बुधवार, 5 जनवरी 2011

साधक साधन साधिये # २ ६ ०

हनुमत कृपा                                                       
अनुभव  
                                               साधक साधन साधिये
                                            प्रभु कृपा प्राप्ति के साधन 
                        ( स्वमी सत्यानन्द जी महराज के प्रवचनों से संकलित )


महापुरुषों का कथन है कि  ध्यान के समय किसी और का चिन्तन मत करो ! ईश्वर के जिस किसी रूप में आस्था और रूचि हो ,उसी रूप का ध्यान  करो !ध्यान में तन्मयता हो जाने पर "मेरापन "मिट जाता है ! ध्यान में तन्मयता होने पर गोपियां सब कुछ में  ही  श्रीकृष्ण का दर्शन करने लगीं ! वास्तविक "ध्यान"  करते करते संसार का ऐसा विस्मरण हो जाता  है ! ( श्री डोंगरे महाराज के श्रीमदभागवत -रहस्य से )

हमारे जैसे साधकों के लिए गोपियों के समान "ध्यान" लगाना असम्भव है  इस  कारण ह्म जैसे साधको के लिए ,जो विधि पूर्वक "ध्यान" नहीं लगा पाते ,गुरुदेव  ब्रह्मलीन श्री स्वामी सत्यानन्द जी  महाराज  ने एक सहज और सुलभ साधन प्रतिपादित किया और  कहा  कि  "अपने नित्य के क्रिया कलापों के साथ साथ लगातार नाम जाप करने से भी  साधकों को अति सुगमता से "प्रभु -कृपा-प्राप्ति" हो सकती है ! अपनी  "अमृतवाणी" की ६१ वीं और ६२ वीं चौपाइयों में महाराज जी ने  यह सूत्र दिया है ---:
                       
                       राम राम  भज कर श्री राम ! करिए नित्य ही उत्तम काम !!
                       जितने कर्तव्य कर्म कलाप !  करिये  राम  राम  कर  जाप !!६१!!
                       करिये   गमनागम के काल ! राम जाप जो  करता निहाल !!
                       सोते जगते सब दिन याम   ! जपिए   राम  राम  अभिराम !!६२!!

भक्ति प्रकाश में भी महाराज जी का संदेश है
                             कर्म करो  त्यों जगत के ,धुन में धारे   राम !
                             हाथ पाँव से काम हो ,मुख में मधुमय  नाम !!


श्रीमदभगवदगीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने मोह ,संशय ,नैराश्य और कायरता में पड़े अपने सखा पार्थ के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को "प्रभु" का नाम स्मरण करते हुए प्रसन्नता से ,पूरी दक्षता और सम्पूर्ण क्षमता के साथ  पुरुषार्थ करते हुए अपने जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करने का आदेश दिया है !
                        
                         हे पार्थ तू कायर न बन ,मुझको सुमिर ,उठ युद्ध कर 
                         निश्चय विजय होगी तुम्हारी , हे  सखे  विश्वास कर  


इस उपर्युक्त विवेचन से हमारी समझ में यह आ रहा है  की  आगम ,निगम और पुराण  में वर्णित प्रभु -कृपा प्राप्ति के तीन साधन ध्यान ,अर्चन और वंदन में से केवल प्रभु की  अखंड स्मृति रखते हुए हम संसार में शुभ सत्कर्म करते रहें तो हमें   प्रभु की असीम कृपा मिलती रहेगी और उसकी अनुभूति भी होती रहेगी !


आज जनवरी ५, है ! प्रियजन यह मेरे पिताश्री की पुण्य  तिथि है ! आज से ३९  वर्ष पूर्व  कानपूर में ,रात के समय ,जब सारा परिवार ,उन्हें आराम से सुला कर ,घर से दूर ,"माता  के जागरण" में सम्मिलित होने गया था ,पिताश्री ने बिना किसी को किसी प्रकार का कष्ट दिए, एकांत में ,शांति पूर्वक अपने इष्ट "महाबीर विक्रम बजरंगी "को याद करते करते अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया था ! प्रातः काल जब रात भर अखंड भजन कीर्तन कर के भाई साहेब जब उन्हें जगराते का वशेष प्रसाद देने के लिए उनके पास गये तब तक वह परलोक सिधार चुके थे !  


आज उनके जीवन की यह झांकी अनायास ही मेरे स्मृति-पटल पर साकार  हो  रही है! भयंकर से भयंकर परिस्थिति में भी उन्होंने "गीता के ज्ञान" तथा "रामायण" से ग्रहण की हुई सुनीतियों का परित्याग नहीं किया !  


                        सरल सुभाव न  मन कुटिलाई ,  यथा लाभ संतोष सदाई "
                        बैर न बिग्रह आस न त्रासा ,सुखमय ताहि सदा सब आसा 
                   सम दम नियत नीति नहीं डोलहिं परुष वचन कबहू नहिं बोलहिं
                       देत लेत मन  संक न धरई  , बल अनुमान सदा हित करई   


यही थी उनके व्यक्तित्व की विशेषता जिसके परिप्रेक्ष्य में वे सदैव सत्कर्म और परहित करते रहे !,यहाँ तक कि उन्होंने अपने को धोखा देने वालोँ का कभी बुरा नहीं चाहा अपितु  " हानि लाभ जो भी हुआ हरि इच्छा से हुआ " इस भावना से उन्होंने उनको क्षमा भी  कर दिया ! परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल , उन्होंने अपने इष्टदेव  हनुमानजी का आश्रय  कभी नही छोड़ा ! सच पूछिये  तो अपने इष्ट के सम्बल पर ही उन्होंने अपनी  सभी समस्याओं का  धैर्य और साहस के साथ सामना किया ! उन्होंने कभी किसी से कोई  शिकवा-शिकायत नहीं की ! उन्हें अपने इष्ट की कृपा का भरोसा आजीवन बना रहा ! केवल कीर्तन ,भजन सिमरन और नाम जाप की कमायी उन्होंने जीवन भर की जिसका सुफल , ह्म ,उनके सभी वंशज आज तक भोग रहे हैं !


राम राम , कल फिर जब नयी प्रेरणा प्राप्त होगी आपको संदेश  दूंगा !
निवेदक: व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"

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