मंगलवार, 31 मई 2011

आत्म कथा # 3 7 5

असफलता में भी प्यारे प्रभु की कृपा का दर्शन 


(गतांक से आगे):
                                                
रिजल्ट देखते ही मेरे पैरों तले की धरती सरक गयी ! उस समय ऐसा लगा जैसे किसी ने क़ुतुब मीनार की सबसे ऊपरी मंजिल से धक्का देकर मुझे नीचे फेक दिया और  सुनामी के पीछे आये भयंकर भूचाल के एक झटके में मेरी कल्पना का वह सुनहरा महल पल भर में टूट कर चकनाचूर हो गया !  इस प्रसंग का स्मरण होते ही मुझे गीता राय जी का एक बहुत पुराना गीत याद आया : "मेरा सुंदर सपना बीत गया - मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी , बेदर्द जमाना जीत गया - मेरा सुंदर सपना बीत गया "! 

उन दिनों मैं इतना उदास था कि कानपूर लौट आने के कुछदिनो  के बाद आकाशवाणी लखनऊ  से छोटी बहिन माधुरी के पास ,"स्वप्न लोक" शीर्षक से ,सुगम संगीत कार्यक्रम में गाने के लिए तीन गीत आये - "सपनों के महल बने बिगड़े " और "सपने मेरे टूट रहे हैं ",(तीसरे के बोल अभी याद नहीं आ रहे हैं )! मैंने उन तीनों गीतों की धुनें बनायी और इत्तेफाक से धुनें इतनी भाव भरी और पीड़ामय बनी कि रेडिओ स्टेशन के सम्बंधित पारखी अधिकारिओं को कहना पड़ा कि अवश्य ही ये धुनें किसी टूटे सपने वाले दुखिया ने बनाई होंगी !

युद्ध में हारा सिपाही "मै" खाली हाथ बनारस से कानपूर लौट आया था ! आप आश्चर्यचकित होंगे यह जान  कर  कि  परिवार के किसी सदस्य ने भी मुझसे कोई शिकवा  शिकायत नहीं की ! मेरे बाबूजी भली भांति जानते थे कि किस भयंकर मानसिक झंझा से जूझते हुए मैंने वह परीक्षा दी थी ! सच कहूं तो  सत्र (सेशन )के बीच में ही एक बार उन्होंने  मुझे पढ़ाई और परीक्षा छोड़ कर घर लौट आने का आदेश भी दे दिया था ! आभार मानता हूँ अपने परिवार के ज्योतिषी जी का जिन पर बाबूजी को पूरा  भरोसा था ! उन्होंने मेरी जन्म कुंडली पूरी तरह खंघाल कर निर्णय दिया था कि मुझे पढने दिया जाय और बाबूजी को विश्वास दिला दिया था कि उन विषम घटनाओं का मुझ पर कोई दुष्परिणाम नहीं पड़ने वाला है !मैं यहाँ आपको बता देना चाहता हूँ  कि इस सत्र में कई रोमांचकारी अनहोनी घटनाएँ घटीं थीं   ,जिनको प्रसंग आने पर , भविष्य में आपको सुनाऊंगा !    

