शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

साधन-भजन कीर्तन # 2 8 6

 हनुमत कृपा - अनुभव                                            साधक साधन साधिये 

साधन-भजन कीर्तन                                                                      ( २ ८ ६ )

आज अभी अभी अपने सद्गुरु स्वामी सत्यानंद जी महाराज के आज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी ,श्री राम शरणं ,रिंग रोड दिल्ली के वर्तमान गुरुदेव डाक्टर  विश्वामित्र महाजन जी महाराज को अपने इन संदेशो के विषय में सूचना दी और आज ही मेरा कल का लिखा पूरा संदेश पोस्ट होने से पहिले मेरे कम्प्यूटर जी की कृपा से पूरा का पूरा ऐसा गायब हुआ क़ि फिर उसे ह्म़ारे कम्प्यूटर एक्सपर्ट बच्चे भी खोज न पाए !

ऐसा पहिली बार तो हुआ नहीं , आप जानते ही हैं ,मेरे चीफ एडिटर महोदय , मेरे प्रेरणा स्रोत , मेरे इष्टदेव को मेरे लेख में ,जो कुछ अशोभनीय ,असत्य या  असंगत नजर आता है उसे वह निःसंकोच कैचिया देते हैं ! प्रियजन ह्म  पारिश्रमिक भोगी सेवक उनके खिलाफ इन्किलाब करने का साहस कैसे कर सकते हैं ! हरि इच्छा मान कर मुंह सिये पड़े रहते हैं! लगता है आज  उन्हें मेरे उस संदेश में कुछ भी अच्छा नहीं लगा और उन्होंने पूरा संदेश ही सेंसर कर दिया ! ऊपर से यह क्माल देखिये क़ि मेरी स्मृत भी मुझे धोखा दे रही है ! मुझे कुछ भी नहीं याद क़ि उस संदेश में मैंने क्या लिखा था ! बस याद है केवल यह क़ि उसमे मै अपने प्रथम सत्संग के अनुभव की बात कर रहा था ! चलिए उसी विषय में दोबारा कोशिश करले : 

१९५९ में मैंने पहिली बार श्री रामशरणं के पंच रात्रि सत्संग में भाग लिया ! यह सत्संग ग्वालियर में श्री स्वामी जी महाराज के समक्ष हुआ था ! सत्संग के मोटे मोटे नियम मुझे मेरी ससुराल वालों ने बता दिये थे ! उनदिनों रेडिओ स्टेशन के संगीत विभाग से सम्बंधित था इससे ससुराल में मुझे एक ऊंचा गायक समझा जाता था ! स्वामी जी को भजन बहुत प्रिय हैं अस्तु मुझसे यह भी कहा गया क़ि सत्संग में गाने के लिए मैं बहुत से भजन तैयार करलूं ! स्वाभाविक है ऐसे में किसी के भी मन में अहंकार का होना ! मैं कैसे बचता ?

हाँ  तो मैं पूरी तैयारी के साथ , अपने सुंदर से सुंदर कुरते की जेब में भजनों की पर्चियां रखे  हर बैठक में महराज जी के निकटतम बैठने की आशा लिए , इस प्रकार सत्संग भवन में प्रवेश करता था कि स्वामी जी मुझे देखते ही दूर से इशारा कर के मुझे अपने पास बुलाएं    और अपने निकट बैठालें ! पर पहले दो दिनों में ऐसा कुछनहीं हुआ !

प्रिय पाठकगण मेरा यह सोचना क़ि पंडित राम अवतार शर्मा जी , बन्सलजी ,पवैया जी , शिवदयाल जी तथा जगन्नाथ प्रसाद श्रीवास्तव जी जैसे ग्वालियर के  पुराने साधकों के होते हुए महाराज जी मुझ जैसे नये साधक को सबसे आगे अपने निकट आमंत्रित कर के बैठाएंगे एक दिवा स्वप्न के अतिरिक्त और कुछ न था ! 
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 प्रियजन , इस प्रसंग में ही हमे अभी बहुत कुछ कहना है ! लेकिन  इसके पहिले क़ि यह संदेश भी कहीं गुम  हो जाये आज इसे भेज देता हूं ! क्रमशः कहानी पूरी कर दूंगा !
हाँ आपने सुना ही होग़ा क़ि यहाँ ह्मारे नगर में आजकल इतनी जबर्दस्त बर्फबारी हो रही है जितनी पिछले पचास वर्षों में नहीं हुई !  घर के आगे पीछे बर्फ के पहाड़ खड़े हैं. !
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निवेदक: व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"

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