गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

शरणागति

शरणागति

(गृहस्थ जीवन के शुभारम्भ से ही "प्यारे प्रभु" की अहेतुकी कृपा का अनुभव)

जीवन में समय समय पर आईं अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण मनुष्यों को सुख , दुःख , आनंद तथा ताप-संताप का अनुभव होता है ! कष्ट के क्षण मानव के मन को विचलित कर देते हैं और सत्य और धर्म की राह पर बढते हुए उसके कदम डगमगा जाते हैं ! परन्तु गुरुजन से आशीर्वादप्राप्त मानव को जीवन की हर सुखद या दुखद घटना में प्यारे प्रभु की कृपा का ही अनुभव होता है !

आज स्मृति की बीथियों में विचरती हमारी आँखों के सामने हमारे दाम्पत्य जीवन के पिछले ५५ वर्ष के वे मनोहारी चित्र जीवंत हो रहे हैं जो उस "महान-अदृश्य-चित्रकार" ने बड़े प्यार से हमारे जीवन के कैनवैस पर चित्रित किये और जिनका सुदर्शन हमे तब से लेकर आज तक आनंदरस प्रदान किये जा रहा है !

मैंने आत्म कथा में पहले भी कहा है कि हमे विवाहोपरांत अपने ससुराल से उपहार में मिली थी दैनिक-प्रार्थना की एक पुस्तिका जिसका नाम था "उत्थान-पथ" ! जो मुझको ही नहीं अपितु सभी स्वजन -सम्बन्धियों को उपहार स्वरूप दी गयी थी ! कृष्णाजी के भाई ,मेरे पितृतुल्य पूजनीय ब्रह्मलीन श्री शिवदयालजी द्वारा संकलित रामचरितमानस की चौपईयो और श्रीमद भगवदगीता के अनमोल श्लोकों में निरूपित सूत्रों से भरपूर इस पुस्तिका ने आजीवन हमारा आध्यात्म पथ प्रशस्त किया !

उत्थान पथ के दैनिक पाठ ने मेरे मन में सद्गुरु से मिलने की प्रबल इच्छा जगा दी और हमे सत्संगों में जाने की प्रेरणा हुई ! फिर धीरे धीरे सच्चे खोजी पर प्रभु की कृपा हो गई और मुझे सद्गुरु की शरण मिल गयी ! हमारी धर्मपत्नी कृष्णाजी तो पहले से ही महाराज जी से दीक्षित थीं ! हमारी जीवन गाड़ी के दोनों दृढ़ पहिये अब महराज जी द्वारा निर्धारित पथ पर चलने को सक्षम हो गए ! सद्गुरु की क्षत्र छाया में जो शांति मिली ,जो आनंद मिला ,वह बयां करना कठिन है ! :

सच्चे संत की शरण में ,बैठ मिले विश्राम !
मन माँगा फल तब मिले ,जपे राम का नाम !!
(भक्ति -प्रकाश )
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सन १९५९ में दीवाली की दोज से प्रारम्भ होने वाले ग्वालियर पंचरात्रि सत्संग में मुझे मेरे सद्गुरु स्वामी श्री सत्यानान्दजी महाराज मिले ! जिनके दर्शन मात्र से मैं कृतार्थ हो गया ! महाराज जी ने नाम-दीक्षा दे कर मुझे वास्तविक अध्यात्म का बोध कराया ,जीवन जीने की कला सिखाई ;परमकृपास्वरूप श्री राम के प्रेम में रंग कर हमारा जीवन राममय बना दिया ! महाराज जी के श्रीचरण आज तक मेरे जीवन का सम्बल है !स्वामीजी महाराज ने मुझे शरणागत साधक के रूप में स्वीकार किया और करुणा से भरा अपना वरदहस्त मेरे मस्तक पर रखा ,मैं धन्य धन्य हो गया !

सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि जो मुझे गुरुदेव के "कृपा-प्रसाद" से प्राप्त हुई , वह है ,अनेकानेक परमहंस संतों के दर्शन और उनके सान्निध्य का सुअवसर ! जिनमे स्वामी अखंडानंदजी ,स्वामी मुक्तानंद जी ,स्वामी चिन्मयानंदजी ,श्री श्री माँ आनंदमयी , श्री श्री माँ निर्मला देवी ,योगीराज श्री श्री देवराहा बाबा, अनंत श्री श्री राधाबाबा उल्लेखनीय हैं !इन संत-महात्माओं ने अपनी दिव्य दृष्टि से और अपने स्नेहिल आशीर्वाद से मुझे और मेरे परिवार को अनुग्रहित किया, ! हमें भी इन दिव्य आत्माओं के समक्ष भजन-कीर्तन की प्रस्तुति का अवसर मिला और इस प्रकार हम उन महात्माओं के श्री चरणों पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर सके और उनका स्नेहिल आशीर्वाद और उनकी शुभकामनायें प्राप्त कर सके !
इतनी कृपा करी है प्रभु ने किस किसको मैं याद करूं
करुणासागर उनसा पाकर अब किससे फरियाद करूं

कह पाऊँ मैं सारे जग को तेरी कृपा गुणों की गाथा
ऎसी शक्ति बुद्धि दो दाता
रहूँ सदा तेरे गुण गाता

"भोला '

स्वामीजी महाराज की असीम कृपा की छत्रछाया में मैंने अपने पारिवारिक जीवन को जिया है! उनकी दी हुई नाम दीक्षा ने ,उनकी और इष्टदेव की परम कृपाने ;जीवन में पग पग पर आयी हुई सभी बाधाओं ,आपदाओं ;पीड़ाओं ,कष्टों ,रोगों ;शारीरिक व्याधियों को सहन करने के लिए और उन्हें दूर करने के लिए आत्म बल प्रदान किया है !

सद्गुरु या इष्टदेव के आशीर्वाद और प्रसाद से आप सभी को अधिक से अधिक उपलब्धियां हुई होंगीं और लाभ भी हुए होंगे ; आइये !प्रतिपल को मंगलकारी बनाने के लिए ,विघ्न बाधाओं से पार पाने के लिए ,जन जन के कल्याण के लिए ,आप भी मेरे साथ गायें ----

बोलो राम ,बोलो राम बोलो राम राम राम
राम नाम मुद् मंगल कारी विघ्न हरे सब पातक हारी
राम नाम शुभ शकुन महान ,स्वस्ति शांति शिवकर कल्याण
बोलो राम बोलो राम बोलो राम राम राम
(अमृतवाणी)

फरवरी २००५ में यह कीर्तन छोटे बेटे माधव ने जर्मनी में रिकोर्ड किया ===================================
क्रमशः
निवेदक: व्ही . एन.श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग:- श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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1 टिप्पणी:

रेखा ने कहा…

अमृतवाणी सुनकर आनंद आ गया ......