गुरुवार, 30 जून 2011

जोड़े रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों # 3 9 4

राम कृपा से सद्गुरु पाओ 
आजीवन आनंद मनाओ 
उंगली कभी न  उनकी  छोडो 
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ 


प्रियजन , हमारे कल के सन्देश का पहला वाक्य था ,"जोड़े रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों" और मैंने कल के पूरे सन्देश में अपने निजी अनुभव के आधार पर आपको यह बताया था कि परमपुरुष देवाधिदेव सर्वशक्तिमान परमात्मा की असीम अनुकम्पा से ही साधक को सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है ! गुरुजन के सत्संग से साधक को आत्मोन्नति की राह नजर आती है और उसे अपने जीवन को साधनामय बनाने की प्रेरणा मिलती है !  

USA में आयोजित यह त्रि दिवसीय साधना -सत्संग एक ऎसी प्रयोगशाला थी जहाँ पर साधको के हृदय तंत्री की ध्वनि सद्गुरु अपने इकतारे के स्वर से मिला कर एक ऐसा दिव्य नाद गुंजरित करते है जो साधक को सीधे सर्वशक्तिमान परमेश्वर से जोड़ देता है !सद्गुरु के बताये साधना पथ पर चल कर साधक भोतिक-जीवन में तो उन्नति करता ही है वह उसके साथ साथ अपने इष्ट का सतत चिन्तन स्मरण भजन कीर्तन करता हुआ उस आध्यात्मिक स्थिति को पा लेता है जो उसे उसके इष्टदेव के निकटतम पहुंचा देता है और साधक का जीवन परमानन्द से भरपूर हो जाता है ! 

सत्संगों में सद्गुरु स्वयम गाता है ,मस्ती में झूम झूम कर  नाचता है और अपने साथ साथ साधकों को भी नचाता और गवाता है ! मैंने स्वयम देखा और अनुभव किया है यह दिव्य आनंद श्रद्धेय स्वामी जी महराज तथा श्री प्रेमजी महाराज और डोक्टर विश्वामित्र जी महाराज के द्वारा आयोजित सत्संगों में ! स्वामी जी महाराज को मैंने उनकी ही धुनों पर मस्ती से नाचते हुए साधकों के ह्रदय में राम नाम की लौ लगा कर उनके मन मन्दिर की  सुसुप्त भक्ति भवानी को जगाते हुए देखा है -

राम नाम लौ लागी अब मोहे रामनाम लौ लागी
उदय हुआ शुभ नाम का भानु भक्ति भवानी जागी
अब मोहे रामनाम लौ लागी

हमारे आदि ग्रन्थों ने "नारदमुनि " को विश्व का सबसे प्राचीन एवं सफल सद्गुरु बताया  है!नारद जी से मार्गदर्शन पाकर ध्रुव और प्रहलाद ने सर्वव्यापी परमेश्वर को पा लिया था ! उन दोनों बाल भक्तों की प्रेमाभक्ति से द्रवित होकर निराकार ब्रह्म भी साकार बनने को  विवश हो गए !नारद जी के बताये हुए साधना पथ पर चलने पर पार्वतीजी को भगवान शंकर मिल गये ! 

मार्ग सद्गुरु दर्शा देता है ;पर साधना पथ पर चलना तो साधक को ही पड़ता है ! प्रियजन  साधको को गुरु द्वारा निर्धारित साधन करते समय सदैव अपने सद्गुरु के अंग-संग ही रहना चाहिए , उनका आश्रय पल भर को भी नहीं छोड़ना चाहिए,सतत उनसे जुड़े रहना चाहिए ! अबोध बालक की देख भाल जैसे उसकी माँ करती है वैसे ही सद्गुरु साधक की सहज -संभार करता है ! प्रियजन , पर किसी साधक को नारदजी जैसे सद्गुरु मिलें कहाँ ?

