शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 170

सब हनुमत कृपा से ही क्यों ?
निज अनुभव 

हाँ सचमुच तब १९७५ में मुझे प्रभु की अहेतुकी कृपा पर ऐसा अटूट विश्वास नहीं था जितना  आज २०१० मे है ! उन दिनों शायद मुझे अपनी निजी क्षमताओं,सामर्थ्य, बुद्धि बल और पुरूषार्थ पर वैसा ही भरोसा एवं अहंकार रहा होग़ा जितना प्रभु की कृपा  से सद्गति पाने से पूर्व कदाचित पौराणिक काल मे गजराज को, त्रेता मे रावण को और द्वापर मे कंस और दुर्योधन को होगा ! प्रियजन! ऎसी स्थिति मे ही तो प्रभु का अवतरण होता है ! वह उन जैसे  निर्गुनियों को सुगति / सुमति प्रदान करने नंगे पाँव ही भाग कर आ जाते हैं !

विमान के उस पिचके हुए चक्के का ध्यान आते ही मन मे यह प्रश्न उठा ,क्या हमारी भी रक्षा करने "वह" आयेंगे ?  गजराज ने सरोवर में तैरता एक पुष्प अर्पण कर के उन्हें पुकारा था ,रावण और कंस  ने शत्रु भाव से ही सही उन्हें याद तो किया था ! प्रियजनों! सोचकर देखो क़ी ह्मने उनकी कौन सी ऎसी सेवा की है क़ी वह हमारी सहायता करें ?चलिए तुलसी का वह चमत्कारी दोहा याद करें जिसको सुन कर ह्म घर से निकले थे और जिसे ह्म उस विषम परिस्थिति में विमान पर बैठे बैठे ,अनेकों बार दुहरा रहे थे !उसकी प्रथम पंक्ति है 
"राम लखन कौसिक सहित सुमिरो करो पयान "  ह्मारे प्रश्न का उत्तर इसी में निहित है!उत्तर है क़ि - सुमिरो - स्मरण करो अपने इष्ट को (चाहे जिस नाम से उसे पुकारते हों ) सुमिरो अपने गुरुजन को (चाहे वह जो भी हों ) और फिर केवल मंगल ही मंगल होगा ! 
===========================================================
प्रियजन आप सोच रहे होंगे क़ी अंततः वह विमान उड़ा क़ि नहीं? और उड़ा भी तो उसका हश्र क्या हुआ ! तो सुनिए-रनवे पर निर्धारित दौड़ लगा कर विमान ,क्या कहते हैं उसे- "एयर बोर्न" हो गया ! सह्यात्रीयों ने तालियाँ बजा कर अपनी प्रसन्नता दर्शायी और फिर "He is a jolly good fellow , He is a jolly good fellow" गा गा कर हमे लन्दन के अपने विद्या अध्ययन  काल क़ी याद दिला दी जब कोच पर केम्ब्रिज ऑक्सफोर्ड क़ी सैर करने जाने पर कोच के ड्राईवर को "जोली गुड फेलो"कह कह कर विद्यार्थी ग्ण थोड़ी बहुत मनमानी कर लेते थे !  हाँ यहाँ वायु यान मे सहयात्रिओं के उस कोरस र्संगीत से हमे तो बड़ा लाभ हुआ !कम से कम उतनी देर के लिए ह्मारे कान विमान के बाहरी गम्भीर गर्जन और उसके भीतरी अंजर पंजर और ढीले ढाले पूजों से निकलने वाली भयंकर खडखडाहट सुनने की  सज़ा से ह्म कुछ देर को बच गये !

जहाज़ उड़ता रहा और लगभग घंटे भर मे हमे आकाश से ही वह नगर जहां हमें पहुचना था दिखायी भी देने लगा! अपनी खिडकी से ही हमे थोड़ी दूरी पर जंगलों के बीच एक धुंधली पगडंडी भी नजर आ रही थी जिसे सहयात्री उस एयर पोर्ट का रनवे बता रहे थे !

ह्म मन ही मन भगवान को धन्यवाद दे रहे थे क़ि हमारी यात्रा का सुखद अंत हो रहा था क़ि ह्मारे कप्तान साहेब की आवाज़ विमान  के पब्लिक एडरेस सिस्टम पर सुनायी पड़ी , वह बहुत घबराये हुए स्वर मे एलान कर रहे थे "Comrades ! We have arrived our destination and shall be landing in a few minutes but there being some problems in the aircraft we have to make an emergency landing.The air port is fully prepared to receive us.Kindly keep your seat belts fastened and do not panic. Thank you "

तब तक एयर पोर्ट और साफ़ नजर आने लगा था ! विमान की रफ्तार शून्य सी थी !वह बहुत धीरे धीरे उस कच्चे रनवे पर उतरने का प्रयास कर रहा था! उस छोटे से एयर पोर्ट मे रेड क्रोस के एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ घंटा और सायरन बजाते हुए बेतहासा इधर उधर दौड़ रहीं थीं !  ह्म क्या सोच रहे थे ,प्रियजन कुछ आपभी तो सोचो !

क्रमशः 
निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"


कोई टिप्पणी नहीं: