गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

सत्य साई बाबा - चिन्तन # 3 5 6

दर्शनोपरांत का चिन्तन
(गतांक से आगे) 

उस दिन मुझे सत्य साईँ बाबा के वास्तविक दिव्य स्वरूप का दर्शन हुआ ! स्वजनों ,उस चमत्कारिक दर्शन ने मेरी आँखें खोल दीँ और उनके प्रति मेरी पुरानी भ्रांतियां पल भर में समूल नष्ट हो  गयी ! एक पल में ही बाबा के विषय में मेरा सम्पूर्ण चिन्तन बदल गया ! 

बात ऎसी थी  कि  तब तक मैं लोगों से सुनी सुनाई कहानियों के आधार पर यह सोचता था कि  बाबा एक मैजीशियन के समान जनता को हिप्नोटाइज कर के हाथ की सफाई द्वारा नाना प्रकार के भौतिक पदार्थ - घड़ियाँ ,मुन्दरियां विभिन्न आभूषण तथा  सुगन्धित विभूति आदि अपने अनुयायी भक्तों में वितरित करते हैं और बाबा के इस जादुई कृत्य को उनके अन्धविश्वासी भक्त तथा सेवक दिव्य प्रसाद की संज्ञा देकर बाबा को "भगवान" सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं ! कुछ क्रिटिक्स तो यहाँ तक कहते थे कि  बाबा से कहीं अधिक रोमांचक चमत्कार ,बंगाल के जादूगर पी. सी सरकार और उनके शागिर्द दुनिया भर में मंचित अपने जादुई तमाशों में दिखाते फिरते हैं !  तब की कच्ची समझ वाला मैं , क्रिटिक्स की इन बातों से बहुत कुछ सहमत भी था ! इसके आलावा मुझे अपने जैसे दिखने वाले किसी अति साधारण व्यक्ति को "भगवान" कह कर संबोधित करना तब  उचित नहीं लगता था ! लेकिन --

अब इस वयस में मुझे समझ में आया है कि हम जैसे भौतिक जगत के निवासी केवल उतना ही देख,सोच ,समझ पाते हैं  जितना अपनी इन्द्रियों की क्षमता एवं अपनी  संकीर्ण मनोवृत्ति और सीमित बुद्धि से हमारे लिए संभव होता है !  दिव्यपुरुषों के चमत्कारों में निहित उनके उद्देश्य को हम साधारण मानव नहीं समझ पाते हैं ! "साईँ बाबा" भी दैविक शक्तियों द्वारा भौतिक पदार्थों की उत्पत्ति करते थे और उन्हें प्रसाद स्वरूप वितरित करते थे ! इस प्रकार वह दीन दुखियों की "सेवा" करते थे ,उनके दुःख हरते थे ,उन्हें असाध्य रोगों से मुक्त करते थे और  वह जन साधारण को प्यारे प्रभु की सर्वव्यापक शक्ति से परिचित करवाते थे और उसके प्रति उनका विश्वास दृढ़ करते थे ! 

बाबा भली भांति जानते थे कि दुखियारी आम जनता केवल कष्टों से निवृत्ति एवं सुखों की मांग लेकर उनके पास आती  है ! वह ये भी जानते थे कि  केवल ज्ञानयज्ञ से तथा वेदादि पौराणिक ग्रन्थों को कंठस्थ करके, बार बार पाठ करते रहने से, आम जन समुदाय का उद्धार नहीं होने वाला है ! व्यापक परम शांति की प्राप्ति के लिए आवश्यक है अपने आप को पहचानना और यह मान लेना कि इस समस्त जीव जगत का स्वामी केवल एक ही परमानंद स्वरूप "ईश्वर" है और -

"उसकी" प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि  

एक एक प्राणी अपने हृदय में प्रेम का दीप जलाये  
एक एक व्यक्ति अहंकार मुक्त हो जाये 
सभी ईश्वर प्राप्ति के लिए धर्माचरण करें
(अन्य धर्मावलम्बीयों को उत्तेजित किये बिना )
++++++++++++++
बाबा के अनुसार ,यह संभव होगा

सतत हरी नाम सुमिरन से 
र्सब धर्मों के समन्वय से 
सब कर्मो को प्रभु सेवा जानने से 
आपसी समझदारी से 
करुणा सहनशक्ति परसेवा भाव से
++++++++++++++++  
  सत्य साई बाबा के अनुसार यह कभी न भूलना चाहिए की 
सम्पूर्ण मानवता का (सारी मनुष्य जाति का)  

"धर्म" एक  है -  "प्रेम" 
"भाषा" एक  है -  "हृदय की" 
"जाति" एक  है -  "इंसानियत (मानवता)
"ईश्वर"  एक है -  "परम सत्य , सर्व व्यापक ब्रह्म" 
तथा
माधव सेवा ही मानव सेवा है 

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निवेदक : व्ही .एन. श्रीवास्तव "भोला"
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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

सत्य साईँ बाबा # 3 5 5



सत्य साईँ बाबा 
अंतिम दर्शन

बाबा का यह चित्र मैंने नहीं खींचा है ! लेकिन यह चित्र वह है जो मेरे अंतस्तल पर पिछले ३०-४० वर्षों से इतनी ही स्पष्टता से जैसे का तैसा अंकित है ! मेरे इस लेख श्रंखला में इस का ऐसे ही अवतरित हो जाना भी एक चमत्कारिक बात है ! (प्रियजन, अभी बहेकुंगा  नहीं पर इस चमत्कार की चर्चा जरूर करूंगा , जल्दी ही ) , अभी आगे बढ़ता हूँ :

दर्शन न हो पाने से हम पांचो उदास थे ! कितनी आस लगा कर आये थे हम सब ? सभी कुछ न कुछ पाने की उम्मीद लगाये थे ! सब की भिन्न भिन्न आकांक्षाएं थीं ! सम्भवतः हम पाँचों की आकांक्षाएं भी आपस में एक दुसरे से टक्कर ले रहीं थीं ! ( अन्तोगत्वा मेरा यह अनुमान सच ही निकला - लेकिन इस विवाद में अभी नहीं पडूंगा - "आत्म कथा" में  कभी न कभी भेद खुलेंगे ही ) ! आप आगे की कथा सुनना चाहते हैं ,पहले वह पूरी कर लूं!

अति दुखी मन से हम उस प्लाट तक पहुचे जहाँ हमने गाड़ी पार्क की थी ! वहां फाटक पर एक मोटा सा अलीगढ़ी ताला लटक रहा था ! शायद  वाचमैंन भी बाबा का दर्शन करने के लिए पंडाल की ओर चला गया था ! हमें  दफ्तर के लिए बहुत देर हो रही थी ! बड़ी उलझन में थे हम सब ! कहीं कोई खाली टेक्सी भी नहीं दिख रही थी ! सहयोगी सब तरफ टेक्सी खोजने के लिए गये ! हम दोनों - (कृष्णा जी और मैं) एक पुराने बरगद के नीचे पत्थर के चबूतरे पर बैठ गये ! टेक्सी नहीं मिली , तीनो सहयोगी लौट आये ! यह तय हुआ की गाड़ी वहीं छोड़ दी जाय , शाम को ले ली जायेगी ! बाहर रोड पर टेक्सी मिल जाएगी उससे हम चारों सीधे ऑफिस चले जायेंगे और कृष्णा जी वहां से बस द्वारा घर चली जायेंगी !

