सोमवार, 15 नवंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 1 9

हनुमत कृपा 
अनुभव  

है कृपा  बरसा  रहा जिस धरनि पर  हनुमान   
फिर भला उस खेत का हो क्यों नहीं कल्यान 


बलिया में हरवंश भवन के आँगन वाले हनुमान जी की ध्वजा तले बारह वर्ष तक की हुई भावभरी प्रार्थनाओं के फलस्वरुप हमारी अम्मा को  प्राप्त हुए "बड़े भैया" उनके लिए किसी अनमोल "मणि" से कम न थे ! सो जब बहुत प्यार उमड़ता था तब वह उन्हें बड़े दुलार से "मन्नीलाल" कह कर पुकारती  थीं ! इतना प्यार करतीं थीं अम्मा उनसे क़ि वह भैया से थोड़े समय का भी बिछोह सहन नहीं कर सकती थीं ! पर "ऊपरवाले" (Navigator) की योजना के अनुसार बड़े भैया को अम्मा से दूर जाना था ,वह बंबई गये और वहाँ श्री हनुमान जी की कृपा से उन्हें पहली कोशिश में ही सफलता भी मिल गयी !


अम्मा ने भैया को बंबई इस विश्वास से भेजा था क़ि वह उलटे पाँव वहाँ से लौट आएंगे !सब जानते थे क़ि वह घर की सुख सुविधा छोड़ कर बहुत दिन बाहर नहीं रह सकेंगे ! उन दिनों ,पिताश्री को भी मैंने बार बार यह कहते हुए सुना था क़ि हफ्ते "दो हफ्ते बम्बई की पक्की सडकों पर जूते घिस के ,दादर अंधेरी, मलाड में  स्टूडियोज में धक्के खा के बबुआ लौट ही आयेंगे!" धोबी तलाव में  नुक्कड़ वाले इरानी रेस्तोरांत की चाय मस्का पाव आमलेट या   वर्ली में "फेमस बिल्डिंग" के बाहर ,फुटपाथ की दुकानों पर  और चलती फिरती गाडिओं पर बिकने वाली डालडा वनस्पती घी में तली मिर्च मसाले से भरी बम्बैया पाँव भाजी वह बहुत दिनों तक नहीं झेल पायेंगे !
  
भैया को फिल्म जगत में सहजता से मिली उनकी सफलता  से अम्मा बाबूजी प्रसन्न तो थे पर बम्बई की फिल्मी चमक धमक में उनके बिगड़ जाने का डर उनके मन से निकल नहीं पा रहा था ! किसी प्रकार उन्हें जल्दी ही कानपूर वापस बुला लेने की प्रबल इच्छा उनके मन में जम कर बैठी हुई  थी! अपनी प्रत्येक प्रार्थना में वे इष्टदेव हनुमान जी से यही अर्ज़ करते थे क़ि कोई अनिष्ट होने से पहले भैया बंबई छोड़  कर कानपूर लौट आयें !


 प्रभात" से अलग होने के बाद शांताराम जी द्वारा स्थापित की गयी ,नयी फिल्म कम्पनी "राजकमल कला मंदिर" के दफ्तर में ,उनकी नई हीरोइन (latest discovery) "जयश्री" के पदार्पण से वैसे ही काफी चहल पहल मची रहती थी पर अब उन्हें लेकर बनने वाली "शकुन्तला" के मुहूर्त की तैयारी के कारण वहाँ की रौनक और भी बढ़ गयी थी ! प्लान ये था क़ी  बरसात के बाद नवरात्रि में शूटिंग शुरू होगी !


जून जुलाई की भयंकर बम्बैया वर्षा और उमस ने भैया को त्रस्त तो किया लेकिन उनसे वह निरुत्साहित नहीं हुए ! शांताराम जी की फिल्म मे काम करने का अवसर मिलना बड़े सौभाग्य की बात थी ! वह किसी प्रकार भी यह सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहते थे ! अपनी सफलता की कामना लिए वह बिना नागा निश्चित दिनों पर मुम्बादेवी, सिद्धविनायक ,हाजीअली , हनुमान जी एवं महालक्ष्मी मंदिर अवश्य जाते थे !


अगस्त के पहले सप्ताह में एक दिन ओपेरा हाउस सिनेमा से निकल कर समुद्र की  ठंढी  हवा का आनंद लेने और भेलपूरी खाकर नारियल का पानी पीने के इरादे से वह चौपाटी क़ी
तरफ  मुड गये ! वहाँ काफी रौनक भी थी ,रोज़ से कहीं अधिक भीड़ वहाँ जमा थी ! ज़रूर आज यहाँ कोई खास बात है ! वह सोचने लगे -------


क्रमशः 
निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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