मंगलवार, 9 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 4




हनुमत कृपा - अनुभव


पिताश्री के समक्ष उनके इष्टदेव महावीर जी ,साकार प्रगट हुए ! एक साधारण ग्रामीण के रूप  में  अवतरित हो कर उन्होंने उनका मार्ग दर्शन किया! उन्होंने वह अख़बार  भी  अति नाटकीय ढंग से उपलब्ध कराया जिसमें उस एकमात्र  विलायती सिलेबस वाले स्कूल का विज्ञापन  था जिसे पिताश्री ज्वाइन कर सकते थे !और उन्होंने पिताश्री को अभयदान देकरलगभग धकेल कर बड़े पिताश्री के पास भेजा! एकमात्र  उन देवपुरुष की मंत्रणा के कारण ही ह्मारे पिताश्री का जीवन संवरा ! हनुमत कृपा का यह अनुभव ह्मारे पिताश्री एवं ह्मारे समूचे परिवार के लिए अविस्मरनीय  है! - यहाँ यह मनन करने योग्य है क़ि मेरे समक्ष मेरे कुलदेवता साकार तो नहीं आये पर उनके शब्द मेरे पिताश्री की वाणी में सूक्ष्म रूप में  अवतरित होकर मेरा मार्ग दर्शन कर गये !जानते हैं प्रियजन पिताश्री ने अपने इष्ट देव श्रीहनुमान जी की प्रेरणा से मुझे वही मन्त्रणा दी जैसी "उन्होंने" पिताश्री को दी थी! पिताश्री ने मुझे बताया क़ि हनुमान जी के प्रतिरूप उन ग्रामीण बाबा जी ने उनसे क्या कहा था !










केवल इस जन्म के ही नहीं पिछले अनगिनत जन्मों के ह्मारे निजी और ह्मारे वंशजों के समाहित कर्मों एवं संस्कारों का मिश्रित फल ह्म अपने वर्तमान जीवन में अनुभव करते हैं !विभिन्न जन्मों में की कमायी के आधार पर सब प्राणियों को जीवन में विलग विलग कर्म करने पड़ते हैं! 

कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता !संसार मे जीवों  को अपने अपने प्रारब्धानुसार और विगत जन्मों की कमाई के आधार पर वर्तमान जन्म में  जीवन जीने के विभिन्न साधन सुविधाएँ प्राप्त होती हैं .!आवश्यक नहीं क़ि एक परिवार  में सभी प्राणी एक से गुणों अवगुणों के स्वामी हों ,एक से काम करें,एक सी कमाई करें !इसलिए वर्तमान काल में ,प्यारे प्रभु ,तुमसे जो कार्य करवाना चाहते हैं उसे सहर्ष स्वीकार कर ,उसे प्रभु का आदेश, प्रभु की सेवा मान कर अपनी पूरी योग्यता ,बल बुद्धि लगा कर करो! अन्तोगत्वा वह परम पुरुष, सर्व शक्तिमान तुम्हारा हाथ बटा कर तुम्हे सफलता प्रदान करवा देगा !


१९१५ में ह्मारे पिताश्री खानदानी लिखापढ़ी का पेशा छोड़ कर मिल कारखाने में "रंगरेज़" का काम करने जा रहे थे और १९५० में मैं 




अपने मन पसंद कार्य भजन गीत रचना गायन निदेशन और शिक्षण के सुवासित कलात्मक कार्यों से हटकर उसके बिल्कुल  विपरीत अतिदुर्गन्धमय  चर्मशोधन का कार्य करने जा रहा था !

एक २० वर्ष का होनहार  युवक जिसकी हिन्दी गीत रचनाएँ तब आकाशवाणी के प्रमुख कलाकारों द्वारा गायीं जाती थीं, जिसके प्रतिभाशाली शिष्य आकाशवाणी व फिल्मों के  नामी गायक बने ,एकाध फिल्मों एवं केसेट कम्पनियों के संगीत निदेशक भी बन गये वह युवक रोज़ी रोटी के चक्कर में  Leather Industry में Apprenticeship करने जा रहा था !     


इष्ट देव ने पिताश्री को हरी झंडी दिखायी थी और "उनकी" ही प्रेरणा से पिताश्री  ने मेरा मार्ग दर्शन किया !सद्गुरु और इष्टदेव की कृपा से पिताश्री Unpaid Apprentice से अपनी कम्पनी के Chairman cum Managing Director बने और मैं भी एक साधारण  Under Training Officer से Leather Expert to the Government of -----(a South American Country)  बना  तथा अन्तोगत्वा पिताश्री के समान ही मैं भी भारत के सबसे बड़े सरकारी     चर्म शोधन कारखाने का C.M.D बना ! प्यारे प्रभु की इस असीम कृपा के लिए उनसे केवल इतना ही कह सकता हूँ  


मेरे प्रभु "तेरे गुण उपकार का पा सकूं नहीं पार, 
रोम रोम कृतग्य हो करे सुधन्य पुकार "



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