बुधवार, 22 दिसंबर 2010

"साधक साधन साधिये" # २ ४ ८ -

हनुमत कृपा 
अनुभव 


"साधक साधन साधिये"
"साधक कौन"  

प्रियजन ! श्री स्वामी सत्यानन्द जी महराज की यह स्नेहिल मन्त्रणा, यह अधिकार पूर्ण आदेश ,उन सभी  "नामोपासक साधकों" के लिए है जिन्होंने श्रीस्वामीजी से अथवा उनसे अधिकार प्राप्त "श्री राम शरणम" के अन्य गुरुजनों से "नाम" दीक्षा ली है ! चलिए अब ह्म स्वामीजी महराज के निकटस्थ महापुरुषों के विचारों के द्वारा यह जानने का प्रयास करें क़ि वास्तविक "साधक" है कौन ?
  • "साधक" शब्द का अर्थ है ,वह व्यक्ति जो साधना करता है !
  • "साधक" वह है ,जो अपने लक्ष्य -"साध्य " को भली भांति जानता है और जिसने गुरुजन से प्राप्त ज्ञान के आधार पर उस "साध्य " तक पहुंचनें का मार्ग अर्थात        अपना "साधना पथ" सुनिश्चित कर लिया है !
  • "साधक" वह है जिसने साधना के लिए प्रभु से मिली सब सुविधाओं में प्रमुख अपने शरीर ( जिसे तुलसी ने "साधन धाम मुक्ति कर द्वारा "  कहा है) ,के  वास्तविक  स्वरूप को  जान लिया है !
  • "साधक " वह है जो, अपने "इष्ट "- साध्य ,के अतिरिक्त अन्य किसी को जानता ही नहीं !
  • "साधक" वह है जो,  तन, मन, धन से पूर्णतः अपने साध्य पर समर्पित है ! 
  • "साधक" ऐसा हो जो अपने " साध्य "से ,अपने इष्ट से इतना अभिन्न हो जाये जैसे " पुष्पों में सुवास""            
  • "साधक" वह है जिसने उसी श्रद्धा से अपने इष्ट को अपने हृदय में बसाया है जितनी श्रद्धा से मन्दिरों में मूर्ति की स्थापना होती है !
  • "साधक" वह है जो चलते फिरते उठते बैठते ,सोते जगते अपने नित्य के सभी काम काज  करते हुए पल भर को भी अपने इष्ट का चिन्तन न छोड़े  ठीक वैसे ही जैसे एक "माँ" पालने में पड़ी अपनी संतान को क्षण भर को भी नहीं  भूलती है , चाहे वह जहाँ भी हो  और चाहे वह जो भी काम कर रही हो !
  • साधक वह है जिसे पक्का विश्वास हो कि उसका इष्ट अथवा उस इष्ट का "नाम", उसके हृदय में सर्वदा विद्यमान है ! 
  • साधक का  "मन" ,उसके "इष्ट" के सिंहासन जैसा हो ,जिसे वह सर्वदा पवित्र रखे !  निर्मल मन में ही साधक के इष्ट का निवास हो सकता है ! गोस्वामी तुलसीदस जी के शब्दों में ,भगवान श्री राम का यह कथन ,इस सूत्र की पुष्टि करता  है -
  • "निर्मल मन जन सो मोहि पावा , मोहि  कपट छल छिद्र  न  भावा "

प्रियजन वैसे तो यह सम्पूर्ण जीव जगत ह़ी साधक है !,प्रत्येक जीव अपने  किसी न किसी  अभीष्ट की प्राप्ति के लिए कोई न कोई "साधना" कर रहा है ! मैंने इस संदेश में केवल उन साधकों को सम्बोधित किया है जो आध्यात्मिक प्रगति के लिए साधनरत हैं ! ऐसे साधकों को उद्देश्य प्राप्ति के लिए क्या क्या "साधन" करने होंगे ,अगले अंक में उसकी बात करेंगे! फिलहाल हमारी अभी की राम राम स्वीकारें !

निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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