सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 1 9 4

हनुमत कृपा 
निज अनुभव 

बचपन में अपनी प्यारी प्यारी ,पोपली (दंत मुक्ता हीन) मुखारविंद वाली ,गोरी गोरी दादी की गोदी में लेटे लेटे ,उनकी गुडगुडी की मधुर गुडगुड़ाहट के बीच ,मैंने जागते सोते,अपने पूर्वजों की ऎसी अनेकों कहानियाँ सुनीं थीं !थोड़ा बड़े होने पर ह्मारे बाबूजी ( पिताजी ) ने भी यही कहानियाँ वैसे ही दुहरा कर हमें सुनायीं ! भाषा में ,शब्दों का कुछ अन्तर रहा होगा कथा की मूल भावना में कोई भेद नहीं था !

दादी बाबूजी के सभी कथानकों में एक तथ्य समाहित था वह था यह कि एक अनजान व्यक्ति न जाने कहां से अचानक प्रगट होकर, विपत्ति के समय ह्मारे परिजनों की मदद  करके अंतर्ध्यान हो जाता था !मेरे निजी जीवन में भी ऐसा अनेकों बार हुआ !मैंने मेरे साथ घटी वह साउथ अमेरिका की घटना जिसमे संभावित हवायी हादसे में मेरी जीवन रक्षा हुई  तथा वहाँ के ही slaughter house में मेरे निजी तथा मेरे देश भारत के सम्मान-रक्षा वाली कथा मैंने हाल में ही आपको सुनाई है! 

बचपन से सुने इन कथानकों का प्रभाव मेरे मन पर इतना गहरा पड़ा था कि जीवन भर के लिए मेरा ऐसा विश्वास बन गया की प्रियतम प्रभु अपने प्रिय साधकों की संकट की घड़ी में उन्हें विपदा से उबारने के लिए उनके सद्गुरु के रूप में अथवा किसी अन्य सूक्ष्म रूप में अवतरित होकर उनके संकट निवारण के लिए सही दिशा निर्देश देते हैं और फिर जैसे अचानक प्रगट हुए थे वैसे ही अंतर्ध्यान भी हो जाते हैं !  


प्रियजन !केवल कुछ विशेष  व्यक्तियों पर ही नहीं अपितु , ह्मारे प्यारे प्रभु समस्त मानवता पर ही ऎसी कृपा करते हैं और सतत करते रहते हैं ! आवश्यकता यह है क़ि ह्म   
उनकी उस कृपा को पहचानें !


प्रपितामह (परदादा जी) क़ी जो कथा मैंने अभी तक सुनायी अक्षःर शः सत्य है ! पात्रों के वास्तविक नाम न जानने के कारण काल्पनिक नाम दिए गये हैं ! परदादा जी के जीवन में ऐसी घटना घटी थी !वह घर द्वार छोड़ कर भागे थे! उनके सन्मुख ,निर्जन में वह लकड़ी की खडाऊं पर खटर पटर करके चलने वाला अनजान विशालकाय व्यक्ति सचमुच कुछ समय के लिए प्रगट हुआ था ! उसने भूखे प्यासे दादाजी को मंगलवार का बिल्कुल वैसा ही प्रसाद  खिलाया जैसा बलिया में अपने घर के हनुमान जी पर दादाजी हर मंगलवार को चढाते थे ! उन्होंने दादाजी को उस ब्रिटिश अधिकारी की कोठी के गेट तक भेजा जिसकी न्यायप्रिय अंग्रेज पत्नी हर बुधवार को जनसाधारण से मिल कर उनके दुःख दर्द मिटाने का प्रयास करती थी और जैसा आपको विदित है उन विलायती मेमसाहिबा ने सचमुच दादाजी को हवालात में बंद होने से बचा लिया ! इस कथा की सबसे महत्वपूर्ण बात है क़ी उन विचित्र अनजान व्यक्ति को उस शाम से पहले या उसके बाद किसी ने भी कभी भी नहीं देखा !


क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"




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