रविवार, 1 मई 2011

सत्य साईँ बाबा # 3 5 7


 
सत्य साईँ बाबा 

पिछले दो दिनों से शून्य से जूझ रहा हूँ !

टूटते तारों की तरह नाना प्रकार के विचार मेरे अँधेरे हृदयाकाश में कौंधते तो हैं 
लेकिन कुछ पलों तक चमक कर पुनः उसी अन्धकार में विलीन हो जाते हैं 
और फिर शेष रह जाता है   
"मेरा शून्य और मैं" !

कल ही "बालाजी" शीर्षक  हिन्दी ब्लॉग के प्रणेता 'गोरख नाथ जी शा' से प्राप्त साईँ बाबा के महा समाधि के समय के कुछ चित्र मिले ! देखकर दो भाव जगे ! पहला - बाबा का वह शयन केरल में कोट्टयम देवस्थान के भगवान विष्णु के "अनंत शयनम" मुद्रा से कितना मेल खाता है ? और दूसरा- बाबा के समाधि स्थल के चित्रों ने मुझे द्वारकाधीश योगेश्वर श्री कृष्ण के गोलोक धाम गमन के समय की करुण स्मृति दिलायी ! कृष्ण के वियोग में अनाथ से हो गये श्रीकृष्ण के परम प्रिय सखा - ब्रह्मज्ञानी उद्धवजी बिलख बिलख कर रुदन कर रहे थे ! बिछोह असह्य था , श्रीकृष्ण के बाद उद्धव जी के पास उनसे प्राप्त ज्ञान और उनका अंतिम आदेश ही जीवन का एकमात्र आश्रय था ! 

कुछ वैसा ही नजारा  सत्य साईं बाबा की महासमाधि के समय था, जहाँ विश्व के बड़े बड़े महापुरुष ,नेता ,राजनेता ,कलाकार ,खिलाडी ,वैज्ञानिक .शोध -कर्ता से लेकर भारत के सरलतंम अनपढ़ अनुयायी  अपने साईं के अंतिम दर्शन के लिए और  अपनी अंतिम श्रद्धांजली अर्पित करने के लिए प्रशांत निलयम आये थे ,;जो पंख विहीन पक्षी की भांति आकुल -व्याकुल थे ;फिर भी उन्हें एक ही सहारा था कि उनका साईं उनके अंग -संग है ;उनसे दूर नहीं है !साईं की बिभूति ,साईं की कृपा ,साईं के  दर्शन ,साईं  का आश्रय ही उनका सम्बल है ,उनका मार्ग दर्शक है ,उनकी व्यथा को हरने वाला है और सदा रहेगा ऐसा उनका अटल विश्वास है !

परमात्मा प्रतिपल हमारे साथ है इसका अनुभव ह्म सभी को जीवन में हर क्षण होने वाली विविध घटनाओं के साथ  होता रहता है पर उसे ह्म नजरंदाज़ कर जाते हैं |जब हमारे जीवन में कोई ऐसी घटना घटती है जहाँ हमारा सामर्थ्य ,हमारा बल. हमारा विवेक, हमारा विचार सभी  निष्फल हो जाता है तब  उस समय कोई अनजान अदृश्य शक्ति हमें उस आपत्ति से निकाल कर हमारी रक्षा करती है! ऐसी दशा में ही हमें उसअदृश्य परम दिव्य शक्ति में अपने इष्ट या सद्गुरु की कृपा का दर्शन होता है ! उसमें हमें भगवान की छवि दिखाई देती है !


