेला और हमे ऊपरी कमाई करने की आवश्यकता ही नही महसूस होने दी ...हमारे साथ के अफसरों के बच्चों को अच्छा खाते पहनते देख कर भी ह्मारे बच्चों ने कभी हमे अपनी चादर के बाहर पैर फ़ैलाने को मजबूर नहीं किया.प्रभु क़ी अनन्य कृपा से बच्चों के लालन पालन और शिक्षा दीक्षा में कोई कमी नहीं हुई और आज वे सब ही अति आनंदमय जीवन जी रहे हैं  प्रियजन !यह सब ही ह्मारे प्रियतम प्रभु की अहैतुकी कृपा के फलस्वरूप ही तो है.

इतना ही नहीं और बहुत कुछ हुआ इसी सन्दर्भ में जो आगे पेश करूंगा. अभी इतना ही.

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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