बुधवार, 21 सितंबर 2011

एक खुला पत्र - हिन्दी ब्लोगर परिवार को

यह गृह युद्ध
" प्रणव दा और चिदम्बरम जी का नहीं- 'हमारा' "
मेरे परम प्रिय हिन्दी ब्लोगर बंधुओं

मैं - ब्लोगर परिवार का एक ८२ वर्षीय सदस्य और मेरी ७६ वर्षीया ,
५५ वर्षों से मेरी जीवन संगिनी तथा इस ब्लॉग लेखन में मेंरी सहयोगिनी
हम दोनों इस विशेष ब्लॉग द्वारा आप से एक नम्र निवेदन कर रहे हैं !

"राम परिवार" और "भोला परिवार" के स्वजनों से भी ,आज ,कहीं अधिक प्रिय बन गए ,मेरे अपने "हिन्दी ब्लोगर परिवार" के सदस्यों के नाम यह संदेश लिखते समय हम दोनों पति पत्नी हिन्दी ब्लोगर बन्धुत्व में छिड़े इस गृह युद्ध के कारण मन ही मन बहुत दुखी है !

ब्लोगर बन्धु ! हम एप्रिल २०१० में , एक ईश्वरीय प्रेरणा और अपने सद्गुरु के आदेशानुसार आपके इस विशिष्ट परिवार में शामिल हुए ! तब ,इस ब्लॉग लेखन द्वारा मेंरा एक मात्र उद्देश्य था, अपने "राम व भोला" परिवार के स्वजनॉ को अपनी "आत्मकथा" के द्वारा निजी अनुभव बताऊ और उनके जीवन शैली में आस्तिकता का संचार करूं और स्वजनों में "प्रेम-भक्ति" और निष्काम व निःस्वार्थ सेवा करने की भावना जगाऊँ ! "राम व भोला परिवार" के सैकड़ों सदस्य जन्म से ही अपने परिवार के उच्च संस्कारों से प्रेरित हो कर मेरी बात प्रेम से सुनते हैं और उनके परिवार के नन्हे नन्हे बच्चे भी मेरी बातें सुन कर लाभान्वित होते हैं !

शुरू शुरू में राम - भोला- परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त बाहर के केवल दो चार ब्लोगर बंधु ही मेरा ब्लॉग पढते थे ! बीच में प्रोत्साहन के आभाव और अपनी अस्वस्थता के कारण हमने लिखना बंद करने की सोची ! ऐसे में निष्काम और निःस्वार्थ भाव से आप चंद ब्लोगर बंधुओं ने हमे ह्तोत्साहित होने से बचा लिया और उन्होंने हमारा मनोबल इतना बढाया कि आज हम आपके पास यह ४३५ वां ब्लॉग प्रेषित कर रहे हैं ! हम उन विशाल हृदयी ब्लोगर्स के हार्दिक आभारी हैं ! हम आजीवन भुला नहीं सकते हिन्दी ब्लोगर बन्धुत्व के उस उपकार को ,उनकी उदारता को !

लेकिन आज यह क्या हो रहा है ? मेरे जैसे परदेसी नये ब्लोगर को अपने स्नेह से जीत लेने वाले आप महानुभाव आज न् जाने क्यों एक दूसरे के ही बैरी हो रहे हैं , एक दूसरे पर कीचड उछाल रहे हैं ,अंधाधुं दोषारोपण कर रहे हैं , अपशब्दों की बौछार कर रहे हैं ? और हम सब दर्शनार्थी बन्धु इस युद्ध के हवन कुंड में भर भर कटोरी घी की आहुती डालते जा रहे हैं !
बन्धुजनों , आग बुझाइए ,अपने हरे भरे परिवार को दावानल में भस्म होने से बचाइए ! प्रभु का आदेश है कि मैं आपको ,,७० - ७५ वर्ष पूर्व सुने एक गीत के आधार पर आज के इस गृह युद्ध के माहौल में रचित ,अपनी यह रचना आपको सुनाऊँ , प्रस्तुत है
:
ओ इंसान , भले इंसान ,
परम विद्वान बात लो मान
स्वजन ,लो अपने को पहचान
मान लिया इक घर के बर्तन आपस में टकराते हैं
मान लिया जंगल के पंछी कभी कभी लड जाते हैं
उनके रैन बसेरों के तिनके न बिखरने पाते हैं
ब्लोगर बन्धु किन्तु अपना घर अपने हाथ जलाते हैं
भला क्यूँ बने हुए अनजान
गंवाते निज अपना सम्मान
(कितना दुर्भाग्य है कि इस प्रकार )
अपनी भाषा अपनी संस्कृत को हम स्वयम लजाते हैं
ओ इंसान भले इंसान
(भोला)
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निवेदन : व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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8 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

