शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep18,' 10)

 - श्रुति - दर्शन 
प्रियजनों ! मैने अपनी हर सांसारिक और आध्यात्मिक उपलब्धि को "हनुमत कृपा" की संज्ञा क्यो दी ? मैने संदेशो की यह नयी श्रंखला कल से ही चालू की है और मैं आगे बढनेके लिये अपने इष्ट की हरी  झन्डी और उनकी ओर से नूतन प्रेरणा पाने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ !इसबीच मुझे एक महात्मा की वाणी सहसा ही सुनायी  दी
यह महापुरुष ,अस्पतालमें ,अचेत अवस्था  में  मेरी बंद आँखो को जो 'दिव्य -प्रकाश'    "दीखा  था और मेरे कानों को जिस सुमधुर "श्रुति" का श्रवण हुआ था ,बिलकुल कुछ  वैसे ही अनुभवों के विषय में  आध्यामिक प्रवचन दे रहे थे।उन्होने कहा कि संसार में  असंख्य साधको ने ध्यानावस्था में  ऐसे सुन्दर प्रकाश पुन्ज के दर्शन किये है। लाखों ने ही ऐसे -बिल्कुल सफ़ेद,चान्दी की तरह चमकीले , आँखो को चकाचौंध कर देने वाले रोशनी के गोले देखे हैं !
उन्होंने बताया क़ि किसी अमेरिकन आध्यात्मिक विषयों के शोध कर्ता ने अनेको ऐसे अनुभवी साधको से साक्षात्कार किया जिन्हें ध्यानावस्था में ऐसा प्रकाश दिखायी दिया था ! उन्होंने यह देखा कि उन साधको में  से लगभग पचास प्रतिशत ऐसे थे जो प्रकाश के उस दिव्य सौन्दर्य से ऐसे सम्मोहित हुए कि उस पर से नज़र हटा पाना उनके लिये मृत्यु को आलिंगन करने जैसा लगा।  उस सुन्दर दृश्य को वह किसी भी कीमत पर अपनी आँखो से दूर नहीं  करना चाहते थे।
प्रियजन ! अचेतन अवस्था में  वह आद्वतीय सुन्दरता देखने के बाद मै भी इतना संम्मोहित हो गया था कि उस निन्द्रा से जागना ही नहीं  चाहता था।मेरा अन्तर जिस परमानन्द का रसास्वादन कर रहा था ,उसके आगे स्थूल जगत का रूप इतना फ़ीका और रसहीन लग रहा था कि उसकी ओर देखने को भी जी नहीं  चाहता था! उससे किसी प्रकार की आनन्द प्राप्ति की आशा रखने का तो कोई सवाल ही नहीं   !


उन महापुरुष ने ये भी बताया कि उस अमरीकी शोधकर्ता के अनुसार उन पचास प्रतिशत अनुभवी साधको में  से बीस प्रतिशत ऐसे थे जिनका जीवन दर्शन ,उस अद्भुत "ज्योति - श्रुति -अनुभव"  के बाद बिल्कुल ही बदल गया। उनकी चाल ढाल,उनका रहन सहन,उनका काम काज - व्यवसाय, उनका खान पान सब कुछ  ही बदल गया। मुझे 
भी याद आ रहा है कि अचेतावस्था के उस अनुभव के बाद जब मैं उठा तो मुझे  ऐसा लगा जैसे मै अब वह व्यक्ति ही नहीं  हूँ जो मैं रुग्नावस्था से पहले था। 
द्वार् बन्द हो जाने के कारण मै "परम-धाम" में  प्रवेश नहीं  कर पाया और ,"उनके" कहे अनुसार यात्रा समाप्त करते करते मैं,पुनः यात्रा शुरू करने को मजबूर हो गया! मैंस्वस्थ   हो जाने के बाद ,बहुत दिनो तक अपने स्वजनो  से  कहता रहा कि " "परमधाम" के स्वामी "उन्होने" मुझे द्वार से ही वापस कर दिया पर यह नहीं बताया क़ि मेरे  नये जीवन मे अब "वह" मुझसे नया क्या करवाना चाहते हैं?"" 
प्रियजन ! आज उन महापुरुष के प्रवचन से ज्ञान प्राप्त करके मैने जो लिखा उसे अपने इष्टदेव से मिली "प्रेरणा" ही मानता हूँ । हाँ एक बात और है , मै उस अमरीकी शोधकर्ता के उन दस प्रतिशत अनुभवी साधको में  शामिल हो गया हूँ जिनका जीवन उस विलक्षन "ज्योति-श्रुति" दर्शन के बाद एकदम बदल गया ! कदाचित् आपको भी मेरे जीवन का यह् बदलाव नज़र आया होगा। 




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