बुधवार, 18 मई 2011

हिन्दी ब्लॉग जगत - # 3 6 7

हम आभारी हैं "हिन्दी" ब्लॉग जगत के 

पिछले एक वर्ष में ३६५ ब्लॉग पोस्ट करने वाले 
अनाडी खिलाड़ी -"भोला-कृष्णा" के उदगार 


हिन्दी ब्लॉग लेखन और उससे जुड़ी समस्याओं (विशेषतः सम्मान समारोहों) के विषय में लिखे कुछ संदेश तथा उनपर दागे हुए ,कुछ स्वनामधनी ,विद्वान् ,बुद्धिमान-गुणवानऔर चरित्रवान ब्लोग्कारों के कटीले कमेंट्स पढ़ कर स्वभावतः हमाँरा मन अति दुखी हुआ और हम यह सोचने को मजबूर हुए कि इस उम्र में (भोला -८२ .कृष्णा-७५ ), हम कहाँ फंस गये इस पचड़े में ! लेकिन क्षण भंगुर रहे ये विचार !

कुछ देर बाद ,यह सोच कर कि नापाक जुबांन बोलने वाले एकाध ब्लोग्कारों के अतिरिक्त असंख्य  लेखक लेखिकाएं भी तो हैं जो स्वयम अति सुंदर लेख लिख रहे हैं और हमारे जैसे नौसिखियों को अपने प्रोत्साहन भरे संदेशों से --"लिखते रहने " की प्रेरणा देते रहते हैं ! सच पूछिए तो इन विशिष्ट ब्लोग्कारों के उत्साहवर्धक कमेंट्स के बल पर ही मुझे अपने प्यारे प्रभु का आदेश पालन करने ,गुरुजनों की इच्छापूर्ति करने , तथा अपने बच्चों की वर्षों पुरानी स्नेहिल "मांग" पूरी कर पाने का सुअवसर दिया !

हार्दिक धन्यवाद , साधुवाद पूरे हिन्दी ब्लोगर परिवार का  

ब्लॉग लेखन अब हमारे लिए ईशोपासना का एकमात्र साधन  है ! यह ही हमारी आराधना है ,पूजा है, हवन है , आरती है ! आपने मुझे पूजा पथ पर अग्रसर रहने का सन्देश देकर  स्वयम एक बड़े पुण्य का काम किया है और हम प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारी पूजा का भी सुफल आपको प्राप्त हो ! पुनः आभार स्वीकार करें !

हमारे ब्लॉग "भोला की आत्म कथा" की भूमिका 

भैया ये आत्म-कहानी है 
इसमें मुझको, प्रियजन, तुमको, इक सच्ची बात बतानी है 
भैया ये आत्म-कहानी है 

करने वाला "यंत्री प्रभु" है, हम सब हैं, मात्र यन्त्र "उनके" 
अपने जीवन के अनुभव से यह बात तुम्हे समझानी  है 
भैया ये आत्म-कहानी है 

हमसे ज्यादा है फिक्र "उसे" हम सबकी ये तुम सच मानो
हम इस जीवन की सोच रहे "वह" तीन काल का ज्ञानी है 
भैया ये आत्म-कहानी है 

जो भी प्रभु इच्छा से होगा, वह हितकर होगा, हम सब को  
मत समझो उसको ही हितकर जो तुमने मन में ठानी है 
भैया ये आत्म-कहानी है 

बाहर से जो मीठा लगता वह कडवा भी हो सकता है 
मानव बाहर की देख सकें , अंतर की किसने जानी है 
भैया ये आत्म-कहानी है

 मुझको दोषी मत कहो स्वजन ,है सारा दोष "मदारी" का  
 "भोला बन्दर"  मैं क्या जानू अंतर "मयका-ससुरारी" का   
रस्सी थामे मेरी, मुझसे वह, करवाता मनमानी है  
भैया ये आत्म-कहानी है
  
करता हूँ, केवल उतना ही, जितना "मालिक" करवाता है
लिखता हूँ केवल वो बातें जो "वह" मुझसे लिखवाता है
मेरा कुछ भी है नहीं यहाँ सब "उसकी" कारस्तानी है भैया ये आत्म-कहानी है
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"भोला" 
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कहानी तो सुनानी ही है , कल से फिर शुरू कर दूंगा !


उस प्यारे प्रभु की कृपा की चर्चा सुन कर आनंदित होना
 (NOSTALGIA महसूस  करना)
because of the blissful remembrance of the loving LORD 
स्वाभाविक है  
as our ultimate HOME is there where HE dwells . 
We should ever be HOME SICK to reach there.


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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"     
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2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

भोला जी नमस्कार,
पिछले कुछ दिनों से नेट से परेशान हूँ बहुत कोशिश के बाद भी आपके और अन्य ब्लोग्स तक पहुँच नहीं बना पाई हूँ.और इतने अच्छे ब्लॉग दर्शन से वंचित रहना पड़ रहा है.आपकी हर पोस्ट संग्रहणीय है और मेरे ज्ञान की वृद्धि कर रही है .आभार.

Patali-The-Village ने कहा…

आप ने सही लिखा है हमारे जीवन की डोर ऊपर वाले के हाथ में है|