रविवार, 19 सितंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR(Sep.20,10)



सब हनुमत् कृपा से ही क्यों ? 
गतान्क से आगे




सूरदासजी का एकअति भाव भरा पद है 
जिसे हम सब हरबंसभवन, बलिया (यू पी) कानपुर शाखा के इत उत,देश विदेश मे बिखरे हुए रत्न सरीखे वन्शज पिछले कितने दशको से आज तक अत्यन्त श्रद्धा के साथ गाते आ रहे है। यह पद हमें इसलिये प्रिय है क्योंकि इस पद मे  हमारी वास्तविक मनः    स्थिति व्यक्त है कि श्री हनुमत् जी की कृपाके अलावा 
जीवन मे हमारा कोई अन्य अवलम्ब है ही नहीं।   
आप भी सुनिये :-

तुम तजि और कौन पै जाऊ !
काके द्वार जाय सिर नाऊँ ,पर हाथ कहां  बिकाऊँ !!
(Where else can we go ,if you discard us -O Lord !,We see no other door to knock and no buyer capable to buy us.) 

ऐसो को दाता है समरथ जाके दिये अघाऊँ ! 
अन्त काल तुमिरो सुमिरन गति अनत कहूँ नहि पाऊँ!!
(Tell me O Lord! Who else is as generous as you are to quench our thirst of desires, specially the one to attain salvation ? while we know we can get मोक्ष simply by uttering your NAME once only before our soul moves out of our mortal body )

भव सागर अति देख भयानक मन में अधिक डेराऊँ! 
कीजे कृपा सुमिर अपनो पन "सूरदास" बलिजाऊं!!
(Looking to the fierce and turbulant ocean of life we are very scared and we pray that ,O Savior Lord ! Do Recall Your words "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत " Please  Be kind & Merciful on SURDAS who has surrendered himself wholly to YOUR HOLY FEET.)

वहा हरबंस भवन बलिया मे नित्य प्रातः काल हमारे परिवार का कोई न कोई सदस्य श्री महाबीर जी की ध्वजा के नीचे विधिपूर्वक हनुमान जी की आराधना करता है और या तो स्वयं जोर जोर से श्री हनुमान चालीसा का पाठ करता है या ज़ोरदार आवाज़ के साथ चालीसा का टेप या ग्रामाफोंन रेकोर्ड बजाता है जिसके स्वर हरबंस भवन मे चौबीसों घंटे गूंजते रहते  है और वहा के निवासियों को धर्मयुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देते है! 

परिवार के अन्य केन्द्रों (कानपुर ,इलाहाबाद,मैनपुरी और आजकल तो मुम्बयी ,दिल्ली , चेन्नयी ,नोयडा ,दुबई, हंगरी और यहाँ यू.एस.ए. में मेसेच्युटिस्ट के बोस्टन - ब्रूकलाइन और एंडोवर  मे भी हमारे परिवार के सभी स्वजन श्री हनुमान जी की अहेतुकी कृपा के संबल से ही जीवन का आनंद लूट रहे है! हमे पूरा विश्वास है क़ी सब केन्द्रों मे श्री हनुमान चालीसा का पाठ उतने ही उत्साह और विश्वास के साथ नित्य प्रति होता होगा !  

प्रियजन, यह न सोचिये क़ी मैं अपनी मर्जी से निज अनुभव की कहानी सुनाने मे विलम्ब कर रहा हूँ ! मैं तो उनकी मर्ज़ी से चल रहा हूं अपनी शिकायत उनसे ही करिए! 
मुझे क्षमा करें. कल जो लिखाएंगे लिख दूँगा 


निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

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