शनिवार, 21 मई 2011

प्रथम प्रेयसी "कार" - बाकी सब बेकार # 3 6 9

गतांक से आगे:

इंटरव्यू चल रहा था ! मेरा ध्यान उनकी और कम था उनकी चमचमाती कार की ओर अधिक था ! स्वभाव से मजबूर था ! उनकी कार देख कर मुझे अपने घर की पुरानी कारों की याद आने लगी ! चलिए मैं आपको अपनी पहली प्रेयसी -एक छोटी सी कार की छोटी सी कहानी सुना ही दूँ ! पिछले पृष्ठों में मैंने बताया था कि भूरे बालों वाला मेरा प्यारा अरबी घोड़ा ,उस अफीमची साईस के चरस दारू का दाम चुकाते चुकाते खुद भी गांजे के धुंए के साथ उड़ कर काफूर हो गया !

इधर "शनी" देव की कृपा से हमारे बाबूजी जिस किसी भाड़े की सवारी पर चढ़ते उसका ही एक्सीडेंट हो जाता था ! अक्सर शाम को बाबूजी अपने शरीर के किसी न किसी अंग पर पट्टी बंधवा कर  घर लौटते थे ! चिंता का विषय था ! खबर मिलने पर उनके अवकाश प्राप्त जिला जज बड़े  भाई  ने इलाहबाद में उनके लिए केवल चार सौ रूपये में ( जी हाँ ४०० ही कहा मैंने यकीन करिये ) एक सेकण्ड हेंड कार खरीदी और उसे बाबूजी के लिए कानपूर भेज दिया ! 

वह कार तब दुनिया की सबसे छोटी कार थी ! इंग्लेंड की बनी उस कार का नाम ही था "बेबी ऑस्टिन" ! १९३८ की बात है , मैं ८-९ वर्ष का था ! कार प्रेमी जो था , स्कूल से लौट कर मैं गेराज में खड़ी उस 'बेबी' को  देखना नहीं भूलता था ! मौक़ा पाकर,हफ्ता पंद्रह दिन में , घर के नौकर से धक्का लगवाकर मैं उसे बाहर निकालता था और उसे अपने खुशबूदार  LUX साबुन से नहला धुला कर पुनः मोटर खाने में रख देता था !

उस छोटी गाड़ी की कहानी लम्बी है ,संक्षेप में बताऊंगा ! एक बुड्ढा शोफर रखा गया कि सम्हाल के धीरे धीरे चलायेगा ! लेकिन शनी देव ने इस सवारी पर भी अपनी  कृपा दृष्टि डाल ही दी ! धीमी रफ्तार में ही एक दिन वो हेलेट होस्पिटल के सामने वाले स्वरूप नगर के गोल चक्कर पर पलट गयी ! दो साइकिल वालों ने उठा कर सीधी की और नीचे से शोफर और बाबूजी को निकाला ! गाड़ी बहुत हल्की थी इस लिए  किसी को अधिक चोट नहीं लगी थी ! उस शाम को भी बाबूजी घायल अवस्था में घर लाये गये ! उसी रात यह निर्णय ले लिया गया कि इस कार को भी निकाल दिया जाये ! जल्दी ही एक ग्राहक भी मिल गया ! हमारी प्यारी बेबी ऑस्टिन के लिए वह पूरे चार सौ रूपये देने को तैयार भी हो गया !

विदा की बेला आयी , ग्राहक गाड़ी लेने को आया रजिस्ट्रेशन की किताब ग्राहक को  देने से पहले ये कन्फर्म करने को कि सब टेक्सेज पेड हैं जब बड़े भैया ने उस पुस्तिका का गहन अदध्यन किया तो वह चौक गये ! उस पुस्तक में लिखा था कि उस बेबी ऑस्टिन कार के  पहले मालिक थे वह सज्जन जिनका अनुकरण हमारे बड़े भैया बचपन से करते आये थे ! भैया ने उनका ही हेअर स्टाइल , उनके हाव भाव, उनकी मुद्राएँ, यहाँ तक उनकी आवाज़ की भी बखूबी नकल की थी !उनके देवदास, चंडीदास , दुश्मन , स्ट्रीट सिंगर आदि फिल्मों के कटआउटों से भैया के कमरे की दीवालें भरी पड़ी थी ! बड़े वाले H. M. V. ग्रामफोंन पर बजाने के लिए भैया के पास उनके सभी फिल्मी और प्राईवेट गानों के रिकार्ड थे ! एक तरह से वो सज्जन जिनका नाम उस पुस्तिका में प्रथम मालिक की जगह लिखा था वह हमारे बड़े भैया के भगवान् ही थे !  कह नही सकता पर शायद जैसे आजकल अमिताभ बच्चन ,रजनीकान्त , शाहरुख़ खान आदि की पूजा अर्चना घर घर में होती है  हमारे भैया भी उन 
महाशय की पूजा करते रहे होंगे !मेरे भी एक फिल्मी इष्ट थे भारत भूषन और मेरे फेवरिट गायक थे मुकेश जी ! लेकिन भैया के भगवान को हमे भी प्रणाम करना पड़ता था ! 

अब आपको बता ही दूं , उस प्यारी सी बेबी ऑस्टिन के पहले मालिक का नाम था : कुंदन लाल सहगल , मार्फत -न्यू थिअटर,  धरमतल्ला स्ट्रीट , कोलकत्ता !

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ये मेरी आत्म कहानी है , नाती पोतों को बतानी है
कल कह पाऊँ ना कह पाऊँ ,अब कल की किसने जानी है
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निवेदक : वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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4 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bahut bhavpravan hai aapki aatmkatha.padhte padhte man hatne ka naam hi nahi leta.apni purani cheezen aisee hi priya hoti hain.

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

राम राम श्री देवी , आपका कमेन्ट मेल में तो मिला , लेकिन यहाँ ३६९ में नहीं दिखा ! आप स्वयम यहाँ कुछ लिखें और फिर कन्फर्म हो जायेगा !मुझे तो यह बिलकुल ठीक लग रहा है ! -- पापा -

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत भावपूर्ण है आप की आत्म कथा| पढ़ने में अच्छी लगाती है| धन्यवाद|

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा लगा