 हमारा अटूट विश्वास है कि भगवान हमारा रक्षक है ,पालक है ,पोषक है, सहायक है,शक्तिदायक है !वही हमारा मनोबल है तो वही हमारा शारीरिक बल भी है !वह नर है तो वह नारायण भी है !जैसे भूख से व्याकुल  मरणासन्न व्यक्ति को अन्न का दाना देने वाला व्यक्ति  साक्षात् भगवान  सा प्रतीत होता है या प्यास से तडपते हुए व्यक्ति को पानी पिलाने वाला, उसके लिए ,उसका भगवान होता है ,उसी प्रकार भौतिक  तापों से पीड़ित व्यक्ति के लिए ,उसके दुःख - दर्द दूर करने वाला व्यक्ति ही उसका भगवान बन जाता है ! शिरर्डी साईं बाबा भी तो अपने समय के भगवान थे !अर्थात अपने भक्तों की जरूरत के अनुसार विविध भौतिक पदार्थों तथा यथेष्ट शक्ति का दान करके वे  उनके पालक और रक्षक बन जाते थे ! सत्य साईं बाबा इसीलिये अपने श्रद्धालु जनों की दृष्टि में भगवान थे !


श्री मदभगवद गीता के विभूति योग के आधार पर मेरा ऐसा विचार है कि  साईं बाबा में भी परमात्मा की दिव्यमें  विभूतियाँ इतनी अधिक मात्रा में समाहित थी जो  साधारण  व्यक्ति के आचार- विचार  में मिल पाना असम्भव है ,उन्हीं -दिव्य विभूतियों तथा  दिव्य सिद्धियों  के कारण वे  जन जन के  भगवान बन गये ! उनकी  पूजा -अर्चना उनकी दिव्य शक्ति की पूजा -अर्चना है ! किसी ने कितनी सारगर्भित पंक्ति लिखी है 
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हर साँस में हर बोल में हरी नाम की झंकार है 
हर नर मुझे भगवान है हर द्वार मन्दिर द्वार है 

सत्य साईं बाबा ,आनंदस्वरूप थे और अनुभव गम्य थे ! अतएव उनके भक्त अपनी  हर अनुभूति में उन्हें पा सकते हैं ! वास्तविकता तो यह है की हालांकि वह समाधिस्त हो
गये हैं , उनके भक्तों ने न तो उनको खोया है न उनसे विलग ही हुए है !

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निवेदक: श्रीमती कृष्णा व् व्ही. एन.श्रीवास्तव "भोला"
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4 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

हमारा अटूट विश्वास है कि भगवान हमारा रक्षक है ,पालक है ,पोषक है, सहायक है,शक्तिदायक है !वही हमारा मनोबल है तो वही हमारा शारीरिक बल भी है !वह नर है तो वह नारायण भी है !जैसे भूख से व्याकुल मरणासन्न व्यक्ति को अन्न का दाना देने वाला व्यक्ति साक्षात् भगवान सा प्रतीत होता है या प्यास से तडपते हुए व्यक्ति को पानी पिलाने वाला, उसके लिए ,उसका भगवान होता है ,उसी प्रकार भौतिक तापों से पीड़ित व्यक्ति के लिए ,उसके दुःख - दर्द दूर करने वाला व्यक्ति ही उसका भगवान बन जाता है ! शिरर्डी साईं बाबा भी तो अपने समय के भगवान थे !अर्थात अपने भक्तों की जरूरत के अनुसार विविध भौतिक पदार्थों तथा यथेष्ट शक्ति का दान करके वे उनके पालक और रक्षक बन जाते थे ! सत्य साईं बाबा इसीलिये अपने श्रद्धालु जनों की दृष्टि में भगवान थे
बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट आभार.

Shikha Kaushik ने कहा…

सत्य साईं निश्चित रूप में प्रभु के ही अवतार थे .उन्हें हमारा शत-शत नमन .सार्थक पोस्ट .

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम ...मै तो समझा था की आप को मेरा इ- मेल नहीं मिला है , पर यह पोस्ट पढ़ कर तसल्ली हो गयी ! बहुत ही सुन्दर ब्याख्या आप ने की है ! बुजुर्गो से यही तो सीखने को मिलता है !

Patali-The-Village ने कहा…

सत्य साईं निश्चित रूप में प्रभु के ही अवतार थे|