हमारे सहयोगियों में से एक जो बाबा के परम भक्त थे उन्होंने सुझाया की वापस जाने से पहले एक बार पंडाल की तरफ देख कर नमस्कार कर लेना चाहिए ! हमने पीछे घूम  कर 
प्रणाम किया और चल दिए ! कहीं से आवाज़ आई ! दूर से भाग कर आता भैया वाचमैन कह रहा था ," सेठ बिगेर दरसन के जाय रहे हन ?"  हम उसके पीछे पीछे फाटक तक लौट आये ! उसने ताला खोला ! हम प्लाट में दाखिल हुए ! इत्तेफाक से तब तक सडक के एक  तरफ इस वाले प्लाट और दूसरी तरफ कई गलियों के पीछे बने बाबा के कमल के फूल जैसे गुम्बद वाले नये सेंटर के बीच कोई इमारत नहीं खड़ी हुई थी ! वाचमैन ने वह गुम्बद हमे दिखाया और उधर देखते हुए  प्रणाम किया ! हमारे लिए इशारा था कि हम भी गुम्बद को प्रणाम कर लें ! बाक़ी चारों ने फटाफट औपचारिकता निभा कर प्रणाम कर लिया और फुर्ती से गाड़ी में बैठ गये ! मैं बाहर ही रहा !

कार का दरवाजा खोलते खोलते मैं सोच रहा था , "एक बार पंडाल को प्रणाम किया , अब साईँ सेंटर के गुम्बद को करूं ? ! हम जिन "सत्य साईँबाबा" का दर्शन लाभ करने के लिए  सबेरे से परेशान हैं ,वो दर्शन ही नहीं दे रहे हैं"! उसी क्षण जैसे किसी अज्ञात शक्ति ने मेरे दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जोड़ दिए ! मैं सीधा खड़ा होगया और मेरी आँखें बंद हो गयीं ! कुछ पल को मेरी आँखें मुंदी ही रहीं --और जब खुलीं तब ----

एक आश्चर्यजनक चमत्कार हुआ

मेरी आँखों के ठीक सामने , साईँ सेंटर की खुली छत पर , नीले आकाश के तले "सत्य साईँ बाबा " अपने दाहिने हाथ से अभय दान की मुद्रा बनाये हमे चिंता मुक्त कर रहे थे ! आँखे खुलते ही मेरे मुंह से अनायास ही निकला , "जै हो साईँ बाबा की जै हो " !  मेरी आवाज़ सुनते ही कृष्णा जी और मेरे तीनों सहयोगी कार से बाहर निकल आये और बाबा को देखते ही हम पाँचों हर्षोल्लास से नाच उठे ! उधर पंडाल में हज़ारों भक्त आतुरता से बाबा के आगमन की प्रतीक्षा करते रहे और इधर एकांत में बाबा ने हम पांचो को विशेष दर्शन दे दिया ! हम धन्य हो गये !     

अब इस चित्र का चमत्कार 

लेख में लगाने के लिए  साईँ के चित्र की खोज हो रही थी ! मैंने पुत्र राघव जी से मदद मांगी  !गूगल इमेज से सर्च करके उन्होंने जो चित्रों का एक छोटा सेट निकाला उसमें से   बार बार एक विशेष चित्र उभर कर बाहर आ रहा था ! यह चित्र वह था जिसमे 'बाबा' का दाहिना हाथ अभय दान की मुद्रा में दिख रहा है -- वही मुद्रा जो हमने ४० वर्ष पहले मरोल में देखा था !इसके आलावा वही नीला आकाश वही स्वरूप जो तब से आज तक मेरे मन में बसा है! आप माने या नहीं माने हम दोनों पति - पत्नी के लिए बाबा का यह विशेष दर्शन 
अब तो और भी अविस्मर्णीय बन गया है !

"बाबा कहीं नहीं गये" ऐसा एक नहीं सैकड़ों भक्तों ने आज उनको श्रद्धांजली देते हुए कहा ! यह परम सत्य है ! आज वह हमारे बीच नहीं हैं फिर भी विश्व भर से उनके चमत्कारों के समाचार अभी भी आ रहे हैं ! 

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निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

"सत्य साईँ बाबा" - श्रद्धांजली # 3 5 4

मेरी श्रद्धांजली
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कोट्टयम केरल के मन्दिर में "अनंत शयनंम" की मुद्रा में लेटे योगेन्द्र 
तथा 
प्रयागराज में त्रिवेणी तट पर लेट कर विश्राम करते अंजनी सुत हनुमान जी 
के समान प्रशांत निलयम में अनंत विश्रामरत 
श्री श्री सत्य साईँ बाबा को समर्पित 
भोला की यह श्रद्धांजली     

मन का सुमन चढाने लाया श्रद्धांजलि में "साईँ" तुम पर
मेरा  अंतिम यही समर्पण  स्वीकारो  मुझ  पर करुणाकर 

    बाबा  मैंने कभी न मांगी तुमसे घड़ी अंगूठी माया   
बंद आँख कर खड़ा रहा मैं ,कुछ ना माँगा ,सब कुछ पाया
जय हो सत्य साईँ बाबा की 
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यहाँ U S A में Times Now और अन्य समाचार चेनेल्स पर वहां भारत में प्रशांत निलयम के कुलवंत हाल में पारदर्शी आवरण में ढँकी "सत्य साईँ बाबा" की छवि देख कर मैंने कल आपसे कहा था की मुझे तो बाबा अभी भी वैसे ही लग रहे हैं जैसा मैंने उन्हें ४० -४२ वर्ष पूर्व बंबई में देखा था ! चलिए वो कहानी ही पहले सुना दूँ :

तब हम बंबई के अँधेरी (पूर्व) के जे बी नगर में रहते थे ! बड़ी सडक के उस पार, मरोल में , literally,  stone throw distance पर "सत्य साईँबाबा" का एक सेंटर था ! बाबा  उन दिनों वहां आये थे और पास के एक बड़े पंडाल में रोज़ सुबह शाम आम जनता को दर्शन देते थे और स्वयम गा कर कीर्तन करवाते तथा प्रवचन भी देते  थे ! रोज़ी रोटी के चक्कर में तब हमारी दशा यह थी की , समझो घर के दरवाजे पर बाबा खड़े थे और हम अनजान थे ! हमे तो तब पता चला जब दूसरे या तीसरे दिन ,दफ्तर के एक मलयाली सहयोगी ने ,जो घर में भी हमारे पड़ोसी थे हमे बाबा के आगमन के विषय में बताया ! वे स्वयम बाबा के मुरीद भक्त थे ! उन्होंने  हमारे मन में भी बाबा के दर्शन की अभिलाषा जगा दी ! निश्चित हुआ की अगले दिन हम अपने कुछ दक्षिण भारतीय सहयोगियों के साथ बाबा के दर्शन करके ,बस और लोकल से नहीं ,बल्कि अपनी सरकारी कोटे से मिली प्रीमियर फिएट कार द्वारा फटाफट समय से दफ्तर पहुच जायेंगे !

कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन बहुत सबेरे से ही हमारी कोलोनी में चहल पहल चालू हो गयी ! मेरे सहयोगी - रंगाराव, उन्नीकृष्णन और कल्याण रमण ७ बजे से ही तैयार होकर नीचे गाड़ी के पास खड़े हो गये !  पांचो बच्चों के टिफिन बॉक्स में उस दिन जल्दी जल्दी  सेंड विच भर कर कृष्णा जी ने उन्हें सेंट्रल स्कूल के लिए विदा किया और फिर मेरे दफ्तर वाले उन  तीनो सहयोगियों के साथ वह भी हमारे साथ चलीं !

हम बाबा के आगमन के समय से आधे घंटे पहले ही पहुंच गये ! पर तब तक सैकड़ों कारे  और हजारों स्कूटर मय अपनी सवारियों के वहां पहुंच चुके थे ! पंडाल से एक मील दूर भी कार पार्किंग की जगह नहीं मिली ! किसी तरह एक खाली प्लाट के चौकीदार से हमारे सहयोगियों ने फाटक खुलवा ही लिया और श्रीवास्तव सर की नयी गाड़ी की सुरक्षा की गारंटी हो गयी ! अब हमारी पंडाल तक की पैदल यात्रा चालू हुई ! मरोल तब आधा अधूरा ही बना था, रास्ते सकरे और कच्चे थे और हजारों की संख्या में जन समुदाय धूल उड़ाता हुआ दौड़ता हुआ पंडाल की ओर जा रहा था ! वहाँ पहुचते पहुचते हमे आधा घंटा और लग गया ! दंग रह गये यह देख कर की बैठने की कौन कहे वहा तो खड़े होने की भी जगह नहीं थी ! किसी तरह बाबा के आसन से काफी दूर , गेट के पास खड़े खड़े पैर टिकाने भर की जगह मिली !

वहाँ के साईसेवक जनसमुदाय से कीर्तन करवा रहे थे ! हम भी साईँ भक्तो की आवाज़ मे आवाज़ मिला कर कीर्तन करते रहे  ! तभी सहसा कीर्तन रुक गया ! सब समझे की बाबा आ गये ! हम भी चौकन्ने होकर इधर उधर देखने लगे ! पर तभी स्पीकर पर किसी ने ऐलान किया कि " बाबा के आने में अभी एक घंटा और लगेगा !" लगभग साढ़े नौ बज चुके थे दफ्तर के हम चार सीनियर अफसर एक साथ गैरहाजिर हो रहे थे , वहाँ तो हुडदंग मच रही होगी ! हमे जल्दी ही ऑफिस पहुच जाना चाहिए ! यह सोच कर हम सब पंडाल से निकल कर अपनी गाड़ी की ओर चल पड़े !

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प्रियजन आप निराश न होना! हमे थोड़ी देर में दर्शन हों जायेंगे! कल तक प्रतीक्षा कर लें !
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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सोमवार, 25 अप्रैल 2011

सत्य साई बाबा # 3 5 3

सत्य साई बाबा 




कल रविवार २४ अप्रेल २०११ , प्रातः ७ बज कर  ४० मिनट के लगभग (शिर्डी के साईं बाबा के अवतार माने गये) पुत्तापथी के "सत्य साई बाबा" विश्व भर के अपने करोड़ों भक्तों को रोता बिलखता छोड़ कर इस संसार से विदा हो गये ! 

सत्य साईबाबा दिव्य शक्तियो,नवों निधियों तथा आठों सिद्धियों से युक्त थे ! अपने भक्तों को उन्होंने सभी प्रकार के चमत्कार कर के दिखाए ! अपनी दिव्यता से सम्मोहित करके उन्होंने अपने अनगिनत भक्तों को  बहुमूल्य भौतिक उपहार दिए और हथेली पर  प्रसाद स्वरूप सुगन्धित विभूति प्रगट करके लाखों साधकों में बाटा ! उन्होंने अपनी दैवी शक्तियों द्वारा हजारों ही  ज़रूरतमंद रोगियों का इलाज किया ! प्रत्यक्ष दर्शियों ने हमे बताया है की बाबा ने स्वयम अपने हाथों से सब्जी काटने वाले चाकू द्वारा कितने ही जटिल सर्जिकल ओपरेशन किये और इस तरह अपने भक्तों को ओपरेशन के बड़े खर्चे तथा भयंकर कष्टों से बचा लिया ! उनकी जीवनी इस प्रकार के करतबों के अनंत उदाहरणों से भरी पड़ी है ! 

प्रिय पाठाकगण , मैं यहाँ वह उदाहरण ही दूंगा जिसकी विश्वश्य्नीय जानकारी मुझे  है !१९७५ -१९७८ में मेरी पोस्टिंग साउथ अमेरिका के देश गयाना में हुई ! वहां हमारे पड़ोसी थे लन्दन के ऊंची  डिग्रीयाफ्ता वहां के सर्वोच्च मेडिकल अफसर डोक्टर ''चेनी जयपाल'' , उनकी धर्मपत्नी भी लन्दन में पढीं डोक्टर हैं ! इन्होने हमे बताया कि एक बार उनके एक भतीजे का इलाज जब इंग्लैंड में भी न हो सका तो हारथक कर उन्होंने  "सत्य साई बाबा" के दरबार में फरियाद की ! सत्य साई बाबा ने केवल एक घूँट पानी पिलाकर ही रोगी को उस असाध्य रोग से मुक्त कर दिया !

यहाँ U S A में ''आज तक'' ,''टाइम'' ,''जी  न्यूज़'' आदि में देखा कि इस समय बाबा का मानव चोला एक कांच के बक्से में "साईँ कुलवंत हाल" पुत्तापथी में देश विदेश से पधारे लाखों दर्शनार्थी भक्तो के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है ! हमने भी दर्शन किया !

बाबा देखने में बिलकुल वैसे ही लग रहे हैं जैसा हमने उन्हें आज से ४०-५० वर्ष पहले १९७० के पूर्वार्ध दशक में कभी मरोल - मुम्बई में देखा था !  माफ करियेगा - वर्ष, महीना, तारीख याद नहीं है ! पर बाबा का वह दर्शन यादगार है , कल पूरी कथा सुनाउंगा !     

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क्रमशः 
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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हनुमत कृपा # 3 5 1

बचपन के कृपा दर्शन 
(सन्देश # ३२९ के आगे की कथा) 


बचपन में अपने ऊपर हुई हनुमत कृपा की कहानियाँ सुना रहा था कि सहसा ही मेरे ब्लॉग # ३३० से ३३५ तक साक्षात् श्री हनुमान जी के अवतार नीमकरौली बाबा की बात चल गई और वह भी उनके "चमत्कारिक कम्बल" तक पहुंच  कर थम गयी ! आज अभी मन में विचार आया "बचपन बीते तो अब ७० - ७५ वर्ष हो गये हैं ,कब तक बचपने में अटके रहोगे अपनी गाड़ी भी आगे बढ़ाओ"! याद आई बाबा की रेलगाड़ी वाली कहानी और साथ में अपनी उस   यादगार रेलयात्रा की कहानी :

कथा की भूमिका दुहरा लूं ! १९४२-४३ की बात है ! नीम करौलीबाबा रेल रोक कर ब्रिटिश रेल कम्पनी - "E I R" से अपनी मांग पूरी करवा चुके थे ! बापू का ,"अंग्रेजों भारत छोडो" आन्दोलन जोर पर था ! मैं ८ वीं या ९ वीं कक्षा में पढ़ता था ! हमारे बड़े भैया के हम उम्र  भतीजे "कोनी भैया" के साथ मैं भी , बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के " बी.मेट" के स्टडी टूर पर निकले विद्यार्थियों के साथ कानपुर के कारखाने देख कर पनकी स्थित श्री हनुमान जी के दर्शन करके ,आगरा की Foundry Industry (लोहे ढ्लायी  के कारखाने) देखने जाने को तैयार हो गया था ! हनुमान जी की प्रेरणा से इन B H U के विद्यार्थियों के साथ रह कर मैंने तब १०-११ वर्ष की आयु में ही  यह निश्चय ले लिया था की मैं अपनी बिरादरी  के पुश्तैनी पेशे -मुंशीगीरी जजी,वकालत या ICS , PCS बनने का स्वप्न भूल कर कोनी भैया की तरह जीविकोपार्जन के लिए कोई टेक्निकल काम करूं !

