शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 9 1

हनुमत कृपा 
निज अनुभव 

गाजीपुर सिविल लाइन्स  में जिस कोठी के सामने दादाजी खड़े थे उसके फाटक के पुलिस बन्दोबस्त को देख कर यह लगता था कि वह अवश्य ही उस जिले के सबसे बड़े सरकारी अफसर का निवास स्थान है !आहाते के फाटक पर तैनात गन धारी सिपाही को देखते ही दादाजी के होश फाख्ता हो गये थे और उनके मन में नाना प्रकार की आशंकाएं एक साथ उठ खड़ी हुईं थीं ! दादाजी सोच रहे थे कि कल रात गर्म गर्म इमरतियों का प्रसाद खिला कर और ऊंचे ऊंचे ख्वाब दिखाकर उन बाबाजी ने फुसला बहला कर उन्हें उसी जगह पहुंचा दिया,जहां जाने के भय से वह घर द्वार छोड़कर भागे थे ! दादाजी यह समझ नही पा रहे  थे कि आगे उन्हें क्या करना चाहिए !

तभी दादाजी को आगंतुक द्वारा कही एक विशेष बात याद आई ! सम्हल कर वह प्रबल आत्मविश्वास  के साथ उस बंदूक धारी सिपाही की ओर बढ़े और उसे वास्तविक श्रद्धा से प्रणाम करने के बाद उससे धीरे से कहा कि वह कोठी की मालकिन से मिलना चाहते हैं !सिपाही खिलखिला कर हंसा और बोला " केकरा से मिलबा ? कौन मलकिन ? ई कौनों मरवाड़ी सेठ के कोठी ना हा भैया, ई कप्तान साहेब के कोठी हा ! इहाँ कौनो मलकिन मालिक ना बा ! इहाँ इन्ग्रेज़ साहिब बहादुर अपना मेंमसाहेब के साथे रहेलं , चला रस्ता छोडा !साहेब निकले के बाड़ें"(Whom will U like to see.? There is no "malkin" here This is the official residence of the district Police chief who lives here with his British wife, Give way ,the boss is to pass from here just now ) 

दरबान की यह बात सुन कर , दादाजी को लगा जैसे यह एक और भद्दा मजाक था जो वह  अनजाना आगंतुक उनसे कर गया !प्रियजन आप समझ सकते हैं ह्मारे दादाजी पर उस समय क्या गुजर रही होगी ! सिपाही ने धक्का देकर उन्हें एक किनारे खड़ा कर दिया ! घोड़े पर सवार अंग्रेज साहिब अपने लश्कर के साथ दादाजी के सामने से निकल गये !सिपाही ने जूता पटक कर  ज़ोरदार सलाम ठोका !दादाजी सडक के किनारे जमे खड़े रहे !

अपने साहेब के चले जाने के बाद सिपाहीजी ने फुर्सत की सांस ली ! दादाजी को छेड़ते हुए और उनका मजाक उड़ाते हुए उन्होंने उनसे कहा " अब मौक़ा है बाबू बतियाय लो गोरी मेंम साहेब से, अब्बे बिल्कुल अकेली बैठीं हैं " दरबान ने तो मजाक मे यह बात कही थी लेकिन दादाजी ने शाम वाले अजनबी आगंतुक के कथन को स्मरण कर के उससे प्रार्थना की क़ि वह किसी प्रकार भी उनकी भेंट मेंम साहेब से करवा ही दे ! दरबान कुछ देर को अन्दर गया और लौटने पर बोला !" जाओ बाबू मेंम साहेब से मिलि लेवो, ई मुंशी जी आपको भेंट कर्वाय  दीहें "! दादाजी मुंशी जी के साथ कोठी में दाखिल हो गये ! 

क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

  

कोई टिप्पणी नहीं: