सोमवार, 14 मार्च 2011

अनुभवों का रोजनामचा # 3 1 7

                                             अनुभवों का रोजनामचा 

                                                     आत्म कथा

आज उन तीनो जापानी वृद्धा महिलाओं पर जो चमत्कारिक कृपा "श्रीहरि" ने की उसे सुन के तो जी में यह आया कि हिमालय की चोटी पर खड़ा हो क़र जोर जोर से चिल्लाऊँ --

         मेरे प्रभु तेरी जय होवे  ,जय हो मालिक जय होवे , मेरे राम तेरी जय होवे

उन तीनों को "श्रीहरि" तीन  दिन अपने बाहुपाश में जकड़े रहे ! अपने "उर लगा उत्संग में लेकर","वह" उन्हें सुनामी की  प्रलयंकारी  लहरों की बर्फीली शीतलता में भी गर्माते   रहे ! उनमे से एक को "वह" पेड़ की शाखा के रूप में मिले ! औरों को "वह" सुनामी की तूफानी तरंगों में तैरती उनकी मोटर कार में , उनके सहयात्री सहयोगी बन क़र मिले ! बड़ा जबरदस्त बहुरुपिया है "वह कृपानिधान" , अपना भगवान !

इससे पहले कि सन्देश  # ३१४ में अधूरा छोड़ा अपना निजी अनुभव सुनाऊ , "वह" जोर दे कर कह रहे हैं कि " मन में उठी तरंग कागज़ पर उतार दे , मेरे प्यारे ",  तो लीजिये पहले वही लिख देता हूँ :

इच्छा तो यह है कि आपको अपने मन की वह तरंग सस्वर सुनाऊं ! आज वीडिओ क्लिप भेजने का जुगाड़ नहीं हो पाया , कल फिर ट्राई  करूंगा ! आज केवल शुभ संकल्पों से मन को भर कर "उनका" सुमिरन करिये , "वह" अवश्य पीड़ितों की पीड़ा घटा देंगे ! 

सांस सांस हरि सुमिरन करिये 
मन शुभ संकल्पों से भरिये 
होगा जन जन का कल्यान
कृपा करेंगे श्री भगवान 
श्री राम जय राम जय जय राम 
सब पर कृपा करो हे राम 

अब आपको वह अनुभव सुनाऊं ! बूढ़ी बेबे (दादी) पंखा झल रही थी ! रेल की बोगी में थोड़ी थोड़ी देर में गाना गा कर भिक्षा मांगने वाले भिक्षुकों की टोलियाँ गाती बजाती आती जाती रहीं ! मैं ऊंघता रहा ! ,थोड़ी देर में मुझे ठंढा लगने लगा ! ऐसा लगा जैसे बाहर से ठंढी हवा का झोंका अचानक ही रेल के डिब्बे में घुस आया ! बेबे ने खादी का अपना मोटा दुपट्टा मेरे ऊपर डाल दिया ! थोड़ी देर में मौसम इतना सुहाना हो गया कि मैं पूरी तरह सो ही गया !ऐसे में सुन्दर सुखद सपनों का आना स्वाभाविक है , पर हुआ कुछ उल्टा ही !

कितनी देर सोया , कह नहीं सकता ,पर जब भी आँख खुली तब जाना कि गाड़ी खड़ी है  और चारों ओर गहन अंधकार छाया है !  इतना घना अँधेरा कि स्वयम हाथ को अपना हाथ भी नहीं दीखता ! साथ में बेबे हैं या कोई और यह जानना भी असम्भव था ! जब स्वस्थ हुआ तो इस सोच में पड़ गया कि दोपहर २ बजे लखनऊ से छूटी गाड़ी जिसे ४ बजे से पहले कानपूर पहुचना था मध्य रात्रि में कहां अटकी पड़ी है ?

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शेष कल ( यदि उन्होंने कोई अन्य आदेश नहीं दिया )
निवेदक: वही. एन .  श्रीवास्तव  "भोला"
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1 टिप्पणी:

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

बहुत ही अच्छा वर्णन लगा । श्री वास्तव जी ।