उस समय तो ऐसा कुछ नहीं लगा की हनुमान जी ने मेरी अर्जी सुनी होगी ,लेकिन १० वर्ष बाद यह साबित हो गया कि उस पल ,कुमति निवारक "श्री हनुमानजी" ने सुमति दे कर मुझसे एक उचित प्रार्थना करवाली थी ! प्रियजन, आप जानते ही हैं कि मेरे उस समय के विचार "उनकी" कृपा से मेरे भावी जीवन के निर्णायक निश्चय सिद्ध हुए ! तभी तो मैंने १९५०-५१ में B H U के ही कोलेज ऑफ़ टेक्नोलोजी से डिग्री हासिल की !

हनुमान जी की उपरोक्त प्रेरणा से मिली B H U के कोलेज ऑफ़ टेक्नोलोजी की इस डिग्री के आधार पर ही अन्तोगत्वा मेरी विदेशों में भी औद्योगिक सलाहकार Expert / Advisor के पद पर नियुक्ति हुई ! हनुमत कृपा के फलस्वरूप !
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क्रमशः  
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पाठकगण : यहा अमेरिका में अभी अभी समाचार मिला कि 
"सत्य साईँबाबा" नही रहे ! कलम रुक गयी है ! 
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निवेदक:  व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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शनिवार, 23 अप्रैल 2011

अंजनि सुत हे पवन दुलारे - VIDEO- # 3 5 2

हनुमत वन्दन 

सदियों से हमारे हरवंश भवन बलिया में महाबीरी ध्वजा के तले अपने "रामहित दास - वंश" के कुल देवता श्री हनुमान जी की उपासना हो रही है ! इसी  परम्परा के अंतर्गत  कानपूर शाखा में भी , अपने निवास के आँगन में श्री महाबीर जी की ध्वजा प्रस्थापित हुई ! मेरा "भोला परिवार"  १९६३ से १९८९ तक अधिकतर कानपूर से बाहर रहा  ( मेरी सरकारी पोस्टिंग्स के कारण ) अस्तु हमारे बड़े भैया तथा उनके बच्चे वहां के महाबीर जी की रोज़ की पूजा वन्दना बहुत ही श्रद्धा से करते रहे !
  
१९८४ में रिटायर होकर २०-२२ वर्षों के बाद मैं पुनः कानपुर आया और मुझे  इष्टदेव श्री  महाबीर जी की ध्वजा तले बैठ कर  हनुमान चालीसा पाठ करने का मौका मिला ! भैया भाभी और उनके श्रद्धालु बच्चों की नित्य पूजा अर्चना से वह स्थान इतना  चार्ज हो गया था की चालिसा के तुरंत बाद ही "अंजनी सुत हे पवन दुलारे" की रचना हुई ! कुछ दिनों  बाद बच्चों के अनुरोध पर इसका स्टूडियो में ऑडियो केसेट एल्बम बना और फिर DVD  एल्बम भी बन गया ! मैं हनुमान जयंती के अवसर पर आपको वह सुनाना चाहता था , असफल रहा , यहाँ अमेरिका में आज अभी गाकर सुना रहा हूँ !( केमरा और मजीरा कृष्णा जी संचालित कर रहीं हैं , राघव जी "यू ट्यूब" में डालने का प्रयास कर रहे हैं -)

नीचे चित्र के "एरो" पर क्लिक करके पूरा भजन सुनिए साथ में गाइए 

हनुमान जी को मनाइए , प्रार्थना करिये 
"हे संकट मोचन सबके कष्ट हरो" 


अंजनि सुत हे पवन दुलारे , हनुमत लाल राम के प्यारे
अंजनि सुत हे पवन दुलारे 

अतुलित बल पूरित तव गाता , असरन सरन जगत विख्याता
हम बालक हैं सरन तुम्हारे , दया करो हे पवन दुलारे
अंजनि सुत हे पवन दुलारे

सकंट मोचन हे दुख भजंन , धीर वीर गम्भीर निरन्जन
 हरहु कृपा करि कष्ट हमारे , दया करो हे पवन दुलारे 
अंजनि सुत हे पवन दुलारे

राम दूत सेवक अनुगामी , विद्या बुद्धि शक्ति के दानी
 शुद्ध करो सब कर्म हमारे , दया करा हे पवन दुलारे


अंजनि सुत हे पवन दुलारे , हनुमत लाल राम के प्यारे 
अंजनि सुत हे पवन दुलारे


"भोला"




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गीतकार-स्वरकार-गायक-
निवेदक :व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"; सहयोग : पूरा "भोला परिवार"

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

मेरा यह ब्लॉग - क्यों ?

मेरी "आत्म कथा" को समेटे मेरा यह ब्लॉग -  
"महाबीर बिनवौ हनुमाना"  
क्यों ?

# 3 5 0

(गतांक से आगे) 
 
परमात्मा ने जिन संस्कारों से सुसज्जित करके, जिन सांसारिक सुविधाओं से लैस करके, जिन पस्थितियों में जिस परिवार में , जिस जाति, जिस गोत्र में, जिस स्थान पर हमें जन्म दिया हम वहीं जन्मे,और "उन्होंने" जब, जो भी हमसे करवाना चाहा वह करवा लिया! यह "उनका" नियम है और मुझ पर भी यह बाकायदा लागू हुआ है !  

रोज़ी रोटी कमाने और परिवार की परवरिश के लिए ६0 वर्ष की अवस्था तक प्यारे प्रभु ने मुझसे, शायद मेरे पिछले जन्मों के कर्मों का हिसाब चुकता करवा देने के लिए, अति नीच समझा जाने वाला "शूद्रों" का काम करवाया लेकिन इसमें एक बात उल्लेखनीय रही कि वह कर्म करते समय मुझे कभी भी यह नहीं लगा कि मैं कोई सज़ा भुगत रहा हूँ ! सच पूछिए तो मेरी तल्खियाँ दूर करने को, और मुझे सपरिवार आनंदित रखने के लिए "प्यारे प्रभु" ने मुझे वह तथाकथित शूद्रों वाला कार्य करते समय भी, बीच बीच में बड़े बड़े संतों के दर्शन तथा उनके सानिध्य का सौभाग्य दिया ! इन ६० वर्षों में मुझे जिन विशिष्ट दिव्य महात्माओं का  घनिष्ट सानिध्य मिला, उनमें प्रमुख हैं : 

१. श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज (मेरे सद्गुरु) तथा श्री राम शरणम लाजपत नगर नयी दिल्ली के उनके उत्तराधिकारी 
२. श्री श्री माँ आनंदमयी 
३. श्री माँ निर्मला देवी (सहज योग)
४. श्री स्वामी मुक्तानंद जी 
४. श्री स्वामी चिन्मयानन्द जी 
५. श्री स्वामी अखंडानन्द जी    (आदि) 

मेरे निजी और मेरे सम्पूर्ण परिवार के जीवन को रसमय मधुर और आनंदमय  बनाने में इन दिव्य आत्माओं का योगदान अति महत्वपूर्ण है ! इन महान विभूतियों से प्राप्त दिव्य संदेश मैं अपने लेखों द्वारा आप तक धीरे धीरे पंहुचा ही रहा हूँ ! माँ आनंदमयी की विशेष करुणा और कृपा की कथा आप को पहले सुना चुका हूँ ! 

