गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

साधन -भजन कीर्तन # 2 91


साधन -भजन कीर्तन  # २ ९ १ 
एक भजन 
विनती 
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प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे ,चरण पड़े ह्म बालक तेरे 
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे 

व्यर्थ गंवाया जीवन सारा पड़ा रहा दुरमति के फेरे 
चिंता लोभ क्रोध ईर्षा वश अनुचित काम किये बहुतेरे
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे 
भीख मांगता दर दर भटका,झोली लेकर डेरे डेरे 
तेरा  द्वार खुला था पर मैं पहुँच न पाया दर तक तेरे 
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे      

ठगता रहा जन्म भर सब को ,रचता रहा कुचक्र घनेरे 
नेक चाल नहिं चला,सदा ही रहा,कुमति माया के फेरे 
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे

मैं अपराधी जन्म जन्म का,झेल रहा हूं घने अँधेरे 
तमसोमा ज्योतिर्गमय कर, अन्धकार हर लो प्रभु मेरे 
प्रभु हर लो सब अवगुण मेरे

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विनीत  निवेदक 
शब्दशिल्पी 
व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 

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