शनिवार, 1 जनवरी 2011

साधक साधन साधिये # २ ५ ६

हनुमत कृपा 
अनुभव                                      
                                                   साधक साधन साधिये

आज,वर्ष २०११ के प्रथम दिन से ही "नाम जपता रहूँ , काम करता रहूँ" वाले "साधन" द्वारा अपने जीवन में अनंत आनंददायक -"हरि-कृपा" को पाने का और उसे अनुभव करने का संकल्प कर लीजिये !इस सूत्र में दो  चरण हैं -नाम जपना  और सत्कर्म करना  ! प्रश्न उठेगा किसका नाम जपू ? सोचिये ,किसका नाम जपा था राधा ने ? मीरा किसका नाम जपती थी ? स्वजनों , व्यक्ति उसका ही नाम जपता है जिससे उसकी अनन्य प्रीति होती है और अनन्य प्रीति भी उन्हीं से होती है जिनके व्यक्तित्व ,रूप ,लीला ,गुण  और दिव्य कर्म से ह्म प्रभावित रहते हैं,और हर पल उन्हीं का स्मरण करते हुए अपना जीवन जीना चाहते हैं ,उनके प्रति हमारी श्रद्धा और निष्ठा सर्वदा बनी रहती है,ह्म उन्हें आदर्श महापुरुष मान कर उनका अनुसरण करते हैं   ! ह्म उसका ही नाम जाप करेंगे ! प्रियजन! सौभाग्यशाली "दीक्षित" साधकों को उनके गुरुजनों ने "उस नाम विशेष " से परिचित करवा ही दिया है !

हाँ नाम जाप के साथ साथ कर्म करते रहने के विषय में श्रीमद्भागवत पुराण के सप्तम स्कन्ध में , भक्तराज  प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न हो कर साक्षात् श्री नरसिंह भगवान ने जो कहा वह अति प्रासंगिक है -- "समस्त प्राणियों के हृदय में यज्ञों के भोक्ता "ईश्वर" के रूप में मैं विराजमान हूँ ! तुम अपने हृदय में मुझे देखते रहो और मेरी लीला-कथाओं का स्मरण करते रहो ( मेरी कृपा के अनुभवों को सदा याद रखो ) अपने सभी दैनिक कर्मों और क्रिया कलापों द्वारा मेरी आराधना करते रहो ! इस प्रकार तुम अपने सभी संचित   प्रारब्ध कर्मों का क्षय करके मुक्त होकर मेरे पास आजाओगे  !"


देखा आपने ,अपने दैनिक कर्म करते समय "ईश्वर" को याद करने वाले साधकों के लिए "ईश्वर" ने कार्य की सफलता के साथ साथ मुक्ति, और परमानंद प्राप्ति के मार्ग में कितनी सहूलियतें दे दी हैं और ह्म हैं क़ि उन सुविधाओं का उपयोग नहीं कर रहे हैं! अस्तु 
                   "अब विलम्ब काहे को भाई , नाम जपो अरु करो कमाई " 


भगवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी कुछ ऐसा ही संदेश दिया :
                      करता  रहे निज  कर्म जो  मेरा परम आश्रय धरे  !
                      मेरी कृपा से प्राप्त वह अव्यय सनातन फल करे !! (अध्.१८,श्लो.५६) 


अन्यत्र उन्होंने अर्जुन को आदेश दिया क़ि विजय श्री  के लिए वह"उनका"सिमरन  करता हुआ युद्ध करे! 
                      हे पार्थ मुझको सुमिर कर तू कर निरंतर युद्ध भी !! (अध्. ८,श्लो.७)


बार बार नहीं कहूँगा ! "नाम जपो - काम करो " वाला प्रसंग अब यही समाप्त कर रहा हूँ! कल ह्म भगवत कृपा प्राप्ति के अन्य साधनो के विषय में बात करेंगे ! तो अब राम राम !


निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"



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