प्रियजन ! कुछ समय बाद जब मैं उस धक्के से उबर गया  मुझे अहसास  हुआ कि उस दिन यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार ऑफिस में रिजल्ट देखने के बाद "जो" टूटा था , वह वास्तव में मेरा "स्वप्न महल" नहीं था ,बल्कि वह था मेरे मन की गहराइयों में कुछ दिनों से बसा हुआ  बिना श्रम किये ही प्राप्त होने वाले सुखों का मोह ;कार का  आकर्षण और समृद्ध परिवार से सम्बन्ध का लोभ ! मेरे मन में बरबस आ बैठे अतिथि श्री "माया मोह जी " ने मुझे इतना बेबस कर लिया कि मैंने वह सब तत्काल हथिया लेने का सपना संजो लिया ! शायद यह  मेरी तब  की  किशोर अवस्था जन्य मूर्खता थी अथवा विधि का कोई अदृश्य विधान !क्या हुआ ,कैसे हुआ ,उस समय तो मुझे इतनी समझ भी नहीं थी !जो हुआ उसका भी अपना एक इतिहास है !समस्त विषयों में उच्च श्रेणी के अंक प्राप्त हुए फिर कहाँ  कमी रह गयी ,किस विषय में और क्यों ? एक प्रश्न रहा !  जिस विषय में मैं फेल हुआ उस विषय में बी.एच यूं . के इतिहास में तब तक कोई फेल नहीं हुआ था ! इस प्रकार फेल हो कर अनजाने ही मेरे द्वारा बी एच यू में एक रेकोर्ड निर्मित हो गया ! चलिए पहले  आपको ये बतादूँ कि मुझे फेल करा कर हमारे इष्ट देव श्री हनुमान जी ने हमारे ऊपर कितने अप्रत्याशित उपकार किये -----

संकट मोचन हनुमान जी की कृपा से मेरा "मोह नाश"
 
देवर्षि नारद  के मोह की कथा तो आपने सुनी ही होगी ! कठिन तपश्चर्या के सुफल से पञ्च विकारों  पर विजय प्राप्त कर के नारद जी के मन में "काम" को बिना "क्रोध" किये ही जीत लेने से गहन अहंकार जाग्रत हो गया !  शिव जी के मना करने के बाद भी वह अपनी "काम विजय" की यश गाथा सुनाने  क्षीर सागर पहुंच गये और  श्रीमन्नारायण को अपनी सिद्धिप्राप्ति की पूरी कथा सुनाई ! सुन कर श्री हरि ने विचार किया कि नारद के ह्रदय में गर्व का बीज अंकुरित हो गया है,  जो उनके लिये अहितकर है ;अस्तु उसे उखाड़ फेकना जरूरी है !  श्री हरि ने इस प्रयोजन से अपनी माया द्वारा एक अति सुंदर नगर का निर्माण करवाया 

बिरचेउ मग महुँ नगर तेहिं सत जोजन बिस्तार ! श्री  निवासपुरतें  अधिक रचना  बिबिध  प्रकार !!

उस नगर का राजा था शीलनिधि और उसकी  एक बहुत ही सुन्दरी कन्या थी जिसका नाम था विश्वमोहिनी ! राजा के आदेश से राजकुमारी के स्वयंबर का आयोजन जोर शोर से चल रहा था !राजकुमारी विश्वमोहिनी के सौंदर्य से आकर्षित हो कर नारद  की उससे  विवाह करने की  प्रबल इच्छा जाग्रत हुई !  नारद अपना  वैराग्य भूल -बिसर गए और बस केवल एक चिन्तन में लग गये कि उस राजकुमारी को किस जतन से पाया जाय ! इस आशा से कि भगवान विष्णु उन्हें इतना आकर्षक स्वरूप प्रदान करेंगे कि राजकुमारी उन्हें वर लेंगी  नारद  श्री हरि के  पास गये और उनसे अपनी इच्छा व्यक्त की और अंत में यह विनती भी की --

अति आरति कहि कथा सुनाई !   करहु कृपा करि होहु सहाई !!
जेहि विधि नाथ होई हित मोरा ! करहु सो बेगि दास  मैं  तोरा !!''

ये वैसी ही प्रार्थना थी जैसी अपनी माँ से सीख कर मैं बचपन से ही अपने इष्ट देव श्री हनुमानजी से किया करता था ! मैंने सदा यही चाहा था कि प्यारे प्रभु मुझे वही वरदान दें जिसमें मेरा हित हो ! मुझे परीक्षा में फेल करा के  हमारे इष्ट ने भी वही किया था जो मेरेलिए हितकर था !  वही कृपा प्रसाद मुझे दिया जो मेरे लिए सर्वथा लाभ प्रद था ! मैं बेचेलर ऑफ़ टेक्नोलोजी की डिग्री नहीं पा सका जिसके कारण वह कार वाली देवी  जिनके सपनें मैंने देखने शुरू कर दिए थे वह मेरे हाथ से निकल गयीं ,ठीक वैसे ही जैसे विष्णु भगवान की कृपा से नारद जी विश्वमोहिनी को नहीं पा सके थे !

