गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

मेरा यह ब्लॉग - क्यों ?

मेरी "आत्म कथा" को समेटे मेरा यह ब्लॉग -  
"महाबीर बिनवौ हनुमाना"  
क्यों ?

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(गतांक से आगे) 
 
परमात्मा ने जिन संस्कारों से सुसज्जित करके, जिन सांसारिक सुविधाओं से लैस करके, जिन पस्थितियों में जिस परिवार में , जिस जाति, जिस गोत्र में, जिस स्थान पर हमें जन्म दिया हम वहीं जन्मे,और "उन्होंने" जब, जो भी हमसे करवाना चाहा वह करवा लिया! यह "उनका" नियम है और मुझ पर भी यह बाकायदा लागू हुआ है !  

रोज़ी रोटी कमाने और परिवार की परवरिश के लिए ६0 वर्ष की अवस्था तक प्यारे प्रभु ने मुझसे, शायद मेरे पिछले जन्मों के कर्मों का हिसाब चुकता करवा देने के लिए, अति नीच समझा जाने वाला "शूद्रों" का काम करवाया लेकिन इसमें एक बात उल्लेखनीय रही कि वह कर्म करते समय मुझे कभी भी यह नहीं लगा कि मैं कोई सज़ा भुगत रहा हूँ ! सच पूछिए तो मेरी तल्खियाँ दूर करने को, और मुझे सपरिवार आनंदित रखने के लिए "प्यारे प्रभु" ने मुझे वह तथाकथित शूद्रों वाला कार्य करते समय भी, बीच बीच में बड़े बड़े संतों के दर्शन तथा उनके सानिध्य का सौभाग्य दिया ! इन ६० वर्षों में मुझे जिन विशिष्ट दिव्य महात्माओं का  घनिष्ट सानिध्य मिला, उनमें प्रमुख हैं : 

१. श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज (मेरे सद्गुरु) तथा श्री राम शरणम लाजपत नगर नयी दिल्ली के उनके उत्तराधिकारी 
२. श्री श्री माँ आनंदमयी 
३. श्री माँ निर्मला देवी (सहज योग)
४. श्री स्वामी मुक्तानंद जी 
४. श्री स्वामी चिन्मयानन्द जी 
५. श्री स्वामी अखंडानन्द जी    (आदि) 

मेरे निजी और मेरे सम्पूर्ण परिवार के जीवन को रसमय मधुर और आनंदमय  बनाने में इन दिव्य आत्माओं का योगदान अति महत्वपूर्ण है ! इन महान विभूतियों से प्राप्त दिव्य संदेश मैं अपने लेखों द्वारा आप तक धीरे धीरे पंहुचा ही रहा हूँ ! माँ आनंदमयी की विशेष करुणा और कृपा की कथा आप को पहले सुना चुका हूँ ! 

रिटायर हो जाने पर बच्चों ने हमे और कोई काम करने नहीं दिया ! उनका कहना था "जैसे   शुभ संस्कार आपने हमे दिए हैं, हमारे बच्चों को भी दीजिये , "Why should your grand children be deprived of that ?" मेरे  अधिक समझदार मित्रों ने बिना मांगे राय दी , हमे समझाने की कोशिश की ! "Don't get fooled .They want you to become Baby Sitters for their kids ,while they enjoy parties"!  सब अपने अपने अनुभव से ही राय देते हैं ! 

बुजुर्गों से सीखा था "सुनो सबकी, करो अपने मन की, खूब सोच समझ कर"!  हमने वैसा  ही किया और हमारा अनुभव उनके अनुभव से एकदम विपरीत हुआ ! हम बच्चों के Baby Sitters नहीं बने, उलटे हमारे बच्चों और उनके बच्चों ने हमारी ही देख भाल की ! अब वे ही हमारे Baba Sitters हैं ! हमें हाथ पकड़ कर चलाते फिराते हैं, उठाते बैठाते हैं  !

परिवार की दैनिक प्रातःकालीन प्रार्थना के कारण, जिसमे हम सब एक साथ, मानस तथा गीता जी के चंद चुने हुए शिक्षाप्रद पदों को भावार्थ के साथ पढ़ते थे , हमारे बच्चों के चरित्र पर बहुत सुन्दर प्रभाव पड़ा था !,इसके अतिरिक्त चाहे हम जहाँ भी रहे , भारत में या विदेश  में हमारे बच्चे हमेशा हम दोनों के साथ मन्दिरों और सत्संगों में अवश्य जाते थे, ध्यान से प्रवचन सुनते थे और उनके नोट्स भी बनाते रहते  थे !

मैं जानता हूँ कि आप पारिवारिक प्रार्थना तथा सत्संगों की महिमा कदाचित मुझसे कहीं अच्छी तरह जानते हैं फिर भी मैं आपको बता रहा हूँ ! यह किसी अहंकार वश नहीं ! इसके द्वारा मैं एक तरफ स्वयम अपने आपको  और दूसरी तरफ आप सब को रिमाइंड करवा रहा हूँ, कि हमें अपनी समवेत पारिवारिक साधना में ढील नहीं देनी चाहिए, कम से कम उस समय तक जब तक बच्चे हमारे साथ हैं ! 

सूचना: ग्वालिअर के श्री राम परिवार द्वारा संकलित, दैनिक प्रार्थना के, तुलसी मानस तथा गीता जी के चुनिन्दा अंश धीरे धीरे प्रेषित करूंगा !
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क्रमशः
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निवेदक :- वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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2 टिप्‍पणियां:

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम बहुत सुन्दर ! उस पत्र के बाद अधिकारियों ने चेन्नई लिंक रद्द कर दिया और आज तक नहीं चालू हुआ है !

Shikha Kaushik ने कहा…

संस्कार ही मनुष्य को मनुष्य बनाते हैं .आपके संस्कारों से युक्त आपकी संतान भी आपके अनुसार ही चलेगी .बहुत सुन्दर प्रस्तुति