मंगलवार, 2 अगस्त 2011

घर घर में "मीरा" (भाग २ ) # ४१२

देश में "मीरा"
विदेश में "मीरा"
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मीरा बाई की प्रेमभक्ति में सराबोर तथा आध्यात्मिकता से ओतप्रोत काव्य रचनायें भारत के सुदूरपूर्व के बंगाल प्रान्त से लेकर पश्चिमोतर के फ्रंटियर प्रान्त तक तथा उत्तर में तब के यू पी के ऋषीकेश से लेकर सम्पूर्ण दक्षिण भारत में प्रख्यात संगीतज्ञों- गायक-गायिकाओं द्वारा गायी जाने लगीं !

बाल्यावस्था में मैंने पंडित नारायन राव व्यास जी ,पंडित एन .वी . पटवर्धन जी , पंडित डी. वी.पलुस्कर जी तथा पंडित ओमकार नाथ ठाकुर जी द्वारा गाये अनेक भक्ति रस भरे पद सुने ! उनमे से कुछ अविस्मरणीय पद हमे तो याद है ,आप को भी अवश्य ही याद होंगे जैसे पलुस्कर जी द्वारा स्वरबद्ध "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो " तथा "चलो मन गंगा जमुना तीर"! तब से लेकर आज तक कितने ही नामी संगीतकारों ने "पायो जी मैंने राम रतन धन पायो " के लिए नयी धुनें बनाने के प्रयास् किये लेकिन पलुस्कर जी द्वारा गायी धुन से अच्छी कोई दूसरी धुन , मेरे खयाल में ,अभी तक बन नहीं पायी है !

सबसे पहिले बचपन में मैंने प्रथम बार १९३४-३५ में , ५-६ वर्ष की अवस्था में, सुगम धुनों में स्वरबद्ध, आधुनिक सुनियोजित बाजे गाजे के साथ गाये हुए "मीरा के पद" सुने ! HMV के ग्रामाफोन रिकार्डों पर ये भजन किसी बंगाली भद्र महिला के द्वारा गाये हुए थे ! बडी मधुर भक्ति पूर्ण आवाज़ थी उनकी और उनकी धुनें भी अति कर्ण प्रिय थीं ! उस छोटी उम्र में सुने मीरा के वे शब्द ,तथा उनकी धुनें मेरे जहन में इतनी मजबूती से समा गयीं कि उन्हें मैं आज ७० -८० वर्षों के बाद भी भुला नहीं पाया हूँ ! यूं समझिए कि मीरा की वो रचनायें मुझे वैसे ही याद हो गयीं जैसे उन दिनों ( १९२०-३० ) के दशक में अँग्रेजी की राईम " Twinkle twinkle little star " तथा "Jack and Jill went up the hill " स्कूली बच्चों को रटाईं जातीं थीं ! आम घरों में अक्सर इनका प्रयोग गाँव से पधारे मेहमानों पर इम्प्रेसन जमाने के लिए होता था ! हमारे घर में ,इन राइम्स की जगह, उषा दीदी और मुझसे , मीरा के वे पद सुनवाए जाते थे जिन्हें हम ने उन रेकार्डों से सीखा होता था ! हमारे अच्छे प्रदर्शन पर पूरा परिवार दादी ,माँ बाबूजी , और हम चारों बच्चे एक साथ ही यूसुफ मिया के तांगे पर बैठ कर निशात टाकीज में लगी "गंगावतरण ","सत्य हरिश्चंद्र " ,"गोपाल कृष्ण " ," सावित्री सत्यवान " जैसी फ़िल्में देखने जाते थे ! इस प्रकार भजन गाकर पुरुस्कृत होने की लालच ने हमे अधिकाधिक भजन गाने की प्रेरणा दी और भजनों की हमारी गुरु बन गयीं वह अज्ञात बंगाली भद्र महिला !

तब बहुत छोटा था रिकार्ड पर छपा नाम पढ़ नहीं सकता था अस्तु उन गायिका देवी का नाम नहीं जानता !(हो सकता है वो गायिका- जूथिका राय ही रही हों अथवा उनसे पहले की बंगाल की कोई अन्य महिला गायिका )! उनके वे रिकार्ड सुन सुन कर हमने भजन गाना सीखा ! प्रियजन ! वह देवी ,जिनकी वाणी ने उस छोटी अवस्था में हमे मीरा की संगीतमयी "भक्ति" से परिचित कराया चाहे वह जो भी हों मैं आज नतमस्तक होकर उनका वंदन करता हूँ !

