गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

JAI JAI JAI KAPISUR # 2 4 2

हनुमत कृपा 
अनुभव 
(गतांक से आगे)

प्रियजन !  आज १६ दिसम्बर २०१० है और आज मैं सबसे पहले अपना आज का ही एक ताज़ा ताज़ा अनुभव सुनाने जा रहा हूँ  ! कल का प्रसंग उसके बाद आगे बढ़ाऊंगा !

आपने समाचारों में सुना ही होग़ा क़ि इन दिनों समस्त उत्तरी गोलार्ध में, खासकर योरप और अमेरिका में भयंकर शीत लहर आयी हुई है ! U. S  A में यहाँ बोस्टन का तापमान भी सारे  दिन शून्य अंश सेल्सिउस से नीचे ह़ी रहता है लेकिन अभी बर्फ नहीं पड़ी  है ! शाम को चार बजे रात हो जाती है और सुबह पाँच बजे भी आसमान में तारे दिखाई देते हैं ! पर हमे मौसम की इस उतार-चढ़ाव से कोई अन्तर नहीं पड्ता ! आराम से देर तक सोते हैं ! चाय की प्याली में चम्मच की खनक सुन कर ७-८  बजे बिस्तर छोड़ते हैं ! लखनऊ के नवाबों की थोड़ी सी नवाबी ही ह्म जैसे कानपूर वालों को विरासत में मिली है ,उसे भी त्याग देना क्या मूर्खता नहीं होगी ?  

पिछली रात मुझे अन्य रातों से थोड़ी अच्छी नींद आयी ,इस कारण आज सबेरे चाय के प्याले की खनक कान में पड़ने से पहले ही मेरी नींद खुल गयी और मैं आँखे बंद किये मन ही मन श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा !
"श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार ,
  बरनौ  रघुबर  बिमल  यश जो दायक फल चार !"
से प्रारम्भ कर मै -
"नाशे  रोग  हरे  सब  पीरा , जपत   निरंतर  हनुमत बीरा 
 संकट से हनुमान छुडावे ,मन क्रम बचन ध्यान जो लावे "
तक पहुचा था क़ि मेरे कान में धर्म पत्नी कृष्णा जी के स्वर में उसके आगे की लाइनें   "सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा "  
और मनोरथ  जो कोई  लावे ,सोई  अमित जीवन  पद पावे !!
सुनायी पड़ी ! पर  उसके बाद भी मैं पहले की तरह आँख मूदे बाक़ी चालीसा मन में ही गाता रहा और इस दोहे से पाठ पूरा किया 
"पवन  तनय  संकट हरण  मंगल  मूरत  रूप ,  
राम लखन सीता सहित हृदय  बसहु सुर भूप"


मन में ही पाठ पूरा कर के मैनें जब आँखें खोलीं तो देखा क़ि कृष्णा जी आज मंदिर मे नहीं गयीं थीं ,वहीं मेरे सिरहाने पलंग पर "सुखासन" लगाये बैठी हैं ,उनकी आँखे बंद हैं और बिना यह जाने क़ि मैं जगा हुआ हूँ और मन ही मन हनुमान चालीसा पाठ का समापन कर रहा हूँ ,उन्होंने भी मेरे साथ साथ ही समापन किया अन्तर केवल यह था क़ि मैं मूक था और वह मुखर !


एक बात और बताऊँ ,यह ब्लोगिंग का क्रम शुरू करने से पहले, ह्म दोनों पति पत्नी ,हर दिन ,कम से कम एक बार ,बिना नागा, बाजे - गाजे के साथ ,हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य कर लेते थे ! पर इधर वह क्रम बिल्कुल ही टूट गया है ! बहुत सबेरे उठ कर वह पाँच साढ़े पाँच बजे ,बिस्तर छोड़ देती हैं और फिर घर के मंदिर में ,अकेले ही अपनी पूजा आराधना करने बैठ जाती हैं ! अपनी मजबूरियों के कारण मैं सोता रहता हूँ ! जिससे इधर बहुत दिनों से  ,ह्म दोनों के पत्र-पुष्प ,एक साथ  हमारे इष्ट देव को नहीं मिले हैं ! मुझे तो ऐसा लगता है क़ि "वह" ह़ी ह्म दोनों से ,एक साथ ,चालीसा  सुनना चाहते होंगे इस कारण "उन्होंने" आज प्रातः वाला "अनुभव" हमे करवाया और मेरा मूक स्वर तथा कृष्णाजी का  सस्वर चालीसा गायन पत्र पुष्प समझ कर स्वीकार कर लिया ! 


प्रियजन ! मेरी समझ में क्या आएगा ,मैं ठहरा अनाडी ! आप ही सोच कर बताएं क़ि मेरी अर्ध-सुप्त अवस्था के मूक गायन के साथ साथ कृष्णा जी ने कैसे चालीसा का पाठ उसी  भाव से, उसी गति से सस्वर शुरू किया जिससे मैं अपने मन मे गा रहा था ? " क्या यह "इष्ट देव " का कोई चमत्कार था ? अथवा  "क्या इसी को "टेलीपेथी" कहते हैं ?"   


शंका समाधान प्रसंग फिर कल से , आज इतना ही --बाक़ी क्रमशः
निवेदक: व्ही. एन .श्रीवास्तव "भोला"
78, Clinton Road,Brookline.MA 02445.USA

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