गुरुवार, 8 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

गयाना की "पूजा" के "गिरिधर गोपाल" - "मुकेशजी"
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(गतांक से आगे)

आपको बता चुका हूँ ,मुकेशजी ने १९७५ में बम्बई के एक बिजनेस हाउस के सहभोज में मुझे बताया कि "श्री राम गीत गुंजन" में रामायण का गायन सुन कर ,कलकत्ते के हार्ट अटैक में उनकी जीवन रक्षा हुई और आत्मिक शांति प्राप्त हुई थी ! देखा आपने कितनी बड़ी बात उस बड़े दिल वाले मुकेश दादा ने हमारे तब तक बिलकुल ही अज्ञात संगीतज्ञ परिवार के सदस्यों के प्रोत्साहन के लिए कह दी थी ! वास्तव में देखा जाए तो उनका यह कथन प्रभु श्रीरामजी और रामायण के प्रति उनकी अटूट आस्था , श्रद्धा और निष्ठां का प्रतीक था !

इतना ही नहीं, उन्होंने अपने जीवन रक्षा का पूरा श्रेय दिया था मेरी एक शब्द-स्वर रचना को जिसमे मैंने रावण के भाई विभीषण की मनःस्थिति का चित्रण किया था ! यह गीत ,मेरे निदेशन में उन दिनो के नवोदित गायक "पंकज उधास" ने गाया था ( वही पंकजजी जो बाद में अपने "घुंघरू टूट गए" और 'चिट्ठी आई है' से विश्व विख्यात हो गये ) ! मुकेश जी ने 'राम गीत गुंजन" में खासकर "पंकज" के इस गीत को बहुत सराहा था ! खुले दिल से पंकज की तारीफ़ करके उन्होंने अपने हृदय की विशालता से हमे परिचित कराया था !

चलिए उस रचनाविशेष के विषय में आपको कुछ बताऊ :

तुलसीदास ने मानस में कहा है कि , रीछ राज "जामवंत" के प्रेरणात्मक वचन सुनकर हनुमान जी ,एक छलांग में ही शत योजन सागर पार कर लंका में प्रवेश कर गए :

मसक समान रूप कपि धरी ! लंकहि चलेउ सुमिर नरहरी !!
अति लघु रूप धरेऊ हनुमाना ! पैठा नगर सुमिर भगवाना !!

निरंतर अपने इष्टदेव प्रभु श्रीराम का सिमरन करते हुए ,हनुमान जी , सीता माता की खोज में , रावण की लंका के प्रत्येक सुवर्ण प्रासाद में पैठ रहे थे

तभी हनुमान जी को

भवन एक पुनि दीख सुहावा ! हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा !!

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाय !
नव तुलसिका वृन्द तहँ देखि हरष कपिराय !!

यह महल लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण का था , जो प्रातः की अमृत बेला मे जागकर अपने इष्ट देव "श्री राम" का सुमिरन कर रहे थे :

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा , हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा !

मन ही मन हनुमानजी ने विचार किया कि इस भौतिक सुख -सुविधाओं से पूर्ण तामसी जीवन जीने वाली नगरी में सात्विक -तरंगों से पूरित और तुलसी -वृन्द से सुसज्जित इस भव्य मंदिर में कौन राम भक्त संत रहता है ? इधर बड़े भाई रावण द्वारा सीता जी के अपहरण के समाचार से दुखी विभीषण की उस समय की मनो भावना को संजोये ,मेरी वह रचना जिसे पंकज उधास तथा अन्य कलाकारों ने मिल कर गाया था , हाँ वही जिसका उल्लेख मुकेशजी ने किया था ,आपको सुना देता हूँ :



राम राम राम राम राम राम बोलो
राम सुमिर पल भर में भव के बंध खोलो
राम राम राम राम राम राम बोलो

