गुरुवार, 19 मई 2011

प्रभु कृपा' से रक्षा # 3 6 8

आत्म कहानी 
"उल्टी गंगा"
 विवाह के लिए वर का वधु द्वारा साक्षात्कार
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अपनी विद्वता बखानने के चक्कर में बीच बीच में मैं आत्मकथा कथन से दूर हो जाता हूँ !कल ही मैंने अर्ज़ किया था कि -"लिखता हूँ वही जो वह लिखवाता है" -भाई विश्वास कीजिए एकदम परवश हूँ ,"उसके"  जियाए ,"उसकी जूठन खाय" के जी रहा हूँ ! "उनकी"  हुकुमुदूली कैसे कर सकता हूँ ?  आशा है आप मेरी मजबूरी समझ गये होंगे !

चलिए १९५० के मेरे उस साक्षात्कार का आनंद लीजिये !

जनक वाटिका में श्री राम और सीता का नेत्र मिलन हुआ था ! प्रियजन, आपके शर्मीले भोला जी तो उन देवी जी के मुखारविंद को निहार ही नहीं पाए ! बेचारे वहीं ड्राइंग रूम में उनके बगल वाले  सोफे पर बैठे  उन आधुनिक जानकी जी पर ठीक से एक नजर भी नहीं डाल पाए ! दसरथ- नंदन राम के समान साहसी बन कर पुष्प वाटिका में पुनि पुनि जनकनंदिनी सिया की ओर अपनी नजर घुमाने की जुर्रत करना तो दूर की बात थी -

अस कहि पुनि चितए तेहि ओरा ! सिय मुख ससि भये नयन चकोरा !!  

मैं केवल कनखी से निहारता रहा अपनी सिया जी की सुन्दरता ( जिसमे उनकी अपनी मेड अप सुन्दरता से कहीं अधिक मुझे उनकी WAXPOL से माँज माँज कर चमकाई हुई  शेवी सुपर डिलुक्स कार की चमक ही दिखाई दे रही थी ) और इस प्रकार :

देखि सीय सोभा सुख पावा ! हृदय सराहत बचनु न आवा !!
जनु बिरंचि सब निज निपुनाई ! बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई !!
सुन्दरता कहं सुंदर करई ! छाबिग्रह दीपसिखा जनु बरई  !!         

अपनी जनकदुलारी की सुन्दरता से अधिक मुझे उनकी उस बड़ी कार की चमक दमक ने आकर्षित कर रखा था ! प्रियजन मैं अपनी कमजोरी-"कार पाने की लालच" से भली भांति अवगत था ! आशा बंध रही थी कि इतनी बड़ी नहीं तो कम से कम बिरला जी के हिंदुस्तान मोटर्स की नयी छोटी गाड़ी - 'हिंदुस्तान टेन' - तो मिलेगी ही !

अम्मा - बाबूजी को भी उस सम्बन्ध से कोई एतराज़ नहीं था पर उसका कारण कुछ और ही था ! हमारी नामौजूदगी में बाबूजी और अम्मा ने उससे काफी लम्बी बातचीत कर ली थी जिसके आधार पर अम्मा की यह दलील थी -" जब यह दो वर्ष की थी तभी उसके पिता नहीं रहे ! बेचारी बिना पिता की है ! दोनों भाई अपने अपने काम में लगे हुए हैं ! किसी को लडकी की शादी की फिक्र ही नहीं है ! बेवा माँ बेचारी कहीं आ जा नहीं सकती ! लडकी को खुद अपने विवाह के लिए दौड़ धूप करनी पड रही है !"  बता ही चुका हूँ मेरे बाबूजी कितने दयालु थे , इसके अलावा शायद वह यह भी सोच रहे थे कि मैं उस बालिका में इंटरेस्टेड हूँ और शायद वह मेरे कहने से आई होगी ! आप समझ ही सकते हैं कि ऐसे में मेरे विवाह के विषय में तब क्या निर्णय हुआ होगा !

दुल्हा राजी ,अम्मा राजी , भौजी  औ भैया भी  राजी 
बाजी+ औ बाबूजी राजी , तु ही कहौ का करिहे काजी
( + मेरी अतिशय प्रिय छोटी बहन मधु चन्द्रा )   
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इप्तिदाये इश्क है भाई सम्हल जा 
आगे आगे देख तू होता है क्या क्या 
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क्रमशः 
निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव  "भोला"
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4 टिप्‍पणियां:

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम अतिसुन्दर विचार !

Shalini kaushik ने कहा…

aanand aa gaya.

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

धन्यवाद , आपका प्रोत्साहन हमे अपनी इस "उपासना" में लगे रहने को प्रोत्साहित करता है ! आशा है हमारे ब्लॉग का ये नया प्रारूप आपको पसंद आयेगा ! हमारी बड़ी बिटिया अथक हमे इस उम्र में सजाने संवारने का प्रयास करती ही रहती है ! आप ही कहो कैसे उरिण होंगे हम बिटिया के उपकारों से -(भोला कृष्णा

ZEAL ने कहा…

आदरनिय भोला जी ,
रोचक अंदाज़ में लिख रहे हैं आप। समझ सकती हूँ चमचमाती कार का स्वप्न कितना आकर्षक रहा होगा । आपके माता पिता के दयालु ह्रदय को नमन । अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।