रविवार, 16 जनवरी 2011

साधन - सिमरन # २ ६ ९

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हनुमत कृपा - अनुभव                      साधक  साधन साधिये 
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मैं पिछले कई दिनों से केवल "सिमरन" की बात कर रहा हूँ ! प्रियजन , व्यक्ति उसी विषय पर अधिक प्रकाश डालता है जिसका उसे वास्तविक ज्ञान होता है अथवा जिसकी सत्यता पर उसको पूर्ण विश्वास होता है या जिस विषय का उसे कुछ निजी अनुभव होता है ! मैं  "सिमरन" पर सर्वाधिक जोर दे रहा हूँ क्योंकि मुझे इस "साधन" पर अटूट भरोसा    है ! मैं भली भांति जानता हूँ क़ि मेरी समग्र सांसारिक ,आत्मिक,आध्यात्मिक सफलताओं के मूल में है उस शांति और आनंद की अनुभूति ,जो मुझे एकमात्र "सिमरन" के कारण ही उपलब्ध हुई है ! विश्वास करें प्रियजन "सिमरन" के अतिरिक्त और कोई साधन मैं आजीवन कर ही नहीं सका !


प्रियजन आप ही कहें क़ि मेरे जीवन में कहाँ इतना समय था क़ि मैं पूरी औपचारिक पूजा पाठ कर पाता ! मेरे पास  "काम करते हुए "सिमरन" करते रहने" के अलावा कोई और साधन था ही नहीं !  ६५ वर्ष की अवस्था तक मेरा केवल एक ही कर्म था -शत प्रतिशत ईमानदारी से भारत सरकार की सेवा द्वारा  जीवन निर्वाह करना ! गार्हस्थ  जीवन के  सभी उत्तरदायित्व ,अपने सामर्थ्य और सूझ बूझ से एकमात्र  प्रभु का आश्रय लेकर निभाना और जीवन का प्रेयपूरित लक्ष्य "गृह कारज  नाना जंजाला" में उलझे रहना ! ऐसे में मुझे आध्यात्मिक सिद्धि के अन्य कठिन  साधनों के मुकाबले "सिमरन" ही सबसे सहज और सुगम साधन प्रतीत हुआ और उसी का आधार ले कर मैंने अपने जीवन की बागडोर सर्वशक्तिमान प्रभु के हाथों  में सोंप  दी ! मेरी उनसे यही प्रार्थना रही : 


हे राम मुझे दान कर अपना सिमरन आप !
लगन  प्रेम से मैं करूं परम पुन्यमय जाप !!
[भक्ति प्रकाश  ]


परमश्रद्ध्येय भाईजी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार के इस पद  में उनका कुछ ऐसाही संदेश है :                            रे मन हरि सुमिरन कर लीजे !!
हरि को नाम प्रेमसों जपिए ,हरिरस रसना पीजे !!
हरि   गुन गाइय ,सुनिय निरंतर ,हरि चरणनि चित दीजे !!
हरि   भगतन क़ि सरन ग्रहण करि ,हरि संग प्रीत करीजे !! 


भक्त शिरोमणि सहजोबाई ने सिमरन की महत्ता दर्शाते हुए गाया है :
                        "जाग जाग जो सुमिरन करे !आप तरे  औरन ले तरे "!


परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास  ने अपने शब्दों में उद्घोषणा की है क़ि जो साधक अपने इष्टदेव  का निरंतर सुमिरन करते हुए अपने सारे सांसारिक कर्म करते हैं वे बिना किसी परिश्रम के मोह की प्रबल सेना को जीत लेते हैं ! उन्हें परमानंद की अनुभूति होती है,वे नाम सिमरन प्रसाद का रसास्वादन करते हुए सदा मगन रहते हैं --
                   
                  सेवक  सुमिरत नाम सुप्रीती ! बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती !!
                  फिरत स्नेह  मगन सुख अपने ! नाम प्रसाद  सोच नही सपने !!


प्रिय पाठकगण ! मेरी तो कट गयी !"सिमरन" के सहारे मेरी जीवन नैया मेरे खेवटिया "इष्ट देव" की अहेतुकी कृपा के बल पर भव सागर पार कर गयी ! 


आप भी इस सरलतम साधन "सिमरन" का सहारा लें! विश्वास दिलाता हूँ क़ि आपके इष्ट भी आपकी मदद करेंगे और अपने कार्य में आप अवश्य ही सफल होंगे ! केवल यह ध्यान रखियेगा क़ि अपने कर्तव्य पालन में आप कोई त्रुटि न आने दें ,आप अपना तन, मन, धन अपनी पूरी शक्ति और क्षमता लगादें ,जान बूझ कर कोई भूल न करें ,कोई ऐसा काम न करें जिसके कारण आपको नीचा देखना पड़े !


सिमरन प्रसंग का यहाँ समापन कर रहा हूँ ! कल क्या लिखूँगा , लिखवाने वाला जाने!


निवेदक:  व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"

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