रविवार, 27 फ़रवरी 2011

"स्वर ही ईश्वर है" # 304

"हनुमत कृपा - अनुभव                                                            साधक साधन साधिये 

हमारा साधन - भजन                                                                                 ( ३ ० ४ )
                                                  
                                                       "स्वर ही ईश्वर है"

उस्तादजी से प्राप्त उपरोक्त सूत्र,"गुरु मन्त्र" के समान मेरे मन बुद्धि पटल पर, सदा सदा के लिए ,फौलादी अक्षरों में अंकित हो गया ! उस दिन के बाद मैं, अपने निजी अनुभव के आधार पर ,सम्पर्क में आये सभी संगीत प्रेमी प्रियजनों को कभी न कभी इस परम सत्य सूत्र की सार्थकता एवं उपयोगिता से अवगत कराता रहा !

इस प्रथम पाठ के बाद उस्ताद जी की देख रेख में अधिक से अधिक स्वरसाधना करने का हमारा कार्यक्रम कुछ दिनों तक यथावत चलता रहा !इस बीच उस्तादजी के "जतिगायन" का शोध कार्य समाप्त हो गया और उनका कानपुर आना जाना भी धीरे धीरे कम हो गया! तभी १९५६ में मेरा विवाह हुआ जिससे संगीत की साधना से मेरा ध्यान थोडा घटा पर जब १९६० में ,मेरी छोटी बहन माधुरी का विवाह ,लखनऊ में ही हो गया तब हमारा रेडिओ से सम्बन्ध लगभग टूट सा ही गया ! सारांश यह है कि उसके बाद उस्तादजी से अनेकों वर्षों तक हमारी मुलाकात नहीं हुई !

इस बीच उस्तादजी पूरी तरह से मुम्बई में बस गए!संयोग से सन १९९७ में हम भी मुंबई पहुंच गए ! इस समय तक वह विश्वविख्यात हो चुके थे ,भारत सरकार द्वारा "पद्मश्री" उपाधि के लिए मनोनीत हो चुके थे, एक फिल्म में "बैजू बावरा" का किरदार निभा चुके थे ,एक में "उमरावजान" के उस्ताद बनने का मौका भी पा चुके थे ! अनेक फिल्मों में संगीत निर्देशन करने के प्रस्ताव भी उनके सन्मुख थे ! मुंबई के हरिहरन ,सोनू निगम , कविता कृष्ण मूर्ति जी आदि अनेक सुप्रसिद्ध गायक उनके शिष्य बन चुके थे ! उस्ताद जी की प्रसिद्धि एवं सफलता आकाश छू रही थी !

यह उस्ताद जी की महान उदारता थी की उन्होंने फोन पर मेरी आवाज़ पहचान ली और मुझसे भेंट करने के लिए वह खुद ही बांदरा से अल्तामाऊंट रोड तक हमारे घर आने को तैयार हो गये! यह अनुचित होता इसलिए मैं स्वयं उनके घर गया ! उन्होंने मुझे गले लगाया ! "मेरे भोला भाई" कहकर उन्होंने मेरा परिचय घर में सबसे कराया ! यह मेरे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात थी की मेरे जैसे साधारण शागिर्द को उन्होंने याद रखा !

मैं आपको बताऊ की बीच के इन ५० वर्षों में मैं भी संगीत क्षेत्र में निष्क्रिय नहीं रहा था ! मैं इस बीच अपने इन्हीं उस्ताद जी के बताये महान सूत्र के सहारे, "स्वर में ही ईश्वर" के दर्शन करता कराता अपनी संगीत साधना में जुटा रहा !

उनसे प्राप्त वह "गुरुमंत्र" जीवन भर मेरी संगीत साधना का मूलाधार-प्रेरणा सोत्र बना रहा और केवल उसका अनुकरण करते हुए मैंने भक्ति संगीत के क्षेत्र में जो सीखा, जो सिखाया वह किसी भी अनपढ़ अज्ञानी अशिक्षित संगीतग्य के लिए असंभव था !

प्रियजन,मुझे उस्तादजी की दुआओं के कारण इस बीच अप्रत्याशित सफलताएँ भी हुईं !"षड्ज" के उच्चारण से "ईश्वर" को पुकार कर "उनसे" ही प्राप्त दैविक प्रेरणा के बल पर भक्ति संगीत के क्षेत्र में मैंने सैकड़ों गीतों की शब्द एवं स्वर रचना की और संसार की दृष्टि से लुकते-छिपते १९७३ से आजतक रामायण एवं भजनो के सात एल पी एलबम और १०-१२ केसेटों तथा सीडियों में शब्द -स्वर- संगीत संयोजन किया ! सम्भवतः उन भजनों को सुनकर और गाकर, अनेको भक्त हृदयों को आनंद की अनुभूति भी हुई!

याचना करके कहता हूँ कि मेरा यह कथन अहंकार से प्रेरित न माने ! मैं इस कथन द्वारा अपना वह दृढ विश्वास व्यक्त कर रहा हूँ जो मुझे उस्ताद जी से प्राप्त उस मन्त्र पर तथा अपने "इष्ट"की स्नेहमयी अहेतुकी कृपा पर सदा से है और जो दिन पर दिन स्थायी भी होता जा रहा है !




 "स्वर ही ईश्वर है"
तथा   
   " एके    साधे  सब सधे , सब साधे सब जाय " 
जिसमे आज मैं जोड़ रहा हूँ 
   " जो जन साधे एक स्वर भवसागर तर जाय "

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क्रमशः 
निवेदक: वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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