सोमवार, 22 अगस्त 2011

जय गिरधर गोपाल की


हाथी घोडा पालकी जय कन्हैया लाल की
जय गिरधर गोपाल की
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१९७५ से १९७८ तक मैं अपने परिवार के साथ ,साउथ अमेरिका के एक छोटे से देश (ब्रिटिश) गयाना की राजधानी जोर्ज टाउन में रहा ! उस पूरे देश की आबादी भारत के एक बड़े शहर की आबादी से भी कम थी ! देश की ५५ प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की थी ! भारतीय संस्कृति के प्रति वहाँ के निवासियों के हृदय में अपार श्रद्धा थी ! वहाँ उतनी ही हर्षोल्लास से शिवरात्रि दशहरा, दिवाली,होली,ईद, बकरीद मनाई जाती थी जितनी जोशोखरोश से कानपूर, लखनऊ और दिल्ली के शिवालयों और ईदगाहों में ! यहाँ के निवासियों की रहनी में जो एक चीज़ मुझे बहुत ही पसंद आई ,वह थी, वहाँ की विभिन्न जातियों और विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच की अटूट एकता और उनका अद्भुत भाई चारा !

इन सभी गायनीज़ के पूर्वज भारतीय थे ,जिन्हें अँगरेज़ ,पानी के जहाजों पर बैठा कर वहाँ उनके फार्मों में काम करने के लिए ले आये थे ! वे सब जहाजी कहे जाते थे ! भारत में वे किस शहर के थे , उनका धर्म उनकी जाति क्या थी , अब आज उनके वंशज नहीं जानते हैं ! उन्होंने तो अपने बचपन से अपने ही घर परिवार में किसी सदस्य को मंदिर जाते देखा है , किसी को चर्च तो किसी को नमाज़ अदा करते देखा !

गयाना के किसी आम घर के आंगन के एक छोर पर आप देखेंगे दादी की तुलसी का बिरवा उनका शिवाला और उसके सन्मुख ही दूसरी ओर साफ़ सुथरी जमीन पर बड़े करीने से फैली खानदान की बड़ी बहूबेगम के नमाज़ पढ़ने की इरानी कालींन ! कभी कोई झगड़ा नहीं कोई शोरो गुल नहीं ! किसी पर कोई पाबंदी नहीं, कोई जोर जबरदस्ती नहीं ! जिसको जो भाये जिस पर जिसकी आस्था जम जाए ;वही उसका धर्म- कर्म बन जाता !

घर के कामकाज में कृष्णा जी की मददगार गाय्नीज़ स्त्री का नाम था राधिका था जिसे होटल पेगासुस के शेफ सलीम ने कृष्णा जी से मिलाया था ! सलीम उसे दीदी मानता था ! राधिका ने ही हमे उस देश के निवासियों की इस विशेष संस्कृति से अवगत कराया था !

गयाना की हिंदू महिलाएं हर रविवार को मंदिर जाकर , पाश्चात्य वेश भूषा में भी अपना सर एक दुपट्टे से (ओढनी )से ढकतीं थीं ! सभी स्त्री पुरुष अपने सामने रामायण का पृष्ठ खोल कर रख लेते थे और बड़े भाव से दोहे चौपाइयां गाते थे ! हिन्दी पढ़ना तो ये लोग जानते न थे इसलिए चाहे पृष्ठ कोई भी खुला हो वे गाते वही पद थे जो उन्होंने अपने पूर्वजों से सुन कर याद कर रखा था ! उनकी मुंदी हुई आँखें ,भाव भरी मुद्रा और गवंयी गाँव की चौपाली शैली में रामायण पाठ हमे आज भी उनकी सहजता तथा उनकी एकनिष्ठ निष्काम भक्ति की याद दिलाता है और मन को छू जाता है!

अतीत के पन्नों में अंकित उपरोक्त स्मृति ने आज कृष्ण-जन्म पर मीरा का एक भजन याद दिला दिया , जिसे हमारी गाय्नीज़ बेटियों ने लगभग ३५ वर्ष पूर्व मुझसे सीख कर गाया था !बड़ा घिसा पिटा रेकोर्ड है पर "उन्होंने" सुनाने की प्रेरणा दी है , तो सुनाउंगा अवश्य ! इस भजन को सूर और तुलसी के अन्य भजनों के साथ मैंने एक गाय्नीज़ नव युवक श्याम तथा होटल के शेफ सलीम की बेटी और अपनी डोमेस्टिक हेल्प राधिका की भांजी तथा इंडियन कल्चरल सेंटर की श्रीमती गौरी गुहा तथा गयाना की एक अच्छी क्रिश्चियन गायिका कुमारी सिल्विया से गवा कर गयाना के पहले हिन्दी लॉन्ग पलेंइंग रेकोर्ड का एल्बम बनवाया - "भजन माला "!
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चलिए भजन सुन लीजिए
थोडा लाउड बजाकर आस पास वालों को भी मीरा की भावनाओं से अवगत कराइये ,
कौन सी भावना ?
कुछ न बन सके तो केवल मन ही मन प्रभु का नाम सिमरन कर के अपने भाग्य जगालो !
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बसुदेव सुतं देवं , कंस चाडूर मर्दनं
देवकी परमानन्दम कृष्णं वन्दे जगत्गुरूम
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कोई कछु कहे मन लागा ,कोई कछु कहे मन लागा
कोई कछु कहे मन लागा
ऎसी प्रीति करी मनमोहन ज्यों सोने में सुहागा
जनम जनम का सोया मनुआ हरी नाम सुन जागा
कोई कछु कहे मन लागा


कोई कछू कहे मन लागा
मात पिता सूत कुटुम कबीला टूट गया जैसे धागा
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर भाग हमारा जागा
कोई कछु कहे मन लागा
"मीरा"
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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