आपका सन्देश सुन्दर,सार्थक,प्रेरणा दायक है.
जो सभी को शिरोधार्य होना चाहिये.
मैं आपके निर्मल सद्भावों और सद् विचारों के समक्ष हार्दिक नमन करता हूँ.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

vandana gupta ने कहा…

आपने सुन्दर आह्वान किया है …………ईश्वर इसमे जरूर सहायी होंगे और सबमे सदभावना का संचार करेंगे।

रेखा ने कहा…

आपने बहुत ही सुन्दर सन्देश दिया है ....हमसभी को एक परिवार की तरह मिल -जुल कर रहना चाहिए ,जहाँ मतभेद हो जाय तो कोई बात नहीं लेकिन मनभेद न हो

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक सन्देश दिया है ..सुन्दर आह्वान ... सुन्दर सीख के लिए आभार

Smart Indian ने कहा…

भोला जी, आपके इस ब्लोग की ४३५वीं प्रविष्टि के लिए हार्दिक बधाई. आपका यह सार्थक सन्देश भी आपकी विशाल-हृदयता को दर्शाता है. यह ब्लोगर्स कोई दूध-पीते बच्चे नहीं हैं, थोड़ी परिपक्वता तो इनसे अपेक्षित है ही. आपकी सदाशयता का आभार! आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिये प्लीज़!

bhola.krishna@gmail .com ने कहा…

परमप्रिय स्नेही , राकेश कुमार जी ,वन्दना जी, रेखा जी , संगीता जी एवं अप्रत्यक्ष रूप में हमसे सहमत ब्लोगर बंधू ,आप को धन्यवाद ! हमारी संयुक्त प्रार्थना "उन्होंने" - हमारे "प्यारे प्रभु" ने अंनसुनी नहीं की ! हार्दिक बधाई !
प्रियजन अब हम सब ब्लोगर बन्धु ,निर्मल मन से "बीती ताहि बिसार के आगे की सुधि ले सकें" ! प्रभु हमारी सहायता अवश्य करेंगे !
"भोला-कृष्णा "

बेनामी ने कहा…

सच्ची प्रभु भक्ति स्वीकार्य भाव ही में निहित है | यदि प्रभु ने हमें अलग अलग बनाया है - तो क्यों न हम इसका सम्मान करें, बजाये इसके कि सभी को अपने एक रंग में ही रंगने की कोशिश करें ? यदि वह हम सब को एक रंग में रंगने चाहते - एक तरह की समझ सोच देना चाहते - तो उनमे इसकी ताकत था | पर उन्होंने यह नहीं किया | तो इस diversity का हम सम्मान करें, और अनेकता में एकरूपता बनाए रखें तो ही प्रभु की सच्ची प्रेम और भक्ति होगी |

Bhola-Krishna ने कहा…

शिल्पा जी , आपका कथन " अनेकता में एकरूपता बनाए रखें तो ही प्रभु की सच्ची प्रेम और भक्ति होगी "
अक्षरशः सत्य है ! काश हम सब यह समझ सकते ! एक दूसरे के प्रति सौहाद्र ,स्नेह , सेवा तथा सच्चा प्रेम ही वास्तविक भगवत भक्ति है ! इसी भाव से प्रेरित होकर मैंने वह अपील की थी !समर्थन के लिए धन्यवाद