सोमवार, 7 मार्च 2011

"आभार" ( # 3 1 1 )

      
                                                        "आभार"

"प्यारे प्रभु" के आदेशानुसार अप्रेल २०१० से आत्मकथा के नाम से "अपनी- उनकी -प्रीति  कहानी" लिखनी  शुरू की ! "प्रेरणा स्रोत" बन कर "उन्होंने" जब, जो कुछ लिखवाया, वही लिखा ! यदि कहीं भूल से भी  मैंने अपनी क्रिया शक्ति अथवा मस्तिष्क का " ग्रे-अंश "   प्रयोग करने  की कोशिश की तो "उन्होंने" तुरत अपना "वीटो" ठोक दिया ! मेरी भाषा  में यदि "उनको" असत्य अथवा अहंकार की एक भी झलक दिखी तो "उन्होंने" बस फटाफट बिना संकोच के उस सन्देश को ऐसा गायब (डिलीट) किया कि मेरे स्थानीय कम्प्यूटर गुरु - बेटे बेटियां और  नाती -पोते , पुरजोर कोशिशें करके भी उसे वापस नहीं ला पाए!

यारों ,"उनका" हुकुम बजा रहा हूँ ! बिना यह सोचे कि कोई पढ़ता है या नहीं, मै लिखता जा रहा हूँ ! अभी तक प्रति दिन एक की गिनती से सन्देश "पोस्ट" करता आया हूँ ! इस प्रकार अप्रेल २०१० से कल तक मैं ३१० सन्देश भेज चुका हूँ  !

यहाँ अमेरिका वाले मेरे सभी "ग्रांड - बाल -बच्चे" अंग्रेज़ी में ब्लॉग लिखते हैं ! इत्तेफाक से,कल परिवार के तीन जेनेरेशन के ब्लोगरों का सम्मलेन हो गया ! "यू . पेन".वाली गुडिया शिवानी के ब्लॉग स्वादिष्ट व्यंजनों पर होते हैं ! मुझे मिष्ठान वर्जित हैं अस्तु मैं उसके "डेजर्ट बेकिंग" के ब्लॉग जरुर पढ़ता हूँ ,इस बहाने कुछ मिठास मुंह में आ जाती है!

हाँ तो ब्लोगरों के सम्मेलन में मेंरे परिवार की " टी .डी " (अमरीकी एडिशन) शिवानी बेटी ने मुझसे कहा  "बाबा आपके ब्लॉग की  भाषा बहुत क्लिष्ट है ( उसने difficult कहा था ) मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता"!(पाठकगण सोच कर बताइएगा ये "टी .डी" क्या है )

उस सम्मलेन में ,कैसे उत्तर देता उसे कि इतनी क्लिष्टता कहाँ से आ गयी मेरी भाषा में ! चलिए आप को बता ही दूँ ! जब मैं हाई स्कूल में पढ़ता था तब भारत में अंग्रेज़ी शासन था जिसमे सरकारी काम काज में  उर्दू और अंग्रेज़ी भाषा का ही प्रयोग होता था ! स्कूलों में हिन्दी से अधिक उर्दू पर जोर दिया जाता था ! हिन्दी सौतेली सन्तान जैसी थी ! ऐसे में मैंने हिन्दी केवल दसवीं कक्षा तक ही पढ़ी थी ! मेरे सौभाग्यवश ( ? ) जब शिवानी की दादी मेरे जीवन में आयीं तो हाल यह था कि मैं मेट्रिक तक हिन्दी पढ़ा था और शिवानी की दादी हिन्दी में "एम् ए" करके "पी एच डी" झटक कर "भोला बो"  बने रहने के बजाय "डाक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव" बनने के चक्कर में  थीं ! (  पूर्वी यू. पी में बहुओं को चिरंजीव बेटे जी के नाम के आगे "बो" लगा कर पुकारा जाता है ! आपने स्टारप्लस चेनेल पर "प्रतिज्ञा" सीरियल देखा होगा जिसमे ठाकुर सज्जन सिंह ,इलाहाबादी की हवेली में बहुओं को आज भी "शक्ती बो" और "कृष्णा बो" कह कर पुकारा जाता है !)

विवाह के बाद पहली बार ससुराल से विदा होकर दादी (तब नव बधू थीं ) मायके गयीं और वहां से जो पहिला पत्र उन्होंने शिवानी के बाबा को (अर्थात मुझको ) भेजा ,उसका शब्दार्थ भावार्थ सच पूछो तो सर्वार्थ समझ पाने के लिए मुझे नाकों चने चबाने पड़े ! कहीं से हिदी से इंग्लिश की डिक्शनरी मांग कर लाया ,घंटों माथा पच्ची कर के एक एक शब्द का अर्थ जाना तब कहीं आँक पाया उनके अंतर के उद्गारों की गहरायी ! आज कल जो केवल तीन शब्दों में व्यक्त होता है ( आई मिस यू ) केवल उतना ही समझने में तीन दिन लग गये !

ये तो गनीमत हुई कि वह लम्बी छुट्टी पर नहीं गयी थीं और उनके अधिक पत्र नहीं आये अन्यथा उनके लौटने से पूर्व ,उस हिन्दी शब्दकोष शोधन  के आधार पर श्रीमती जी से पहिले ही मगर्वारा या संडीला यूनिवर्सिटी अवश्य ही मुझे हिन्दी भाषा विज्ञानं के "डोक्टर" की उपाधि से विभूषित कर देती !

हाँ घर पर ब्लोगर सम्मेलन चल रहा था ! शिवानी ने मेरे ब्लॉग के भाषा की क्लिष्टता की शिकायत की ! सभी अमरीकी इंडियन  ब्लोगरों ने शिवानी का समर्थन किया ! उनका  कहना ठीक है , मैं जानता हूँ पर बेबस  हूँ ! प्रियजन मैं लिखता नहीं , कोई और लिखवाता है ! मैं मजबूर हूँ !

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थक गया हूँ यहीं समाप्त करता हूँ !  
सोच के बैठा था कि "भजन द्वारा ईश-मिलन" के विषय में लिखूंगा पर "उन्होंने"  विचारों की धारा को अपनी मर्जी का मोड़ दे दिया ! जो लिखवाया लिखा ,जो शीर्षक दिलवाया वही 
दिया ! आगे क्या होगा वह ही जाने !

निवेदक :- व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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1 टिप्पणी:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

बहुत खूब श्रीवास्तव जी । आनन्द आ गया ।
आपका हमारे बीच होना हमारा सौभाग्य है ।