भाई नाहि बन्धु नाहीं , अपनों कोउ मीत नाहि
लंक कीच बीच पड्यो राम तेरो चेरो

राम राम राम राम राम राम बोलो
राम सुमिर पल भर में भव के बंध खोलो
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शब्द-स्वर शिल्पी : "भोला"
गायक : पंकज उधास ,मधु चन्द्र ,अनुराग तथा अन्य
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तब १९७६ में मुकेशजी के निधन का समाचार मिलने के बाद न्यू एम्स्टर्डम में कोमरेड जैक्सन की शोकाकुल बड़ी बेटी "पूजा" की मुकेशजी के प्रति उस अद्भुत श्रद्धायुक्त प्रीति के विषय में जैक्सन से ही जान कर मैं आश्चर्य चकित था ! पूजा का यह व्रत कि ,वह मुकेश के अतिरिक्त किसी और से विवाह नहीं करेगी ,चाहे आजीवन अविवाहित रहना पड़े ,मुझे बड़ा अटपटा लगा ! उसने वह व्रत ,कम से कम , १९७८ तक , जब तक मैं उस देश में रहा नहीं तोडा था ! अवस्था में वह तब तक लगभग ४ ५ वर्ष की हो गयी थी ! १९७८ के बाद, भविष्य में क्या हुआ ,नहीं कह सकता , क्यों कि तब से अब तक मैं दुबारा गयाना नहीं जा पाया हूँ !

भारत में मैंने अनेक लोगों को मुकेशजी की गायकी की तारीफ करते सुना है लेकिन शायद ही किसी को गयाना की "पूजा" के समान मुकेशजी पर इतना दीवाना होते सुना हो !

भारतीय इतिहास में केवल एक ऐसी देवी का उल्लेख है , जिसने अपने बचपन में ही "पूजा" जैसा व्रत लिया था , हाँ ठीक पहचाना आपने , वही देवी जिसने गाया था :

मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
(मीरा बाई)
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव





10 टिप्‍पणियां:

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

G.N.SHAW ने कहा…

काकाजी प्रणाम -उस पूजा के बारे में और बताएं - यदि कुछ मालूम हो ! मीरा के बाद ---पूजा की पूजा भी वाकई आश्चर्य चकित कर देता है !

रेखा ने कहा…

आपका पोस्ट पढ़कर बहुत कुछ जानने को मिला ,अफसोस हो रहा है कि पहले आपके ब्लॉग पर क्यों नहीं आई ...खैर अब तो जान -पहचान हो गई है और मैंने फोलो भी कर लिया है

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

abhar aapka

Bhola-Krishna ने कहा…

प्रिय पटाली द विलेज जी - धन्यवाद , आशीर्वाद , साधुवाद !
प्रिय जी के शाव जी - आशीर्वाद
"पूजा की पूजा" प्रतीक है ,मानव द्वारा मानव से प्रीति की ,आत्मा द्वारा अन्य आत्माओं में भी परमात्मा के दर्शन की ! १९७८ के बाद फिर गयाना जाना नहीं हुआ और अब तो कहीं भी जाने का कोई सवाल ही नहीं है !
रेखा बेटा , धन्यवाद ,वयस और अस्वस्थता की मजबूरियों से मैं सब के ब्लॉग नहीं पढ़ पाता हूँ और मुझे फोलो करने की विधि भी नहीं मालूंम है !
नाती पोतों से सीख कर कोशिश करूँगा !
राजपुरोहित जी को भी बहुत धन्यवाद !

Rakesh Kumar ने कहा…

गोरख नाथ जी के ब्लॉग से आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
बहुत अच्छा लगा यहाँ आकर.आपका फालोअर बन गया हूँ.
आना जाना बना ही रहेगा.
आपकी पोस्ट फिर फिर पढ़ने योग्य है.
आभार.

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

आस्था बहुत बड़ी चीज है। सही कहा है श्री शा. ने कि आपकी बातों में रस है।

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

राकेशजी एवं संजय जी
आज के मंगल दिवस पर "गणपति एवं रघुवंश मणि" के आशीर्वाद स्वरूप आपके मेल पढ़ कर मन आनंदित हुआ ! हार्दिक आभार धन्यवाद आशीर्वाद स्वीकार करें ! "गणपति एवं रघुवंश मणि" का कृपामृत आप सब को सदा सर्वदा प्राप्त हो !
भोला- कृष्णा

virendra sharma ने कहा…

सार्थक नवीन अर्थ बोध और प्रज्ञा से निसृत पोस्ट .

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

प्रियवर वीरूजी ,धन्यवाद ! नहीं जानता कि सचमुच मेरा ब्लॉग आपकी इस प्रसंशा काअधिकारी है भी या नहीं ! फिर भी स्वीकार करके अपने प्यारे प्रभु के श्री चरणों पर अर्पित कर रहा हूँ ! वास्तव में मैं तो लिपिक मात्र हूँ , डिक्टेशन तो "वही परम" दे रहा है !
भोला- कृष्णा