मंगलवार, 7 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR ( Sep.7,'10)


हनुमत कृपा -निज अनुभव 
गतांक  से आगे 

नाद बस ,एक ही ,गूँजा था तब , शिवालिक में, 
सुन रहे ,हैं जिसे ,साधक सभी,तब से अब तक                

श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के साधना स्थल ,डलहौज़ी  स्थित "परम  धाम" ,में, मैंने  एक चमत्कारिक अनुभव किया .वहाँ  मध्य रात्री में   "राम" नाम अनुरागी साधको के स्वर में स्वर मिलाये आकाश के पंछी भी बड़े लगन और उत्साह से राम धुन गाते थे केवल मैंने ही नहीं कृष्णा जी ने तथा अन्य साधको ने भी उस रात आकाश के पंछियों को वहाँ "राम राम"  प्रतिध्वनित करते हुए सुना..  

श्री  महाराज जी  द्वारा उद्घोषित इस तारक मन्त्र "राम" का उद्गम था वह "नाद स्वर" जो उन्होंने "परम धाम" में  एक मास की कठिन एकांत साधना करने के उपरांत  व्यास पूर्णिमा के दिन ,सात जूलाई १९२५  को वहाँ सुना था. महाराज जी ने अपना वह अनुभव इन शब्दों में अपने कुछ प्रिय शिष्यों को सुनाया था. :-

" मुझे उस स्थान पर साधना करते एक मास बीत गया . एक दिन जब मैं आँखे बंद किये   प्रार्थना कर रहा था ,मुझे " राम " शब्द बहुत ही सुंदर और आकर्षक स्वरों में सुनाई दिया मैंने समझा क़ि कोई प्राणी इधर उधर राम-नाम का उच्चारण कर रहा है.ऑंखें खोलीं तो दूर दूर तक कोई दृष्टिगोचर नहीं हुआ . फिर आँखें बंद की तो उसी  मधुर स्वर में पुनः वही  "राम","राम" सुनाई दिया ,साथ ही आदेश "राम भज ,राम भज ,राम-राम

महाराज जी ने ज्योतिस्वरूप राम नाम के अवतरण के विषय में अपने श्रीमुख से अन्यत्र यह कहा " मेरे प्रार्थना करने पर वह शब्द जब पुनः आया  फिर दर्शन की मांग करने पर यह प्रश्न उठा " किस रूप का दर्शन चाहते हो ?" मैंने कहा ,  " जो तेरा रूप हो मैं क्या बताऊँ  ?  तब यह "रा" और "म" अक्षर्मयी "राम" रूप का तेजोमयी दर्शन हुआ."

ज्योतिर्मय  जगदीश  हे ,   तेजोमय   अपार ,
परम पुरुष पावन परम ,तुझको हो नमस्कार  
 . 
बंद  आखों  से  मुझे तब  इष्ट  के दर्शन हुए ,
नूर वह देखा जिसे देखा न था हमने तबतक 

प्रियजन  मेरी बंद आँखों के आगे उस भव्य मंदिर का विशाल द्वार अभी भी खुला हैऔर मैं उसमे प्रवेश पाने का प्रयास कर रहा हूँ. अब तो कलही पता चलेगा क़ि आगे क्या हुआ.

निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला".


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