शनिवार, 22 जनवरी 2011

साधन:"भजन कीर्तन" # 2 7 4

हनुमत कृपा - अनुभव 
साधक साधन साधिये                            साधन:"भजन कीर्तन"

आत्मकथा के द्वारा श्रीहरि कृपा के अपने अनुभव बता रहा हूँ ! "उनकी" सबसे बड़ी कृपा जो मुझ पर हुई वह यह है कि जिन लोगों के बीच मैं पाला पोसा गया,बड़ा हुआ ,मेरे माता पिता ,सगे भाई बहन आदि तथा विवाहोपरांत ससुराल के सम्बन्धियों तक को ह्मारे प्यारे प्रभु ने भक्ति-संगीत का प्रेमी बनाया !
शायद माँ की कोख में ही हम सब बच्चों ने भक्ति संगीत का सरगम सीख लिया था ! गायन के लिए मधुर कंठ तथा एक बार सुन कर राग रागनियों को सदा के लिए मन में बसा लेने की क्षमता भी प्रभु ने हमें बचपन से ही दे दी थी ! 
पहले भी कहीं लिख चुका हूँ ,पर भजन के सन्दर्भ मे एक बार फिर कह रहा हूँ क़ि बचपन के उन दिनों हर सुबह सबेरे ह्मारे मोहल्ले वालों का जागरण किसी मिल के सायरन से या उनके टाइम पीस के एलार्म से नहीं होता था! मोहल्ले के अधिक लोग हमारे निवासस्थान # ११/२२६ , सूटरगंज ,कानपूर से, ह्म बच्चों के भजन संगीत के रियाज़ के कारण आती भक्ति भरी ध्वनि लहरी की झंकार सुन कर बिस्तर छोड़ते थे ! 

याद है मुझे , मैंने बचपन में अक्सर अपने मोहल्ले के बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना था  "भाई! बद्री बाबू का घर तो देव मंदिर जैसा है! वहाँ भोर से ही आराधना शुरू हो जाती है "!  उन दिनों मोहल्ले के कुछ संगीत प्रेमी युवक-युवतियों ने तो ह्मारे घर को "गन्धर्व लोक" कहना शुरू कर दिया था ! 

बड़ा अच्छा लगता था जब मोहल्ले की कोई बूढी दादी,मौसी ,या ताईजी गंगा स्नान कर के लौटते समय ,हमे स्कूल जाते जाते रास्ते में रोक कर कहतीं थीं "भैयाजी आज सबेरे वाला आप लोगन का भजन बड़ा सुंदर रहा ! ह्म तो तब ते अब तलक गुन्गुनाय रहीं हन "! हमे स्कूल पहुचने की जल्दी होती और उनकी बात खतम न होती !" हाँ तो भइया ,का रहा ऊ भजन, 'जागो बंसी वारे ललना , जागो मोरे प्यारे' ? भैरव राग मा आप सब बड़ा  मधुर गावत रहें वाको !"    हमे वहाँ से जान बचा कर भागना पड्ता था , डर था क़ि अधिक रुके  तो  सड़क पर ही उन मोहल्लेवाली  दादी जी से वह पूरा भजन सुनना पड़ेगा , और उनके गायकी की तारीफ़ करनी पड़ेगी और तब निश्चय ही समय से स्कूल नहीं पहुँच पाउंगा !

आप हमसे पूछोगे कि इसमें कौन सी कृपा भगवान आप पर कर रहे थे ? प्रियजन आपका प्रश्न अनुचित नहीं है ! तब छोटा था ,केवल एक यह भाव कि उस छोटी अवस्था में दुनिया हमे महत्व दे रही है, कह रही है कि ,ह्म सुंदर गाते हैं ,हमे सम्मानित कर रही है,इससे हमे जो प्रसन्नता होती थी क्या वह परमानंद स्वरूप देवाधिदेव श्रीहरि के दर्शन का पूर्वाभास नहीं था ?

और हाँ अभी कुछ दिवस पूर्व किसी संत महापुरुष से सुना क़ि " यदि तुम्हारे प्रोत्साहन  से   कोई एक व्यक्ति भी "हरि सुमिरन रत" हो जाये तो तुम्हारा जीवन धन्य हो जायेगा और  तुम्हारा मानव जन्म सार्थक हो जायेगा "! इसमें क्या उनकी कृपा नहीं है ,कि ह्म उनकी ही दी हुई क्षमताओं के बल पर , उनके ही भजन गाकर तथा अन्य लोगों से गवाकर इतनी   सरलता से जीवन्मुक्त हो जाएँ और अपने प्रेमास्पद के "आनंदस्वरूप" का  दर्शन पालें !  बोलो प्यारों !

निवेदक: वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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