बुधवार, 1 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 2 9

हनुमत कृपा 
अनुभव 

उन दिनों ,जैसा आप जानते हैं कि मैं केवल तेरह वर्ष का था अस्तु मेरे मन में भी यही प्रश्न उठ रहा था कि श्रीहनुमान जी महाराज कीयह कैसी करुणा है , कैसी कृपा है  कि उन्होंने पहले तो बड़े भैया को बड़े बड़े ,फले फूले, हरे भरे  बाग़ दिखाये और फिर जब प्रारब्ध ने उन्हें बेदर्दी से काटों के झाड़ पर फेंक दिया ,तब जिन्हें ह्म संकट मोचन कहते हैं वह - ह्मारे कुलदेवता  हनुमान जी उन्हें संकट में असहाय छोड़ कर किसी और की सेवा में लग गये !  



बड़े भैया का  हाल यह था कि वह दिन रात घर में अपना कमरा बंद किये लगभग सुन्न से बैठे रहते थे , न कहीं आना जाना , न किसी से मिलना जुलना ! हाँ कभी कभी कमरे के   भीतर से बड़े भैया की आवाज़ में ,"के.एल. सहगल" के उस जमाने के फिल्मों के , दर्द भरे नगमें  ," दुःख के अब दिन बीतत नाही " और "तडपत बीते दिन रैन" जैसे गीतों के बोल  ज़रूर  सुनायी दे जाते  थे !


उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं थी कि उनको अब आगे क्या करना है ! यदि वह चाहते तो पुनः कॉलेज ज्वाइन कर सकते थे ! लेकिन वह इस विषय में कुछ बात ही नहीं करते थे मजबूरन  यह मान लिया गया कि वह दोबारा कॉलेज नहीं  जाना चाहते ! लेकिन बाबूजी को तो भैया के भविष्य की बहुत चिंता थी ! गाने  बजाने में उनकी रूचि को देखते हुए बाबूजी ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें ,मेरिस म्युज़िक कॉलेज लखनऊ भेजने की योजना बनाई !  बड़े भैया लखनऊ गये भी ,लेकिन फिल्मी गायन में शास्त्रीय संगीत का अधिक उपयोग न समझ कर उन्होंने वहाँ समय बर्बाद करने के बजाय ,घर पर ही सुगम संगीत का रियाज़ करने का निश्चय ले लिया !  

अम्मा जी  उनका मनोबल प्रशस्त करने के लिए उन्हें अपने ढंग से पौराणिक कथाएं सुनाती रहती थीं ! ह्मारे चचेरे बड़े भाई के एक आस्थावान अंग्रेज़ी भाषा के विद्वान मित्र उन दिनों ह्मारे साथ घर में  रहते थे और कभी कभी हमें  अंग्रेज़ी पढ़ाते थे ! उन्होंने एक दिन हम दोनों भाइयों को ,ऋषिकेश के स्वामी शिवानन्द जी महाराज का अंग्रेज़ी भाषा का एक वचन लिख कर दिया !  


What happend has happened by GODs WILL, 
Why then brood over it and loose peace of mind ?


उस समय १३ वर्ष की उम्र में मुझे इस सूत्र का भावार्थ उतनी गहरायी से समझ में नहीं आया लेकिन बड़े भैया को वह तभी समझ में आ गया ! प्रियजन अभी बताता हूँ कि हमें कैसे पता चला कि भैया को स्वामी जी के उपरोक्त कथन की सत्यता पर पूरा भरोसा है!   
इस सूत्र को समझने के बाद पहला गीत जो अपने बंद कमरे से उन्होंने गाया वह था:


कब तक निराश की अन्धियारी ?
आस की दामिनि दमका देगी यही बदरिया कारी !


How long can this darkness of disappointment last ? Lo. These very clouds shall soon emit the silver lining which will illuminate your path 


सूखे पेड़ की डाल डाल है रस की भरी पिचकारी ,
जैसे लाज का घुंघट डारे कोई सुंदर नारी ,
आस की दामिनि दमका देगी यही बदरिया कारी ,
कब तक निराश की अंधियारी ? 


प्रियजन मुझे ठीक से याद नहीं कि  के.एल. सहगल द्वारा गाया हुआ उपरोक्त गीत , न्यू थिएटर (कोलकता) के किस फिल्म का है? और इसका  गीतकार कौन है ? लेकिन आज ७० वर्ष बाद भी मुझे इस गीत के शब्द याद हैं यह बात ही इस सत्य का प्रतीक है कि इन शब्दों में एक सर्वकालिक अनुकरणीय गूढ़ तथ्थ निहित है ! 


क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"



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