शनिवार, 25 दिसंबर 2010

साधक साधन साधिये # २ ५ १

हनुमत कृपा 
अनुभव              
                                              साधक साधन साधिये   
                                                       साधन (३)

"ज्ञान कर्म और भक्ति" इन तीनों साधनों में से हमारे सभी आदि ग्रन्थ "भक्ति" को ही प्रभु कृपा प्राप्ति का सर्वश्रेष्ट और सरलतम साधन बताते हैं ! तुलसी कृत मानस के एक प्रसंग में लक्ष्मण ने श्री राम से एक प्रश्न किया :-
सुर नर  मुनि   सचराचर साई ! मैं   पूछहूं  निज प्रभु की नाई !!
मोहि समझाई कहहु सोई देवा !सब तज कारों चरण रज सेवा !!
कहहू ज्ञान बिराग अरु माया ! कहहु सो भगति करहु जो दाया !!  
( Lakshman enquires from Sri Ram : " O Lord of the entire creation , I ask You as of my own master . Instruct me my Lord , how I may be able to worship YOU . Discourse to me my Lord on spiritual wisdom and also tell me what is True Devotion for I know ,it is due to Devotion  that YOU shower your grace on the seekers .)


भाई लक्ष्मण को उत्तर देते हुए श्री राम ने भी भक्ति को ही सर्वोच्च साधन कहा :


धर्म ते   बिरति जोग ते ग्याना   ! ज्ञान मोच्छप्रद बेद बखाना !!

 जाते  बेगि  द्रवऊं   मैं   भाई  ! सो मम भगति भगत  सुखदाई !!

भगति तात अनुपम   सुखमूला ! मिलहि जो संत होईं अनुकूला !!

भगति क़ि साधन कहहूं बखानी ! सुगम पन्थ मोहि पावहि प्रानी !!

(Responding to his brpther ,Sri Ram says :"And that which melts MY heart quickly

dear brother is DEVOTION which is the delight of MY devotees. Devotion ,dear 

brother is incomparable and the very root of BLISS . It can be acquired only by the 

favour of saints (GURU). Now I shall tell you how to acquire this DEVOTION - 

the easiest way for a devotee to reach ME" )


अब  सवाल उठता है क़ि "भक्ति" क्या है ?

मानस  में ही श्री राम ने सबरी को नवधा भक्ति के नौ लक्षण बताये 
  1. प्रथम भगति संतन कर संगा !
  2. दूसरी रति   हरि  कथा प्रसंगा !!
  3. गुरु     पद     पंकज     सेवा      तीसरि        भगति     अमान !!
  4. चौथि भगति मम  गुन गन       करहिं      कपट   तजि   गान !!
  5. मन्त्र जाप   मम दृढ़  बिस्वासा   पंचम भजन सो  बेद प्रकासा !!
  6. छठ दम सील बिरति बहु करमा, निरत निरंतर सज्जन धरमा !!
  7. सातवं सम मोहि मय जग देखा, मोतें   संत अधिक कर  लेखा !! 
  8. आठव  जथा  लाभ   संतोशा   सपनहूँ  नहीं     देखई  पर दोशा !!
  9. नवम सरल सब सन छल हीना ,मम भरोस हियँ हरष न दीना !! 
और अंत में श्री राम ने यहाँ तक कह दिया क़ि :


            नव महु एकहु जिनके होई नारि पुरुष सचराचर कोई 


                        सोइ अतिसय प्रिय भामिनि मोरें   


इन नौ भक्ति के लक्षणों मे से यदि केवल एक भी लक्षण किसी साधक में हो तो वह मुझे 


अतिशय प्रिय है 


The Computer is misbehaving hence I close the BLOG here. See you again 


tomorrow . Meanwhile 


MERRY CHRISTMAS & SEASONS GREETINGS MAY GOD BLESS YOU   


nivedak:  V. N. SHRIVASTAV "BHOLA" 



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