सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

साधन- भजन कीर्तन # 2 8 8

हनुमत कृपा - अनुभव                                                 साधक साधन साधिये 

साधन- भजन कीर्तन                                                                       (२ ८ ८)

रामचरित मानस के उस अंश का भावार्थ ह्म दोनों को समझाते हुए बड़े भैया ने बताया कि ,दशरथनंदन श्रीराम के इस प्रश्न पर कि  बनवास की अवधि में रहने के लिए वह  किस स्थान पर  अपनी कुटिया बनाएं  , बाल्मीकि ऋषि  ने  कहा  :

" हे राम ! जो साधक अपने गुरु से प्राप्त महामंत्र  का जाप नियमित रूप से ,नित्यप्रति  करते हैं , जो  सपरिवार अति श्रृद्धा -भक्ति से  अपने "इष्टदेव" का सिमरन, अर्चन वन्दन पूजन , नामजाप , भजन और कीर्तन करते हैं , जो  अपने "इष्ट" से भी अधिक अपने गुरुदेव से प्रेम करते हैं और जिन्हें अपने "इष्टदेव" से उनकी कृपा करुणा एवं दया के अतिरिक्त और किसी भी सांसारिक सुख सुविधा की अपेक्षा नहीं होती ,-  हे मर्यादा पुरुषोत्तम ,आप जानकी और लक्ष्मण सहित ऐसे साधकों के "हृदय" में  निवास करिये!" 

भैया अवस्था में मुझसे बहुत  बड़े थे ! उनके पिता ने  बचपन में  ही उन्हें अपने कुलगुरु से  दीक्षित करवा दिया था !  उनका गुरु मन्त्र भी  "राम नाम" ही था !  बचपन से ही वह "राम नाम" के  उपासक थे , उनके गुरु ने उन्हें नाम दीक्षा ही दी थी ! अमृतवाणी पाठ  के बाद उन्होंने हमसे कहा " भोला ,इतना आनंद आया क़ि मैंने आज यह निश्चय  कर लिया  क़ि अब मैं  नित्य प्रति  अमृतवाणी  का पाठ करूँगा और यदि जीवन में कभी भी दिल्ली पोस्ट हुआ तो "श्रीराम शरणम"  अवश्य जाया करूंगा !"  

उन्होंने  यह भी कहा क़ि " तुम दोनों धन्य हो क़ि जीवन के प्रथम चरण  में ही तुम्हें ऐसे सिद्ध सद्गुरु मिल गये ! उनसे जुड़े रहो और लगे रहो अपनी साधना में ,तुम्हारा कल्याण निश्चित है " ! भैया का यह आशीर्वाद ह्म दोनों को बहुत अच्छा लगा ! हमें मानस का वह प्रसंग याद आ गया जब बड़े भाई श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को भक्त-भक्ति के लक्षण बताते हुए कहा था :

जातें बेगि द्रवऊं मैं भाई ! सो मम भगति भगत सुखदाई !!
भगति तात अनुपम सुखमूला ! मिलइ जो संत होईं अनुकूला !!
मम गुण गावत पुलक सरीरा ! गदगद गिरा नयन भर  नीरा !!
वचन कर्म मन मोरि गति भजन करहि निहकाम !!
तिन्ह   के हृदय  कमल     महूँ करऊँ सदा विश्राम !!

भ्राता राम के वचन सुन कर जिस प्रकार  लक्ष्मण आनंद से रोमांचित हो गये थे  वैसे ही ह्म भी अपने रामभक्त पूज्य  भैया का आशीर्वाद पा कर  आनंदित हुए ==  

भगति जोग सुनि अति सुख पावा !लछिमन प्रभु चरनन्हि सिरु नवा !!

भैया ने आगे कहा " और हाँ मैं अगले रविवार फिर  आउंगा और तुम्हारी आवाज़  में पूरी अमृतवाणी का गायन अपने नये वाले फिलिप्स रेकारडर पर रिकार्ड कर लूँगा"!यह बात १९६१ -१९६२  की है ! उन दिनों रील वाले रेकार्डर एकाध लोगों के पास ही होते थे और तब तक मेरे पास भी कोई रेकार्डर नहीं था , मैं स्वयं उनका सेट देखना भी चाहता था ! हमारे  हाँ कहने पर अगले रविवार वह आये और उन्होंने पूरी अमृतवाणी रिकार्ड कर ली  ! 

इसके बाद भैया क़ी पोस्टिंग कानपूर के बाहर हो गयी , मैं भी देश विदेश आता जाता रहा बहुत दिनों तक उनसे भेंट नहीं हुई !  कुछ वर्षों के बाद भैया की  पोस्टिंग नयी दिल्ली हुई और इत्तेफाक से रहने के लिए उन्हें वेस्ट किदवई नगर में सरकारी फ्लेट एलोट हुआ ! श्री राम शरणम उनके फ्लेट से इतना निकट था कि वह  टहलते टहलते वहाँ पहुँच सकते थे  और वह प्रति दिन प्रातःकालीन सभा में जाने भी लगे ! ऎसी अनिर्वचनीय  कृपा होती है साधकों पर उनके गुरुजनों की !

पाठकगण ! आप सोच रहे होंगे क़ि मैं "भजन" की महत्ता बताते बताते कहाँ भटक गया !
ऐसा कुछ  नहीं है !वास्तव में मैं चर्चा कर रहा हूं ,स्वामीजी दारा रचित एवं  विश्व भर में  असंख्य साधकों द्वारा नियमित रूप से ,भजन कीर्तन सदृश्य ,स्वर-ताल में  गाई जाने वाली "अमृतवाणी " की ,जो गानेवालों के साथ साथ सुनने वालों पर भी एक अमिट प्रभाव डालती  है !
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आज इतना ही , शेष कल बताउँगा !
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"

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