इस सन्दर्भ में कृष्णा जी ने अभी मेरा ध्यान हमारे सद्गुरु दिवंगत परम पूज्यनीय श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के निम्न्नाकित कथन की ओर आकृष्ट किया :-

देव दया जब होनी चाहे !  सहज सुयोग सभी बन जाये !!
संत सुघड़ जिसको मिल जाये ! पुण्य उदय उसके हो आयें !!


स्वामी जी महाराज का यह दृढ मत था कि पूर्व निर्धारित सुयोग होने पर , देवाधिदेव परम पुरुष परमेश्वर की दिव्य अनुकम्पा से साधकों के लिए पहले से ही नियुक्त गुरुजन उनके  समक्ष प्रगट हो जाते हैं ! साधक को केवल उन्हें पहचानना शेष रहता है ! भैया , मैं मानता हूँ कि यह पहचानना सचमुच एक अति कठिन काम है ! पर यहाँ भी हमारा प्यारा प्रभू हमे उचित प्रेरणाओं से वंचित नहीं रखता !

सदगुरु स्वरूपनी अपनी जननी "माँ" को भी यदि कोई पहचान न सका तो उसके समान 
अभागा कौन होगा ! ऐसे व्यक्ति के लिए तो यह निश्चित ही जानिए कि उसके जीवन में सद्गुरु मिलन का सुयोग तब तलक नहीं आएगा जब तक उसके पूर्व जन्मों के संचित अनुचित कर्म फलों तथा इस जन्म में किये उसके पुन्य कर्मों के फलों का लेखा जोखा बराबर नहीं हो जाता ! 

प्रियजन ,मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे समान आपने भी निश्चय ही इस जीवन मेंअब तक अपना सद्गुरु पा लिया है ! ऐसा न होता तो कदाचित आपने आज तक मेरे इस शुष्क और 
नीरस ब्लॉग श्रंखला में पिछले १४ महीनों में मेरे द्वारा प्रेषित इन लगभग ४०० आलेखों को इतनी शांति और सुगमता से न झेला होता ! हार्दिक धन्यवाद और आभार प्रगट करता हूँ , स्वीकार कर अनुग्रहित करें !

अभी आपकी सेवा में आज प्रातः ही "परमपुरुष" की प्रेरणा से पूरी हुई अपनी यह रचना 
प्रेषित कर रहा हूँ ! एक छोटी सी अर्ज़ भी आपसे कर रहा हूँ कि " मेरे अतिशय प्रिय पाठकों प्रभू की विशेष कृपा से जब आपको आपके  मार्ग दर्शक गुरु मिल गये है तो आप अब भूले से भी उनकी उंगली न छोड़ें ,जहाँ कहीं भी वह आपको लेजाना चाहे आप उनके साथ साथ निर्भय हो कर जाएँ !आपका कल्याण होगा ! अर्ज़ है -
  
जोड़े  रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों 
छेड़े रहो हरि नाम की झंकार दोस्तों 
छूटे न कभी नाम का उच्चार दोस्तों
जोड़े रहो गुरुदेव से तुम तार दोस्तों

हो जाय तार तार चाहे तन का गरेबा, 
टूटे  नहीं उस तार की झंकार दोस्तों 
छूटे न कभी नाम का उच्चार दोस्तों 
छेड़े रहो हरि नाम की झंकार दोस्तों

सद्गुरु ने दिया है तुझे जो मन्त्र "नाम"का
उस तार को थामे करो भव पार दोस्तों
छेड़े रहो हरि नाम की झंकार दोस्तों
छोडो न कभी नाम का उच्चार दोस्तों 

"भोला" 
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डोक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव 
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3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सत्संगों में सद्गुरु स्वयम गाता है ,मस्ती में झूम झूम कर नाचता है और अपने साथ साथ साधकों को भी नचाता और गवाता है
bahut sundar sarthak likh rahe hain bhola ji.aabhar

शिखा कौशिक ने कहा…

प्रभु भक्ति की झंकार सदगुरू की कृपा से ही सुन पाते हैं .आप ने बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति द्वारा प्रभु नाम का उच्चार किया है .आभार

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम
बहुत ही सुन्दर विचार जानने को मिले !