रिटायर हो जाने पर बच्चों ने हमे और कोई काम करने नहीं दिया ! उनका कहना था "जैसे   शुभ संस्कार आपने हमे दिए हैं, हमारे बच्चों को भी दीजिये , "Why should your grand children be deprived of that ?" मेरे  अधिक समझदार मित्रों ने बिना मांगे राय दी , हमे समझाने की कोशिश की ! "Don't get fooled .They want you to become Baby Sitters for their kids ,while they enjoy parties"!  सब अपने अपने अनुभव से ही राय देते हैं ! 

बुजुर्गों से सीखा था "सुनो सबकी, करो अपने मन की, खूब सोच समझ कर"!  हमने वैसा  ही किया और हमारा अनुभव उनके अनुभव से एकदम विपरीत हुआ ! हम बच्चों के Baby Sitters नहीं बने, उलटे हमारे बच्चों और उनके बच्चों ने हमारी ही देख भाल की ! अब वे ही हमारे Baba Sitters हैं ! हमें हाथ पकड़ कर चलाते फिराते हैं, उठाते बैठाते हैं  !

परिवार की दैनिक प्रातःकालीन प्रार्थना के कारण, जिसमे हम सब एक साथ, मानस तथा गीता जी के चंद चुने हुए शिक्षाप्रद पदों को भावार्थ के साथ पढ़ते थे , हमारे बच्चों के चरित्र पर बहुत सुन्दर प्रभाव पड़ा था !,इसके अतिरिक्त चाहे हम जहाँ भी रहे , भारत में या विदेश  में हमारे बच्चे हमेशा हम दोनों के साथ मन्दिरों और सत्संगों में अवश्य जाते थे, ध्यान से प्रवचन सुनते थे और उनके नोट्स भी बनाते रहते  थे !

मैं जानता हूँ कि आप पारिवारिक प्रार्थना तथा सत्संगों की महिमा कदाचित मुझसे कहीं अच्छी तरह जानते हैं फिर भी मैं आपको बता रहा हूँ ! यह किसी अहंकार वश नहीं ! इसके द्वारा मैं एक तरफ स्वयम अपने आपको  और दूसरी तरफ आप सब को रिमाइंड करवा रहा हूँ, कि हमें अपनी समवेत पारिवारिक साधना में ढील नहीं देनी चाहिए, कम से कम उस समय तक जब तक बच्चे हमारे साथ हैं ! 

सूचना: ग्वालिअर के श्री राम परिवार द्वारा संकलित, दैनिक प्रार्थना के, तुलसी मानस तथा गीता जी के चुनिन्दा अंश धीरे धीरे प्रेषित करूंगा !
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क्रमशः
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निवेदक :- वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
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बुधवार, 20 अप्रैल 2011

पाठकों के नाम खुला पत्र # 3 4 8

एक सूचना 
इस ब्लॉग के पहले वाले ब्लॉग के प्रेषक अतुल जी ने जिन्हें "बाबू" कहकर संबोधित किया है वह  ग्वालियर के श्री जगन्नाथ प्रसाद जी ,स्वामी जी महराज के एक अतिशय प्रिय शिष्य 
और मेरी धर्म पत्नी कृष्णा जी के बड़े भाई थे ! १९५९  में इन्होने ही पहली बार 
मुझे स्वामी जी से मिलवाया था और मुझे उनसे "नाम" दिलवाया था ! 
"भोला"
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इस ब्लॉग की प्रथम वर्षगांठ पर 
पाठकों के  नाम  एक  खुला  पत्र
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किसी महापुरुष के प्रवचन में सुना कि "आज के मानव को,उसकी व्यस्त जीवनशैली के कारण विधिवत पूर्ण औपचारिकता के साथ ईश्वर की उपासना कर पाने का अवकाश ही नहीं मिलता, अपनी इस असमर्थता के कारण ऐसे लोगों को निराश हो कर बैठ जाने के बजाय साधना का यह सरलतम साधन अपना लेना चाहिए "!

महापुरुष ने आगे बताया कि  "प्रातः निंद्रा से उठते ही बिस्तर पर बैठे बैठे ही सर्व प्रथम अति प्रेम से अपने इष्ट देव का सिमरन चिन्तन करे ! अपने इष्ट देव को अपनी सारी उपलब्धियों, सफलताओं ,खुशियों की प्राप्ति में मददगार बनने के लिए ,उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए आंसुओं से भरे नैनों और गदगद कंठ से उन्हें हार्दिक धन्यवाद दे ! करुणानिधान प्रभु इतने से ही प्रसन्न हो जायेंगे "!

इस सन्दर्भ में लीजिये मैं सबसे पहले अपनी ही प्रातःकालीन प्रार्थना आपको सुना दूं !इसके भाव तो नित्य एक ही होते हैं केवल शब्द बदलते रहते हैं !आज की शब्दावली इस प्रकार बन रही है  :


धन्यवाद  तेरा  प्रभु  तू  दाता सुख भोग 
जीवन की सब सफलता आनन्द के संयोग

जो कुछ मेरे पास है ,तेरा ही है दान
मैं इठलाता फिर रहा सब कुछ अपना मान

अर्पण करने को नहीं कुछ भी मेरे पास
खाली हाथ खडा यहाँ  ले दरसन की आस 

हर लो मेरा अहम् औ मेरे सभी विकार
भेंट समझ मेरी इसे, करलो प्रभु स्वीकार

धन्यवाद बस धन्यवाद बस धन्यवाद का गान  
मेरी पूजा मान कर , स्वीकारो भगवान  

"भोला"

प्रिय पाठकगण ,संदेशों का यह क्रम प्रारंभ करते समय मैंने स्पष्ट किया था कि 'स्वान्तः सुखाय" तथा सर्वथा निज स्वार्थ सिद्धि की लालसा से प्रेरित होकर मैं यह कार्य राम काज मान कर प्रारंभ कर रहा हूँ !

प्रियवर राजीव कुलश्रेष्ट जी , श्री भूपेंदर सिंह जी, श्री गोरख नाथ शाव जी श्री  चैतन्य शर्मा जी,"सारासच" जी ,Patali-the Village ji , तथा सुश्री  दिव्या जी  (ZEAL) , सुश्री शालिनी  जी, शिखा जी , संगीता स्वरूप जी --पिछले एक वर्ष में मैंने कितनी बार यह लेखन बंद करने पर विचार किया पर आपने मुझे रोक दिया! आप के प्रोत्साहन ने मुझे अपना यह विशेष "राम काम" करते रहने की प्रेरणा दी ! मेरी साधना चलती रही , मेरी उपासना होती रही !  मैं आपका कितना आभारी हूँ , कह नहीं सकता ! पर मुझे अटपटा लगता है ,आप में से कोई मुझे धन्यवाद देता है या कोई आभार प्रगट करता है मेरे इन आलेखों के लिए !