रामावतार में देवर्षि नारद जी ने जब अपने प्रभु से पूछा कि "आपने मेरे साथ ये अत्याचार क्यों किया ?  मुझे अपने जैसा सुंदर स्वरूप न देकर आपने मुझे बन्दर क्यों बना दिया ?  नारद जी की  शंका का समाधान करते हुए तब श्री राम ने उन्हें बताया    --

सुनु मुनि तोहि  कहहुं सह रोसा !भजहिं जे मोहिं तज सकल भरोसा !!
करहु  सदा  तिन्हकै   रखवारी   ! जिमि    बालक   राखहिं  महतारी !!

नारदजी  की रक्षा जैसे श्री हरि ने की उसी भांति मेरे कुलदेव  हनुमानजी ने मेरी रक्षा की !, मेरी झूठी निरर्थक कामनाओं के जाल से मुझे छुडाया, मेरे भावी जीवन को सुखद -सार्थक बनाया !वही दिया  जो मेरे हित में था!

मैंने क्या खोया आप वह तो जान गये , कल बताउंगा उसके बदले में प्यारे प्रभु ने मुझे क्या दिया ! 
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क्रमशः 
निवेदक : व्ही  एन .श्रीवास्तव "भोला" 
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7 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत अच्छा लगा ये पढ़कर की आप इतने पर भी भगवान से जुड़े रहे और अपने लिए अच्छा मानते रहे.आगे जल्द ही लिखयेगा.

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम ...कहते है सामने जो होता है किसी न किसी अच्छाई के लिए ही होता है ! आप के साथ भी वही हुआ ! इसीलिए कहते है, जो हुआ ..अच्छा ही हुआ

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत अच्छा लगा ये पढ़कर की आप इतने पर भी भगवान से जुड़े रहे| धन्यवाद|

Bhola-Krishna ने कहा…

शिखा बेटा , भगवान से जुड़े बिना कोई उपलब्धि सम्भव नहीं है !अस्तु "नाम जपता रहूँ काम करता रहूँ" ,केवल यही ध्येय है ! जब तक निभा पाया निभाउँगा ! अब तो आत्म कथा लेखन ही मेरी आराधना है ! दुआ करो कि अंतिम क्षण तक भजन करता रहूँ !
गोरख जी , प्रसन्न रहें ! इतनी कड़ी ड्यूटी करते हुए ब्लोगों को लिखना पढना ,कमेन्ट करना कैसे कर पाते हैं?धन्यवाद , आभार ,राम कृपा हो!

Madhav Mukund ने कहा…

आज मुझसे बोल बादल - आज मुझसे बोल रे !
आज मुझसे दूर दुनिया - आज मुझसे दूर रे !
क्या इनमे से कोई वह तीसरा गीत था ?

Smart Indian ने कहा…

बहत बढिया!

Bhola-Krishna ने कहा…

माधव बेटा, ये कथा तुम्हारे जन्म से १५ वर्ष पूर्व की है ! बच्चन जी के वे दोनों गीत मुझे बहुत प्रिय थे , मैं इन्हें गाता भी था --
तम भरा तू, तम भरा मैं , गम भरा तू गम भरा मैं
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल बादल= आज मुझसे बोल
और दूसरा गीत
बात पिछली भूल जाओ , दूसरी नगरी बसाओ
है चिता की राख़ कर में मांगती सिंदूर दुनिया == आज मुझसे दूर
माधव जी तीसरा गीत कोई और ही था! शायद तुम्हारी बुआ माधुरी को याद हो भारत जाकर उनसे पूछ कर बताना !
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पतली-डी विलेज जी तथा स्मार्ट इंडियन जी
आभार धन्यवाद , नजरे इनायत बनाये रखें !