शनिवार, 14 मई 2011

"संकट" से मुलाकात और रक्षा # 3 6 4

संकट से हनुमान छुडावे 
(आत्म कथा)  


(गतांक से आगे) 

फ्रेश होकर, कपड़े बदल कर, मैं भाभी की ड्रेसिंग टेबल के शीशे के आगे खड़ा हुआ और अपने घने घुंघराले बालों को ,उस जमाने के सिने जगत के प्रसिद्ध हीरो भारत भूषण की तरह संवारने लगा !  ( भैया जी , मेरे आज के इस गंजे सर को देख कर हंसिये नहीं ! ६० - ७० वर्ष बाद , खुदा-न-खास्ता, आपकी भी ऎसी गति हो सकती है ! बददुआ नहीं दे रहा हूँ , दुआ कर रहा हूँ की आपके बाल, सालो साल ऐसे ही काले घने घुंघुराले बने रहें ) ! 

इस बीच  भाभी मुझे उस शाम की पूरी कहानी संक्षेप में सुना रहीं थीं ! "मोहल्ले के बच्चों ने आकर बताया की "मेंन रोड पर एक बड़ी गाड़ी का ड्राइवर सब लोगों से 'भोला भैया' के पिताजी का घर पूछ रहा है ! बुद्धू को बाबाजी का नाम भी नहीं मालूम है ! आस पास के सभी 'भोला' नामक लोगों के दरवाजे खटखटा चुका है ! भोला शुक्ला और भोला पासी, के घर भी हो आया है ! हमे लगता है अपने भोला भैया को ही खोज रहा है ! पांच सात  मिनट में यहाँ पहुचने ही वाला है !" आप सोच रहे होंगे कि हम कैसे पिछड़े मोहल्ले के लोग हैं जो एक बड़ी कार देख कर बेज़ार हो गये ! ऐसा कुछ नहीं है भैया ! ये कहानी तब की है जब भारत में बड़ी कारें केवल बड़े बड़े मिल मालिकों के पास और रजवाड़ों में ही होती थीं ! हाँ, आजादी के बाद कुछ शौकीन नेता लोगों के पास भी ऎसी गाड़ियाँ आ गयीं थीं !

आगे भाभी ने बताया,- " फिर थोड़ी देर में वो गाड़ी घर के सामने रुकी , घर की काल बेल 
बजी और वह "बला" घर में दाखिल हो गयी ! ज़ोरदार नाटक हुआ ! मुझे देखते ही मुझसे लिपट गयी जैसे चिर परिचित हो !  दौड़ कर अम्माजी के चरण छुए , बाबूजी को प्रणाम किया ,और तब से बाबूजी का इंटरव्यू ले रही है जैसे किसी अखबार की कोरेसपोंनडेंट हो !
तैयार हो गये हो तो जाओ , बाबूजी की जान बचाओ और खुद झेलो उसे ! तब तक मैं नाश्ता ले कर आती हूँ "  मैं सहमा हुआ ड्राइंग रूम में घुसा ! 

हम सब बच्चे बाबूजी से बहुत फ्री थे ! हमारे बीच खूब हंसी मजाक चलता था !  दोस्ताना कटाक्ष करते हुए बाबूजी बोले  " आइये आपका  ही इंतजार हो रहा था ! देखिये कौन आया है ? दूर दूर क्यों ,यहाँ सामने बैठिये ,शर्माइये नहीं" ! प्रियजन ! सच मानिये मुझे उनका नाम भी नही याद आ रहा था ! जीजी की ससुराल में एक झलक भर देखी थी जब उन्होंने मुझसे अकेले में मौका पा कर ,कहा था कि वह मेरे घर में मुझसे मिलेंगी !

वह कुछ देर चुप रहीं , फिर उन्होंने सीधी गोली दाग दी " बाबूजी कह रहे थे आप चारो भाई बहेन गाने बजाने के बड़े शौक़ीन हैं और आपके बड़े भैया सिनेमा के हीरो बनना चाहते थे ! कहीं आपका इरादा भी आगे चल कर सिनेमा में जाने का तो नहीं है ?" ! 

मैं उनके इस direct hit  के लिए तैयार नहीं था ! मुझे उनके इतने  विचित्र बिहेविअर के कारण बड़ा आश्चर्य हो रहा था ! भारतीय सांस्कृतिक परिपेक्ष में उनका इस प्रकार बिना किसी पूर्व सूचना के अपनी शादी तय करने के लिए स्वयम ही मेरे घर पहुंच जाना और सीधे मेरे पिता और  मुझसे भी इस प्रकार टेढ़े मेढ़े सवाल करना केवल मुझे ही नहीं मेरे पूरे परिवार को बड़ा अटपटा और अस्वाभाविक लगा ! लेकिन-

वह  देखने सुनने में ठीक ठाक थीं , पढ़ी लिखी थीं और सत्ता पक्ष के एक प्रभावशाली नेता की पुत्री तथा स्वतन्त्रता के बाद सहसा धनाढ्य हुए बड़े भाई की छोटी बहेन थीं और इतनी बड़ी चमचमाती लेटेस्ट मॉडल शेवि सुपर डिलुक्स शोफर ड्रिवेन कार पर बैठ कर हमारे घर आयीं थीं ! किसी साधारण मानव के लिए इतने tempting advantages को यूँही  ignore कर पाना असंभव है , और तब मैं बड़े बड़े सपने देखने वाला ,एक नासमझ नवयुवक था ! 

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क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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4 टिप्‍पणियां:

Patali-The-Village ने कहा…

चलो उसने अपना वादा तो निभाया|

Bhola-Krishna ने कहा…

आपने कहा :
चलो उसने अपना वादा तो निभाया
मेरा कहना है :
वो वादा निभाना विपद बन के आया
औ हनुमत् ने तब मेरा जीवन् बचाया
धन्यवाद आपने ब्लोगर के संकट के क्षणो मे भी याद रखा !

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम सुन्दर पोस्ट ! मजा आ गया !

Bhola-Krishna ने कहा…

गोरख जी !
भैया ये आत्म-कहानी है
इसमें मुझको प्रियजन तुम को इक सच्ची बात बतानी है ,
भैया ये आत्म-कहानी है
करने वाला यंत्री प्रभु है, हम सब हैं मात्र यन्त्र "उनके"
अपने जीवन के अनुभव से यह बात तुम्हे समझनी है
भैया ये आत्म-कहानी है