मेरे विचार में हम सबके धन्यवाद के पात्र तो हमारे प्यारे प्रभु "श्रीराम" हैं  जिन्होंने २००८ में मुझे जीवन दान देकर आदेश दिया था कि मैं अपनी और "उनकी " घनिष्ठ -परस्पर प्रीति के विषय में मुखर हो कर अपने अनुभवों को शब्द, सन्देश ,कविता, एवं स्वर संगीत (गायन) में परिणित करके "आत्म कथा" के रूप में संसार के समक्ष रखूँ !

प्रियजन, वास्तव में यह ब्लॉग लिख कर और उनमे अपनी भक्तिमय  रचनाएँ स्वयम गाकर  मैं "अपने इष्ट" के आदेश का पालन कर रहा हूँ !  मुझे उनका हुकुम बजाने में बहुत आनंद भी आरहा है !जितनी देर सन्देश लिखता हूँ मेरा  "हरि सुमिरन" और "नाम जाप" चलता ही रहता है ,और समापन के बाद भी  "नाम - खुमारी" टूटती नहीं !  इस शुभ विचार से कि मेरे सभी प्यारे प्यारे पाठक इस का पाठ करके अपने अपने इष्ट देवों को याद कर रहे होंगे ,मेरी खुमारी और बढ़ जाती है और मुझे  देर तक परमानंद का अनुभव होता रहता है ! 

इसलिए अपने सभी स्नेही स्वजन पाठकगण से मेरा करबद्ध निवेदन है कि आप मेरे  इन संदेशों में केवल अपने अपने इष्ट देवों का वैभव ,उनका सौन्दर्य और उनकी प्रतिभा के दर्शन करें ! उनका कृपा प्रसाद मान कर इनमें निहित दैविक आनंद ग्रहण करें ! आपको आपके "इष्ट" से मिला कर मैं पुण्य का भागी बन जाऊ , यह मेरा स्वार्थ है !

हाँ , लेकिन मुझे भुलाएँ नहीं ! हो सकता है कभी अहंकार के वशीभूत हो, मैं कुछ अनाप
शनाप लिख दूं ! प्रियजन निःसंकोच तत्काल मेरी भूल  मुझे बताइएगा !

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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
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मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

महाराज जी की जयन्ती के अवसर पर उनके एक परम प्रिय शिष्य श्री जगन्नाथ प्रसाद श्रीवास्तव के पुत्र अतुल श्रीवास्तव का पत्र

सभी परिवार जनों को यथा योग्य सादर चरण स्पर्श एवं राम राम

आज (दिनांक 18 अप्रेल 2011) परम पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की 150 वीं जयन्ती एवं श्री हनुमान जयन्ती है. स्वामी जी महाराज का जन्म सन 1861 की चैत्र शुक्ल पूरणमासी के दिन प्रात: 5 बजे हुआ था. श्री हनुमान जी का जन्म भी प्रात: 5 बजे हुआ था. अतएव मेरी धारणा है कि स्वामी जी महाराज हनुमान जी के अवतार थे, जो कलियुग में हम सब को राम नाम का अति मीठा रस पिलाने के लिये अवतरित हुए थे. उनकी 150वीं जयंती की सबको बधाई. ईश्वर करे स्वामी जी महाराज का वरद हस्त हम सब के सिर पर सदा बना रहे. इस विशेष उत्सव पर हम सब अमृतवाणी का पाठ करेंगे और स्वामी जी महाराज के प्रिय भजन ‘राम अब स्नेह सुधा बरसा दे’, ‘दयामय मंगल मन्दिर खोलो’ आदि गायेंगे एवं जाप करेंगे.

2008 अप्रेल में स्वामी जी महाराज की कृपा से, हम लोग (सुनीता, स्तुति, अमित, छोटे से अथर्व करुणानिधान और मैं) डलहौज़ी गये थे. पूज्य स्वामी जी महाराज के जन्म दिन पर हम लोगों को ‘परम धाम’ में अमृतवाणी का पाठ करने का सुअवसर स्वामी जी महाराज की कृपा से मिला था. बहुत आनन्द आया था. कुछ भजन भी, जिनमें ऊपर लिखे हुए भजन भी थे, गाये थे.

11 वर्ष पूर्व आज ही के दिन, स्वामी जी महाराज के परम शिष्य - परम पूज्य बाबू चोला छोड़ कर पूज्य स्वामी जी महाराज में लीन हो गये थे. इस वर्ष हनुमान जयन्ति की हिन्दी एवं कलेंडर तिथियां वही हैं जो वर्ष 2000 में थीं – जब पूज्य बाबू स्वामी जी में लीन हो गये थे. बाबू ने अपना ऑपरेशन – अपने चित्त को राम नाम में लगाकर करवाया था. ऑपरेशन के लिये जाने से पहले उन्होंने अपने सारे भजन खूब जोर जोर से गाये थे. जो अंतिम भजन उन्होंने गाया था – वह था – “राम नाम लौ लागी” .

परम पूज्य स्वामी जी महाराज में लीन होने की यात्रा से पहले उन्होंने इस पृथ्वी लोक पर अपने ऊपर किये हुए उपकारों की ‘कृतज्ञता’ – भक्तिप्रकाश के ‘कृतज्ञता’ (पृष्ठ 102) को राधा से सुनकर की. ‘कृतज्ञता’ सुनते सुनते ही वे चोला छोड़कर चले गये थे. तो आइये, अपन सब भी आज अमृतवाणी के पाठ के बाद, भक्तिप्रकाश के ‘कृतज्ञता’ (पृष्ठ 102) को पढ़ें.

कृतज्ञता

उसका रहूँ कृतज्ञ मैं, मानूँ अति आभार; जिसने अति हित प्रेम से, मुझ पर कर उपकार .1. 
 दिया दीवा सुदीपता, परम दिव्य हरि नाम; पड़ी सूझ निज रूप की, जिससे सुधरे काम .2.
कर्म धर्म का बोध दे, जिसने बताया राम; उस के चरण सरोज पर, नत शिर हो प्रणाम .3.
धन्यवाद उस सुजन का, करूं आदर सम्मान; जिसने आत्मबोध का, दिया मुझे शुभ ज्ञान .4.
उस के गुण उपकार का, पा सकूं नहीं पार; रोम रोम कृतज्ञ हो, करे सुधन्य पुकार .5.
उस के द्वार कुटीर पर, मैं दूं तन सिर वार; नमस्कार बहु मान से करूं मैं बारम्बार .6.
बहते जन को पोत शुभ, दिया नाम का जाप; शब्द शरण को दान कर, नष्ट किये सब पाप .7. 
उस ने जड़ी सुनाम दे, हरे जन्म के रोग; संशय भ्रान्ति दूर कर, हरे मरण के सोग .8.
चिन्तामणि हरि नाम दे, चिन्ता की चकचूर; दिया चित्त को चांदना, चंचलता कर दूर .9.
वारे जाऊँ सन्त के, जो देवे शुभ नाम; बाँह पकड़ सुस्थिर करे, राम बतावे धाम .10. 
सत्संगति के लाभ से, ऐसा बने बनाव; रंग बहुत गूढ़ा चढ़े, बढ़े चौगुणा चाव .11.

