शुक्रवार, 13 मई 2011

हनुमत कृपा से जान बची # 3 6 3

संकट से हनुमान छुडावे 


अम्मा ने शैशव काल  में ही मेरी यह दृढ धारणा  बना दी थी कि सब जीवाधारिओं पर उनके परम पिता  "प्यारे प्रभु" की असीम अनुकम्पा  जन्म से ही रहती है ! माँ के आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त इस अटूट प्रभु कृपा के कवच, और अपने पूर्व जन्म के संस्कार तथा प्रारब्ध के अवशेषों के फलस्वरूप मेरे मन में बालपन से ही यह भाव घर कर गया था कि मेरे जीवन में मेरे साथ जो कुछ भी हुआ है, हो रहा है और भविष्य में,जो कुछ भी होगा ,कडुआ या मीठा, वह सब प्रभु की इच्छा से ही होगा ; उनकी अनन्य कृपा से ही होगा और उसमे ही मेरा कल्याण निहित होगा !

अस्तु जीवन में मैंने किसी भी परिस्थिति का तिरस्कार नहीं किया ! प्रभु ने जो भी अवसर मुझे दिए ,उन्हें मैंने उनका वरदान माना,उनका सदुपयोग किया ! प्रभु की इच्छा से जो भी कार्य करने को मिले , उन्हें पूरी लगन और  ईमानदारी से "राम काज" समझ कर किया  ! मैंने अपने सभी  कर्मों का करने वाला कर्ता या "यंत्री "अपने इष्ट को ही माना और स्वयं को अपने "इष्ट देव" के हाथों द्वारा  संचालित औज़ार ! मुझे अपने इष्टद्व से प्राप्त प्रेरणाओं पर पूरा भरोसा था ,इसलिये में  सदैव आज्ञाकारी सेवक बन कर उनके द्वारा दिए निदेशों को पालन करने का  भरसक प्रयत्न  करता रहा !

प्लीज़ क्षमा करना , आदत से मजबूर मैंने एकबार फिर अपनी आध्यात्मिक ज्ञान पिटारी  की नुमायश शुरू कर दी ! This instinct of SHOWING OFF , as you know, is a natural HUMAN weakness - and I am proving  to be its worst victim -- Any way let us restart the story . इस बीच, मैं भूल गया कि मेरी अपनी कहानी कहाँ तक पहुंची थी ! चलिए टूटे ताने-बानें जोड़ लिए जाएँ और कहानी आगे बढायी जाये ! 

मैं  अपने जमाने - (१९४७-५१) के विद्यार्थी जीवन की चर्चा कर रहा था ! भारत कुछ महीने पूर्व  ही स्वतंत्र हुआ था ! योरप ,दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रिका के विभिन्न  देशों  में रहने वाले समृद्ध प्रवासी भारतीय मूल के निवासियों के बच्चे ,उस वर्ष, ऊंची पढाई के लिए इंग्लेंड जाने के बजाय भारत के विश्वविद्यालयों में आये ! BHU  में भी उस वर्ष प्रवासी भारतीयों की संख्या, और वर्षों से कहीं अधिक थी ! वहां एक अच्छा खासा मिश्रण था विभिन्न देशी और विदेशी विद्यार्थियों का , उनकी भाषाओँ का, रंगारंग संस्कृति-वेशभूषा  का और उनके  मिश्रित  oriental और पाश्चात्य जीवन शैली का ! यू पी के एक ओउद्योगिक  नगर से आये मध्यम वर्ग के मेरे जैसे - तब तक "केवल लडकों के स्कूल" में ही पढ़े बालक के लिए BHU का वो माहौल बड़ा ही आकर्षक था ! पर प्रियजन ,मैं बिगड़ा नहीं ! संस्कारों की इतनी मोटी तह जमी थी मेरे ऊपर कि वह ,वहां के मेरे प्रवास में तनिक भी नहीं धुली ! चदरिया ज्यों की त्यों रह गयी !

बेचलर डिग्री की परीक्षा दे कर गरमी की छुट्टियों का मज़ा लूट रहा था ! सारे पर्चे अच्छे हुए थे !डिग्री मिली ही समझता था ! जीजी की ससुराल में बड़े शान से अपना बेचेलर्हुड कैश कर रहा था ! और हाँ अनेकों सौभाग्यकंक्षिनी स्वजातीय ललनाओं में से एकाध मुझे समझ में भी आ गयीं थीं !  और मुझे ऐसा लग रहा था कि लगभग सभी आज्ञाकारिणी मातृभक्त बालाओं ने अपने काल्पनिक स्वयम्वरों में मुझे अपना बना लिया था ! एक ultra modern - convent educated बाला ने तो मौका पाकर एकांत में मुझसे यहाँ तक कहा कि वो शीघ्र ही मेरे घर में मुझसे मिलेंगी ! 

हर प्रसंग का अंत तो होता ही है ! वही हुआ जो चिर सुनिश्चित है -"मिलन के बाद जुदाई"

दो दिन का था वह मेला आई चलने की बेला,
उठ गयी हाट औ सब ने पकड़ी अपनी अपनी बाट !

और फिर 

तिलक चढा कर , जान बचा कर भोला बाबू आये
और  एक  दिन दरवाजे  पर  "कार"  देख चकराए

भारत में तब  'कार" नहीं देवालय ही बनते थे 
जिन पर चढ़ कर ,यात्रीगण बस ,राम राम जपते थे

शेवी सुपर डिलुक्स कार में वो नेता चलते थे
आजादी के पहिले जो दो पहियों पर चढ़ते थे 

"भोला" 

मैं हारा थका , साईकिल से कहीं दूर से घर पहुंचा था ! घर के बाहर एक बड़ी वाली शेवरले की सुपर डीलक्स  दुरंगी कार खड़ी दिखाई दी ! माथा ठनका ! पीछे की सीढी से चुपके चुपके साइकिल कंधे पर लादे ,पसीने में लतफत किसी तरह ऊपर पहुचा ! सारे घर में अफरा तफरी मची हुई थी ! 

पहुंचते ही भाभी ने घेर लिया ! "मैं जानती हूँ , अब इस उम्र में तुम्हारे भैया के लिए कौन आएगा ? ये तुम्हारी ही कोई चीज़ है"! मैंने पूछा "कौन भाभी ?' "जाओ खुद ही देख लो , चार बजे शाम से ही नाटक चालू है !अभी ड्राइंग रूम में बेचारे बाबूजी का interview चल रहा है, इसके बाद शायद तुम्हारा ही नम्बर होगा ! जल्दी से मुंह हाथ धो कर सज धज कर उनसे मिललो , बेचारे बाबूजी की जान बचाओ ! " 

मैं भाँप  गया , आगंतुका बालिका अवश्य ही मेरी जीजी के ससुराल वाली किसी बुआ , चाची या मौसी की होनहार बिटिया होंगी !       


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क्रमशः 
आप जानते ही हैं ,ब्लोगर महाशय कुछ गडबड कर रहे हैं ! 

निवेदक: व्ही. एन.  श्रीवास्तव "भोला"
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