चालीस के दशक में मैंने पहली बार ,भारत की , स्वरसम्राज्ञी,कोकिलकंठी ,संगीत के क्षेत्र में सर्व प्रथम भारतरत्न की उपाधि से विभूषित,प्रख्यात गायिका श्रीमती एम् एस सुब्बालक्ष्मी द्वारा गाये मीरा,के पद सुने ! ये पद उन्होंने संगीत निदेशक दिलीप कुमार राय जी के निदेशन में "मीरा" फिल्म की मीरा का किरदार निभाते हुए गाये थे!शास्ष्त्रीय रागरागिनियों के परिधान में ,भक्ति भाव के आकाश से नील वर्ण ( M S Blue) में रंगे ये भजन इतने आकर्षक थे कि उसकी चमक दमक के आगे अन्य सब धुनें ही फीकी पड गईं ! इन भजनों की धुनें इतनी भावपूर्ण थी कि अहिन्दी भाषी श्रोतागण भी बिना शब्दार्थ जाने उनके भाव समझ जाते थे ! उनका "तुम बिन रह्यो न जाय प्यारे दर्शन दीजो आय " सुन कर तो ऐसा लगता था जैसे मीराबाई स्वयम अपने कृष्ण के वियोग में विलख रहीं हों !
तभी तो त्रिकालज्ञ साध्वी श्री श्री माँ आनंदमयी जब एक बार मद्रास गयीं तब उन्होंने मद्रास के गवर्नर के राज भवन में न ठहर कर , M S S के घर जाने की इच्छा जतायी ! माँ ने साफ साफ कहा कि "मैं मीरा के साथ रुकूंगी"! माँ आनंदमयी की दिव्य दृष्टि ने M S S के स्वरूप में ५ शताब्दी पूर्व की श्री कृष्ण प्रेम दीवानी मीरा के दर्शन किये !
यहाँ U S A के जिस नगर में आजकल हम रह रहे हैं वहाँ एक अति भव्य मारुती मंदिर है ! ऐसा लगता है कि इस मंदिर के "महावीर विक्रम बजरंगी" को संगीत से कुछ विशेष लगाव है शायद तभी इनके स्थानीय कम्प्यूटर इंजिनिअर तथा डाक्टर भक्तों में से अनेक बहुत सुंदर गायक वादक भी हैं ! इन संगीत प्रेमियों ने एक भजन मंडली भी बना ली है ! ये सब मंदिर में ही नियमित रूप से संगीत का अभ्यास करते हैं और यदा कदा भजन गाकर ,अपनी श्रद्धा के सुमन श्री हनुमान जी के श्री चरणों पर अर्पित करते रहते हैं !

पिछले गुरूवार यहाँ के एक प्रमुख हस्पताल में कार्यरत डाक्टर श्रीमती लक्ष्मी रमेश ने मेरे अनुरोध पर मंदिर में रिहर्सल के दौरान मीरा का यह पद सुनाया , आप भी सुने :

बसों मोरे नैनन में नन्द लाला
अधर सुधा रस मुरली राजत उर वैजन्ती माला
बसों मोरे नैनन में नन्द लाला
क्षुद्र घंटिका कटि तट शोभित नूपुर शबद रसाला
बसों मोरे नैनन में नन्द लाला
मीरा प्रभु संतन सुखदाई ,भक्त वत्सल गोपाला
बसों मोरे नैनन में नन्द लाला



चित्र में बांयें से दायें - मैं , मंडली के सदस्य मधू जी ,गायक व हारमोनियम वादक रवि जी ,गायिका डाक्टर लक्ष्मी जी , उनके पति श्री रमेश जी ,श्री नरेश जी तथा तबले पर हमारे पुत्र श्री राघव जी !

इस मंडली के अधिकांश सदस्य मूलत: दक्षिण भारत के हैं ,सभी अहिन्दी भाषी होते हुए यहाँ U S A में तुलसी कृत "राम चरित मानस" का अति सुंदर पाठ करके सब को आनंदित कर रहे हैं ! इनका संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण भी सराहनीय है ! डाक्टर लक्ष्मी के गायन ने हमे श्रीमती M S सुब्बालक्षमी द्वारा गाये मीराबाई के भजनों की याद ताजी कर दी !आभारी हूँ हम चिन्मय मारुती भजन मंडली का; उनके सहयोग के लिए !

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निवेदक : व्ही. एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमाती कृष्णा भोला श्रीवा
एवं
चिन्मय मारुती भजन मंडली
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2 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

Mind is at peace after reading this post . Thanks Sir.

Bhola-Krishna ने कहा…

Zeal Ji, Let images of "HIS" gracious LOVE & MERCIES on U & your loved ones over crowd your mind always so that there is no room for disturbing thoughts AND then it will be
PEACE - PEACE & PEACE --- within U and all about U . .
God Bless you
BHOLA - KRISHNA