कुछ वर्ष पूर्व मैं जब जयपुर गया था, तब अपनी बहन (बिशन मौसी की पुत्री) सुषमा के घर भी गया था. सुषमा के पति श्री शेखर हैं. वे बहुत अच्छे क्लासिकल सिंगर हैं एवं भजनों के कार्यक्रम रेडिओ आदि पर देते हैं. उन्होंने बताया था कि पूज्य बाबू ने उन्हें एक भजन लिखकर उसकी राग बनाने को दी थी. उस विज़िट में हम लोग उनसे वह भजन नहीं सुन पाये थे. परन्तु, जब इस वर्ष होली पर जयपुर गये थे, तब श्री शेखर से वह भजन सुना था. उस भजन के बोल हैं “प्रभु को बिसार किसकी आराधना करूं मैं

यह भजन मैने टेप कर लिया था. आप सब को आनन्द लेने के लिये यह भजन मैं संलग्न कर रहा हूं


प्रभु को बिसार  किसकी आराधना करूं मैं .  
पा कल्पतरु किसीसे क्या याचना करूं मैं ..

मोती मिला जो मुझको मानस के मानसर में .  
कंकड़ बटोरने की  क्या चाहना करूं मैं ..

प्रभु को बिसार  किसकी आराधना करूं मैं .  
पा कल्पतरु किसीसे क्या याचना करूं मैं ..

सबका परमपिता जब घट घट में बस रहा है;
लघु जान क्यों किसीकी अवहेलना करूँ मैं.

प्रभु को बिसार  किसकी आराधना करूं मैं .  
पा कल्पतरु किसीसे क्या याचना करूं मैं ..

मुझको प्रकाश प्रतिपल  आनंद आंतरिक है .  
जग के अधिक सुखों की  क्या कामना करूं मैं ..

प्रभु को बिसार  किसकी आराधना करूं मैं .  
पा कल्पतरु किसीसे क्या याचना करूं मैं ..




श्री राम शरणम वयं प्रपन्ना: ; प्रसीद देवेश जगन्निवासत

आप सबका
अतुल

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

हनुमान जयंती - सद्गुरु जन्म दिवस # 3 4 7

अप्रेल १८ ,२०११, तदनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा सम्वत २०६८                                                             

श्री हनुमान जयंती के शुभ पर्व पर 

एवं



सद्गुरु श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के जन्म दिवस पर 


बधाई हो बधाई , सभी को बधाई

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जगतगुरु श्री हनुमान जी की जय 

श्रीरामचरितमानस जैसे विश्वविख्यात अनुपम ग्रन्थ के रचयिता ,परम रामभक्त,प्रकांड पांडित्य एवं ज्ञान के धनी ,श्रीमद गोस्वामी तुलसीदासजी ने जिन दिव्य महात्मा की अद्वितीय शक्तियों एवं क्षमताओं का आंकलन कर अपना गुरु माना और जिनका स्मरण करके उनसे बल बुधि विद्या प्राप्ति के लिए प्रार्थना की वह थे श्री हनुमान जी महाराज :

बुद्धि हींन  तन  जनि के  सुमिरों  पवन कुमार 
बल बुधि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश बिकार 

सोच के देखें ऐसे अंजनिसुत,पवनकुमार ,मारुती नन्दन श्री हनुमानजी से श्रेष्ठ इस संसार में और कौन गुरु हो सकता है ! आज के महान संत कथा वाचक श्री मुरारी बापू ने तो यहाँ तक कहा है की यदि किसी व्यक्ति को अब तक सदगुरु नहीं मिला है तो वह श्री हनुमान जी को अपना गुरु बनाले! 
उनके अनुसार श्री हनुमानजी को परमगुरु मान कर उनके सद्गुणों का अनुकरण करके जीवन जीने वालों का अवश्यमेव कल्याण होगा !

शताब्दियों से हमारे परिवार के "कुल देवता - कुल गुरु "यह श्री हनुमानजी ही हैं ! जन्म से लेकर आज तक अपने पुश्तैनी घर के आंगन में लहराते महाबीरी ध्वजा की छाया में नतमस्तक  होकर  शताब्दियों तक हमारे परिजनों और हम लोगों ने सदा "उनसे" प्रार्थना की है और उनकी कृपा वृष्टि का अनंत आनंद लूटा है !

जय जय जय हनुमान गोसाईं  !  कृपा करो गुरुदेव की नाई !

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गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महाराज 

मुझे पूरा विश्वास है की श्री हनुमान जी की कृपा के फल स्वरूप ही मुझे इस जीवन में इतने सहृदय परिजन, विज्ञ गुरजन ,स्नेही मित्रगण तथा आध्यात्मिक गुरुदेव श्री स्वामी जी मिले !इतनी सारी शुभ उपलब्धियां किसी को कभी भी अनायास ही नहीं हो सकतीं !प्यारे प्रभु की करुणा के बिनाकुछ भी संभव नहीं है ! हमारे जन्म से बहुत पहले ही से हमपर उनकी कृपा वर्षा शुरू हो जाती है, तभी तो चौरासी लाख योनियों में से सर्वोत्तम "मानव" योनी ही हमे क्यों मिली ? प्रियजन कितनी बड़ी कृपा है उनकी हमपर !
 कबहुक करि करुना नर देही ! देत ईस  बिनु हेतु स्नेही !!
                          बड़े भाग मानुष तन पावा ! सुर दुरलभ सब ग्रन्थही  गावा !





सदगुरु की महत्ता 

ईश्वर ने विशेष अनुग्रह करके मानव को यह अनंत क्षमताओं से भरपूर देवदुर्लभ मानुष चोला दिया है ! अबोध बालक सा मानव अपनी क्षमताओं से तब तक पूरी तरह अनभिग्य रहता है जब तक "जामवंत" जैसे सद्गुरु उस बालक का उपनयन-विद्यारम्भ करवा कर उसका मार्ग दर्शन नहीं करते ,उसकी आत्म शक्ति को जागृत नहीं करते ! 

गुरुजन साधारण मानव को उसकी उसमें ही  निहित क्षमताओं का ज्ञान कराते हैं और उसे अनुशासित  जीवन जीने की कला बता कर उसका उचित मार्ग दर्शन करते हैं !मेरे सद्गुरु ने भी मुझे दीक्षा दे कर मुझ पर महत कृपा की ,मेरा पथ प्रदर्शित कर  मुझे  सत्य ,प्रेम और सेवा के  मार्ग पर चलना सिखाया ,सात्विक  जीवन जीने की कला  सिखाई ,अनुशासन पालन करते हुए जगत में व्यवहार करना सिखाया ! मैं कभी कभी सोचता हूँ कि मेरा क्या हुआ होता यदि मुझे मेरे "सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज " इस जीवन में मुझे नहीं मिलते और इतनी कृपा करके उन्होंने मुझे अपना न बनाया होता या मुझे अपने श्री राम शरणम के "राम नाम उपासक परिवार" में सम्मिलित न  किया होता ? 


सद्गुरु मिलन से मुझे जो उत्कृष्ट उपलब्धि हुई वह अविस्मरणीय है !उससे मैं धन्य हो गया और सच पूछो तो मेरा यह मानव जन्म सार्थक हो गया ! "सद्गुरु दर्शन" के उपरांत मेरी सर्वोच्च उपलब्धि थी सद्गुरु के "कृपा पात्र" बन पाने का सौभाग्य !

