शुक्रवार, 27 मई 2011

आत्म कथा # 3 7 2

गतांक से आगे:

बमुश्किल तमाम वो दिन तो कट गया ,लेकिन पंखे के बिना जून महीने के आखिरी दिनों की वह रात होस्टल के उस सख्त तख्त (लकड़ी के बेड ) पर काटनी कठिन लग रही थी ! रात भर करवटें बदलता रहा ! पिछले दो वर्ष की अनेकों खट्टी मिट्ठी यादें आती रहीं !

बनारस में १९४७ - ४८ में सबसे पहले मेंरी दोस्ती पूर्वी पंजाब से आये एक सिख विद्यार्थी से हुई ! उसने मुझे कभी अकेले में कोई गजल गुनगुनाते हुए सुन लिया था ! फिर क्या बात थी रोज़ शाम को ही वह मेरे कमरे में आजाता और बड़े दर्द के साथ सोनी महिवाल, हीर राँझा की लोक कथाएं मुझे सुनाता ! कभी कभी  ,पंजाबी लोक गीत और गजल सुनाने की फरमाइश करता ! मुझे तब तक केवल दो चार फिल्मी गजलें हीं आती थीं ! उन दिनों मै ज़्यादातर "जीनत"(?) फिल्म में हीरोइन "नूरजहाँ" के गाये नगमे बहुत फीलिग़ के साथ गाया करता था ! 

आंधियां ग़म की यूं चलीं बाग उजड़ के  रह गया
समझे थे आसरा जिसे वो ही बिछड़ के  रह गया)

ये दर्द भरा नगमा सुनकर नरकेवल (?)  खूब हँसता था (?- मेरी बड़ी बहू सिक्ख है , वो कह रही है पापा मैंने सिक्खों में ये नाम अभी तक नहीं सुना ' ,लगता है मै ही भूल रहा हूँ ) खैर वो कहता था " ऐसा लगता  तो है नहीं कि कोई तेरा बाग़ उजाड़ सकती है , तू ही उजाड़े तो उजाड़े ! छोड़ दे ऐसे जनाने गाने गाना , मर्दाने गाने गाया कर , पोल्या " !

एक दिन इतना कह कर वह अपने कमरे में गया और एक किताब हाथ में लेकर लौटा! वो  किताब थी (तब उतने मशहूर नहीं हुए शायर) "साहिर लुध्यान्वी" साहिब की "तल्खियाँ" !  अपनी भारी भरकम आवाज़ में उन्होंने उस किताब से एक  गजल पढ़ कर मुझे सुनाई और इसरार किया कि इसकी धुन बनाऊ और गाऊँ ! तभी उन्होंने साहिर साहेब से अपनी गहरी दोस्ती की बात जोर देकर मुझे समझाई और कहा  देखना एक दिन फिल्मी दुनिया में "साहिर" बड़ा नाम कमाएगा ! उन्होंने उस गजल के साथ साथ शायर के कालेज की ज़िन्दगी के बारे में भी काफी चर्चा की ! उस किताब से जो एक गजल उन्होंने मुझे नोट करवाई , वह थी -: 

मोहब्बत तर्क की मैंने गरेबां सीं लिया मैंने
जमाने अब तो खुश हो जहर ये भी पी लिया मैंने !! 

तुम्हे अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है 
कि कुछ मुद्दत हसीं खाबों में खो कर जी लिया मैंने !!

नरकेवल कहा करता था " उन्हें तोड़ने का मौक़ा क्यों दो , मर्द हो खुद तुम ही तोड़ लो !"  ,

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2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bhola ji sadar namaskar,
aapka har sansmaran padhkar man prafullit ho uthta hai.bahut shandar sansmaran.

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर चल रहा है संस्मरण| धन्यवाद|