गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

साधन - भजन कीर्तन # 2 8 5

हनुमत कृपा - अनुभव                  साधक  साधन साधिये 
                                  
साधन- भजन कीर्तन                                                                                (२८५) 

श्री स्वामी जी महाराज के सानिध्य में होने वाले उस पंचरात्रि सत्संग के सभी बैठकों में   मैं अपनी गायकी की प्रवीणता प्रदर्शित करने को उतावला था ! मैं अपने नये नये रेशमी कुरतों  की जेब में भजनों की छोटी छोटी पर्चियां छुपाये , इस भाव भंगिमा से सत्संग भवन में प्रवेश करता था कि स्वामी जी महराज की दृष्टि मुझ पर पड़े और अपने आसन पर बैठे बैठे वह मुझे पुकार कर अपने निकट बैठालें !

काफी दिनों बाद  समझ पाया कि तब मैं कितना बड़ा मूर्ख था ! उस सभा में , पंडित राम अवतार शर्मा जी, श्री मुरारीलाल पवैया जी, श्री गुप्ता जी , श्री बंसल जी ,श्री बेरी जी ,श्री शिवदयाल जी तथा श्री जगन्नाथ प्रसाद जी जैसे  महान साधकों के  होते हुए ,मेरा यह सोचना कि श्री स्वामी जी  महाराज  मेरे जैसे नये साधक को आगे बुलाकर अपने निकट बैठाएंगे,  कितनी  बड़ी मूर्खता थी ? प्रियजन  ! मुझे  अब लगता है  कि  वास्तव में मेरी मूर्खता आँक कर ही मुझ पर अति करुणा करके श्री स्वामी जी ने मुझे सुधारने के लिए अपने संरक्षण  में ले लिया था ! कितना बड़ा सौभग्य था वह मेरे लिए ?  स्वामी जी के निम्नांकित शब्दों में मेरी मनोभावना प्रतिबिम्बित है  : 

भ्रम  भूल  में   भटकते  उदय   हुए  जब  भाग !
मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग !!

अब सुनिए कि आपके इस "तीसमार खान" साहेब की क्या गति हुई वहाँ ! नित्य  प्रति  हर   सभा में वह उतनी ही तैयारी के साथ जाते , उचक उचक कर अपना चेहरा स्वामी जी को दिखाते लेकिन  उनको अवसर  नहीं मिलता ! आखिर एक दिन महराजजी की कृपा दृष्टि उन पर पड़ ही गयी , महराजजी की उंगली उनकी ओर उठी ! वह गदगद हो गये ,अपनी  जेब से डायरी निकालने को झुके  पर तब तक महराज जी की उंगली उनके बगल में बैठे किसी और साधक की ओर घूम कर रुक गयी और उन्होंने उन साधक को  भजन सुनाने का आदेश भी दे दिया और तीसमार खान अपनी पर्चियां  सम्हाले हाथ मलते ही रह गये ! प्रियजन !अपने आप को सर्व श्रेष्ठ समझने वाले अहंकारी व्यक्तियों की अंततः ऎसी ही गति होती है !

पर ऐसा नहीं है क़ि मैं पाँचों दिन उपेक्षित  ही पड़ा रहा ! अंततः महराज जी ने हमे मौका दिया पर  काफी लम्बी प्रतीक्षा के बाद ! यूं कहिये कि मन ही मन बहुत रोने धोने के बाद मुझ पर  विशेष कृपा कर के ह्मारे इष्ट देव श्री राम ने ही मुझे वह अवसर प्रदान किया क़ि मैं नैवेद्य  सरीखा अपना वह भजन उनके श्री चरणों पर अर्पित कर सकूं ! मैं तैयार तो था ही , बड़े भाव से पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ , मैंने हारमुनियम से तानपूरे का काम  लेते हुए ( तब मैं  इतनी निपुणता से बाजा नहीं बजा पाता था ) मुकेश जी का एक नया भजन गाया 

राम झरोखे बैठ कर  सब का मुजरा लेत 
जैसी जाकी चाकरी वैसा वाको देत !!
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राम करे सो होय रे मनुआ राम करे सो होय !!

कोमल मन काहे को दुखाये, काहे भरे तोरे नैना ,
जैसी जाकी करनी होगी वैसा पड़ेगा भरना 
बदल सके ना कोय रे मनुआ ,बदल सके ना कोय !!
राम करे सो होय रे मनुआ !!

पतित पावन नाम है वाको रख मन में विश्वास ,
कर्म किये जा अपना रे बंदे ,छोड़ दे फल की आस ,
राह दिखाऊँ तोहे रे मनवा राह दिखावों तोहे !!  
राम करे सो होय रे मनुआ !!

जो भी जाके वाके द्वारे साची अलख जगाये ,
मेरो दाता ऐसो दाता ,खाली नहीं फिरावे,
काहे धीरज खोय रे मनुआ ,काहे धीरज खोय !!
राम करे सो होय रे मनुआ !!
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महराज जी के आशीर्वाद से तथा सभा भवन के आकाश में पहले से ही गूंजती भक्ति रस में सराबोर धुनों की तरंगों के कारण मेरा भजन भी खूब जमा और मुझे ऐसा लगा क़ि वहाँ उपस्थित सभी साधकों एवं महराज जी को भी वह बहुत पसंद आया ! महराज जी तो मेरी ओर देख कर थोड़ा सा मुस्कुराए ही पर मेरे लिए उतना ही काफी था !मुझे उस से ही रोमांच हो गया  मैं गद गद हो गया मेरी आँखें डबडबा गयीं ! मुझे लगा क़ि श्री गुरुदेव को मेरा वह प्रथम प्रयास पसंद आया है  और यह विश्वास भी हो गया क़ि , नैवेद्य स्वरुप अर्पित मेरी वह "भजन भेंट" मेरे "इष्टदेव" ने  स्वीकार कर ली है !


हाल से बाहर आते समय  एक अनजान सत्संगी साधक ने मुझसे कहा "आपने तो रुला ही दिया भैया, देखिये मेरे रोंगटे अभी तक खड़े हैं "!
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निवेदक:- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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