१९५६ में मेरा विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ जिसके सभी वयस्क सदस्य श्री स्वामी सत्यानंदजी महाराज के कृपापात्र  शिष्य थे ! ये श्रेष्ठ जन पानीपत की माता शकुन्तला जी ,गुहांना के पिताजी  भगत श्री हंस राज जी , बम्बई के ईश्वर दास जी तथा गुरुदेव श्री प्रेमनाथ जी के साथ  स्वामी जी की "नाम भक्ति" साधना में पूरी तरह जुटे हुए थे ! उनसे प्रेरणा पाकर मैं भी स्वामी जी महराज से दीक्षित हुआ और "रामनाम" की उपासना में लग गया ! यह मेरा परम सौभाग्य था !
 

भ्रम  भूल   में   भटकते  उदय  हुए  जब  भाग !                                                             मिला अचानक गुरु मुझे लगी लगन की जाग!!




मैंने पहले कहीं कहा  है , एक बार फिर कहने को जी कर रहा है की मनुष्य को मानवजन्म प्रदान कर धरती पर भेजता तो परमेश्वर है लेकिन उसको इन्सान बनाता है ,उसका पालन करता है , उसको राह दिखाता है ,उसकी रक्षा करता है ,उसकी आत्म शक्ति जगता है,उसको मोक्ष का द्वार  दिखाता है उसका "सद्गुरु" ! और यह सद्गुरु भी उसे उसके परम सौभाग्य से एकमात्र उस प्यारे परमेश्वर की कृपा से ही मिलता है !


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दिवंगत श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज इस युग के महानतम धर्मवेत्ताओं में से एक थे जो  लगभग ६४ वर्षों तक जैन धर्म तथा आर्यसमाज की सेवा करते रहे ! अपने प्रवचनों द्वारा वह जन जन की आध्यात्मिक उन्नति  के साथ साथ सामाजिक उत्थान के लिए भी प्रयत्नशील रहे ! इन सम्प्रदायों से सम्बन्ध रखने पर तथा उनकी विधि के अनुसार साधना करने पर भी जब उन्हें उस आनंद का अनुभव नहीं हुआ जो परमेश्वर मिलन से होना चाहिए तो उन्होंने इन दोनों मतों के प्रमुख प्रचारक बने रहना निरर्थक जाना और १९२५ में हिमालय की सुरम्य एकांत गोद  में जा कर उस निराकार ब्रह्म की (जिसकी महिमा वह आर्य समाज के प्रचार मंचों पर लगभग ३० वर्षों से अथक गाते रहे थे)  इतनी सघन उपासना की कि वह निर्गुण "ब्रह्म" स्वमेव उनके सन्मुख "नाद" स्वरूप में प्रगट हुआ और उसने स्वामीजी को " परम तेजोमय , प्रकाश रूप , ज्योतिर्मय,परमज्ञानानंद स्वरूप , देवाधिदेव श्री "राम नाम" के महिमा गान एवं एक मात्र उस "राम नाम" के प्रचार प्रसार में लग जाने की दिव्य प्रेरणा दी जिसका लाभ आज तक हम सब सत्संगी उठा रहे हैं !

   
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला" 
सहयोग : श्रीमती डोक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव  
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रविवार, 17 अप्रैल 2011

अतुलित बल धामं हेम शैलाभ देहं # 3 4 6

अतुलित-बल-धामम् हेम-शैलाभ-देहं


युगों युगों से असंख्य विश्वासी आस्तिकों को अपनी कृपा दृष्टि से अनुग्रहित कर उन्हें सभी दैहिक, दैविक भौतिक तापों से मुक्ति प्रदान करवाने वाले संकट मोचन, दुःख भंजन , "श्री हनुमान जी" को गोस्वामी तुलसीदास ने "राम चरित मानस " के बालकाण्ड के वन्दना प्रकरण में "महावीर" नाम से संबोधित किया है I

" महाबीर बिनवउँ हनुमाना "

उन्होंने श्री हनुमान जी की वन्दना में कहा है कि मैं उस "महावीर हनुमान" की वंदना करता हूँ जिस की यशगाथा का गायन स्वयं मर्यादा- पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र जी ने अनेकों बार किया है -

"राम जासु जस आप बखाना "

सुंदर काण्ड के आरंभिक श्लोकों में तुलसी ने स्पष्ट शब्दों में हनुमान जी के , उन गुणों का उल्लेख किया है जिन के कारण वह एक साधारण कपि से इतने पूजनीय हो गये.

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजबनकृशानुम , ग्यानिनामअग्रगण्यं
सकल गुण निधानं वानरानामधीशं
रघुपति प्रिय भक्तं वातजातं नमामि

तुलसी ने कहा "अतुलित बल के धाम, स्वर्ण के समान कान्तियुक्त कायावाले , दैत्यों के संहारक (दैत्य वन के लिए दावानल के समान विध्वंसक ), ज्ञानियों में सर्वोपरि , सभी श्रेठ गुणों से युक्त समस्त वानर समुदाय के अधीक्षक और श्री रघुनाथ जी के अतिशय प्रिय भक्त महावीर हनुमान को मैं प्रणाम करता हूँ".

अन्यत्र भी उनके स्थूल रूप की व्याख्या करते हुए तुलसी ने कहा कि हनुमान जी देखने में कपि - एक अति चंचल पशु हैं, उछलते कूदते वृक्षों की एक शाखा से दूसरी शाखा पर सुगमता से जा सकते है और मानस के उत्तर -काण्ड में हनुमानजी ने स्वयं ही अपना परिचय देते हुए भरत जी से स्पष्ट कहा कि मैं कपि हूँ !

"मारुत सुत मै कपि हनुमाना, नाम मोर सुनु कृपा निधाना "

सराहनीय है हमारे इष्टदेव

“महावीर विक्रमबजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी"

कपि-तन-धारी हनुमान जी का यह "विनय" और उनकी यह "नम्रता"!

श्री हनुमान जी के सभी गुण अनुकरणीय हैं ! लेकिन इनमे सर्वोपरि है उनकी यह अहंकार शून्यता, उनकी अतिशय विनम्रता और उनकी विनय !

आज का मानव जिसका जीवन मूल्य कहीं कहीं पशुता के स्तर से भी बहुत नीचे गिर चुका है, अपना स्वरुप सुधारने के लिए हनुमान जी के इन सद्गुणों को यदि अपनी जीवन शैली में उतार सके तो मानवता का कल्याण हो जाए.!

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इस सन्देश के पीछेवाले ब्लॉग में मेरी बेटी श्री देवी ने मेरी आवाज़ में 
अतुलित बल धामम् का गायन पहले से ही डाल दिया है ! 
कृपया सुनिए और मेरे साथ साथ वह श्लोक गाइए और फिर देखिये 
कितनी कृपा करते हैं संकट मोचन सारी मानवता पर !
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : सुश्री श्री देवी कुमार एवं श्रीमती कृष्णा भोला जी
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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

Shloka: Atulita Bala Dhamam



अतुलित बल धामं हेम शैलाभ देहम्‌ 
दनुज वन कृषाणं ज्ञानिनां अग्रगणयम्‌ 
सकल गुण निधानं वानराणामधीशम्‌ 
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि