गुरुवार, 29 सितंबर 2011

दैनिक प्रार्थना (रविवार)

प्रथम दिवस की आराधना

कल श्री गीताजी तथा रामचरित मानस के जो अंश अपनी दैनिक प्रार्थना में पढ़ने के लिए प्रेषित किये थे, उन को पढ़ लेने के बाद,सप्ताह के प्रत्येक दिन गीता एवं रामायण के दूसरे अंश पढे जाते हैं ! मैं इस नवरात्रि भर, हर दिन के अलग अलग अंश आपको प्रेषित करूँगा ! संस्कृत वाले भाष्य को सहूलियत से पढ़ने के लिए उसका ऑडियो रेकोर्ड भी भेजुंगा जिससे आप भी हमारे साथ, साउंड ट्रेक के सहारे बोल कर संस्कृत में गीता का पाठ कर लेंगे !

आज मैं सप्ताह के प्रथम दिन पढ़ने वाले गीताऔर रामायण के अंश भेज रहा हूँ ! इनमे भी पहिले गीता के श्लोक है जिनमे योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण मानवता को अभय दान देते हुए कहा :




रामचरित मानस से संकलित , मानव को प्रथम कर्तव्य बताते अंश

आज के रामचरित मानस से संकलित दोहे चौपाइयों में गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानवता के कल्याण के लिए वे कर्तव्य बताये हैं जिन्हें अपनाकर मानव अपना जीवन पूर्णतः सफल बना सकता है ! तुलसी ने स्पष्ट कहा है कि हमारा जीवन तभी सफल होगा जब हम, समय से निद्रा त्याग कर, प्रातः उठते ही सर्वप्रथम माता पिता और गुरुजन के आशीर्वाद ले और कोई भी कार्य शुरू करने से पहले ,"कोसलपुर राजा" जैसे अपने "प्यारे प्रभु" को "हृदय राखि" कर, दिन भर के अपने सभी सांसारिक कर्तव्य कर्म पूरे करें ! 

तो लीजिए आप भी आज का मानस पाठ कर लें :




रामायण के इस पाठ का साउंड ट्रेक सुनने के लिए नीचे के प्लेयर में क्लिक करें.



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क्रमशः
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा जी , श्री देवी ,प्रार्थना एवं माधव
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मंगलवार, 27 सितंबर 2011

दैनिक प्रार्थना

नवरात्रि के प्रथम दिवस पर हमारी
हार्दिक बधाई स्वीकारें

आज प्रातः ही आंतरिक प्रेरणा हुई कि इस नवरात्रि भर प्रति दिन, हम दोनों मिल कर "रामचरित मानस" के किसी न् किसी अंश का पाठ करें ! यह भी विचार आया कि अपने ब्लॉग के द्वारा मानस का वह प्रसंग हम आपकी सेवा में प्रेषित करें जिससे नवरात्रि की हमारी इस विशेष आराधना में आप भी शामिल हो कर अपने अपने इष्ट देवों का सिमरन कर लें !

सर्वप्रथम आपको वह दैनिक प्रार्थना बताऊँ जिससे मेरा प्रथम परिचय नवेम्बर १९५६ में उस समय हुआ जब मैं अपनी नयी नयी धर्मपत्नी को पहली बार ग्वालियर से विदा करवा कर ला रहा था !चलते चलते ससुराल पक्ष के किसी विशिष्ट व्यक्ति ने मेरे हाथ में एक पुस्तिका पकड़ाई थी जिसका नाम था "उत्थान पथ" ! ( इस पर बारात के मेरे मित्रों ने चिढा कर कहा था " क्या खूब दहेज मिला तुम्हे भोलू ")!

यह पुस्तिका हमारे राम परिवार के मुखिया तथा हमारे आध्यात्मिक मार्ग दर्शक तथा धर्म पत्नी कृष्णा जी के बड़े भाई दिवंगत माननीय श्री शिवदयाल जी ,भूत पूर्व , चीफ जस्टिस ऑफ एम्. पी. हाईकोर्ट ने प्रभु श्रीराम की प्रेरणा से संकलित की थी ! इसके प्रकाशकों में मेरी नयी नयी बनी धर्मपत्नी कृष्णा जी का नाम भी था - और इसका विमोचन हमारे शुभ विवाह के दिन ही हुआ था ! प्रियजन, रोकोगे नहीं तो यह आत्म कहानी खत्म नहीं होगी ! चलिए अब तो ऊपरवाले ने सिग्नल की लाल बत्ती जला दी और मेरी आत्म कथा रुक गयी !

मैं उसी पुस्तिका "उत्थान पथ" के अंश आपके पास प्रेषित कर रहा हूँ ! हमारा पूरा परिवार, बच्चे बूढे सब मिल कर ,इसके अंश ,एक साथ ,समवेत स्वर में बोलते हैं ! इसके पाठ तथा उससे ग्रहण किये शुभ विचारों से हमारे पूरे परिवार का हर क्षेत्र में उत्थान हुआ है !आप भी थोडा मन लगा कर इसे पढ़ें , इसके भाष्य में "राम" के स्थान पर आप सहर्ष , अपने इष्ट का नाम बोल सकते हैं !

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दैनिक प्रार्थना

सर्वशक्तिमते परमात्मने श्रीरामाय नम:

मेरे राम मेरे नाथ
आप सर्वदयालु हो, सर्वसमर्थ हो, सर्वत्र हो, सर्वग्य हो ! आपको कोटिश नमस्कार !

आपने साधना के लिए मानव शरीर दिया है और प्रति क्षण दया करते रहते हो ! आपके अनंत
उपकारों का ऋण नहीं चुका सकता ! पूजा से आपको रिझाने का प्रयास करना चाहता हूँ !

अपनी कृपा से मेरे विश्वास दृढ़ कीजिए कि "राम मेरा सर्वस्व है","मैं राम का हूँ", "सब मेरे राम का है", "सब मेरे राम के हैं,","सब राम के मंगलमय विधान से होता है" और "उसी में मेरा कल्याण निहित है "!

अपनी अखंड स्मृति दीजिए ,राम नाम का जप करता रहूँ! रोम रोम में राम बसा है ! हर स्थान पर ,हर समय , राम को समीप देखूँ ! अपनी चरण शरण में अविचल श्रुद्धा दीजिए ! मेरे समस्त संकल्प राम इच्छा में विलीन हों! राम कृपा में अनन्य भरोसा रखकर सदा संतुष्ट और निश्चिन्त रहूँ ,शांत रहूँ ,मस्त रहूँ !

ऐसी बुद्धि और शक्ति दीजिए कि वर्तमान परिस्थिति का सदुपयोग करके पूरा समय और पूरी योग्यता लगा कर अपना कर्तव्य लगन, उत्साह और प्रसन्नचित्त से करता रहूँ ! मेरे द्वारा कोई ऐसा कर्म न होने पावे जिसमे मेरे विवेक का विरोध हो !

सत्य, निर्मलता, सरलता, प्रसन्नता, विनम्रता, मधुरता मेरा  स्वभाव हो !

दुखी को देखकर सहज कारुणित और सुखी को देख कर सहज प्रसन्न हो जाऊँ ! मेरे जीवन
में जो सुख का अंश हो वह दूसरों के काम आये और जो दुःख का अंश हो वह मुझे त्याग सिखाये !

मेरी प्रार्थना है कि आपका अभय हस्त सदा मेरे मस्तक पर रहे, आपकी कृपा सदा सर्वदा सब पर बनी रहे ! सब प्राणियों में सद्भावना बढती रहे , विश्व का कल्याण हो !

ॐ शांति, शांति ,शांति
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उपरोक्त प्रार्थना के बाद हम रामचरित मानस का निम्नांकित अंश बोलते है :
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मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर !
अस बिचार रघुबंस मनि हरहु विषम भव भीर !!

मैं सिसु प्रभु सनेह प्रतिपाला ! मंदरु मेरु कि लेहि मराला !!
मोरें सबइ एक तुम स्वामी ! दीन बन्धु उर अन्तर्यामी !!
जदपि नाथ बहु अवगुन मोरे ! सेवक प्रभुहि परे जनि भोरे !!
सेवक सुत पति मात भरोसे ! रहइ असोच बने प्रभु पोसे !!
असरन सरन बिरदु सम्भारी ! मोहि जन तजहु भगत हितकारी !!
मोरे तुम प्रभु गुरु पितु माता ! जाउ कहाँ तजि पद जल जाता !!
बालक ज्ञान बुद्धि बल हीना ! राखहु सरन नाथ जन दीना !!
बार बार मागहु कर जोरे ! मनु परिहरे चरन जनि भोरे !!

श्रवन सुजसु सुन आयहूँ प्रभु भंजन भव भीर !
त्राहि त्राहि आरत हरन सरन सुखद रघुबीर !!
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क्रमशः
निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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रविवार, 25 सितंबर 2011

नाम जप द्वारा उपासना -प्रार्थना

निष्काम सेवा ,सत्संग , सिमरन ,नाम जपन औ भजन कीर्तन
"इष्ट कृपा" पावें इनसे जन , कहते ऐसा अपने गुरुजन
(भोला)

हमारे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के श्रीमुख से निसृत एक प्रवचन में मैंने सुना था कि 'साधना' में 'उपासना' और 'उपासना' में साधक द्वारा की हुई 'प्रार्थना' सबसे आसान और कारगर क्रिया है ! हमारा "नाम जाप" भी "प्रार्थना" का एक सरलतम रूप है ! नाम जाप द्वारा की हुई प्रार्थना से न केवल साधक की "आत्म जागृति" होती है ,वह "अपने इष्ट" के द्वार तक पहुंच कर "उनका" कृपा पात्र बन जाता है , उसे इतनी सिद्धि मिलती है कि साधक अपनी "प्रार्थना" द्वारा "लोक कल्याण" भी कर सकता है !

हमारे श्री राम शरणम के गुरुदेव श्री प्रेम नाथ सेठी जी महाराज ने सांसारिक कर्मों को बिना त्यागे और बिना कोई आडम्बर किये ,अपनी नाम जप की साधना द्वारा केवल प्रार्थना के बल पर कितने लोगों के कष्ट दूर किये ,कितना लोक कल्याण किया आज बहुत लोग नही जानते हैं ! हमारे सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महांराज उनके इस गुण से अवगत थे ! वह अपने प्रवचनों में अक्सर प्रेमजी महराज के इस गुण का ज़िक्र करते थे !

मैंने और मेरे परिवार ने ,लगभग ३० वर्ष (१९६० से १९९० के दशक तक) गुरुदेव प्रेम जी सेठी महाराज के सामीप्य का दिव्य आनंद उठाया है, उनका आशीर्वाद पाया है तथा आज अभी तक उनकी कृपा से लाभान्वित हो रहे हैं ! अपनी आत्म कथा में मैंने प्रेमजी महराज के आशीर्वाद से मुझे और मेरे पूरे परिवार को हुए कुछ अद्भत चमत्कारी लाभ प्रद अनुभवों का विस्तृत विवरण दिया है ! निजी अनुभवों से अधिक सत्य और क्या हो सकता है ? 'नामजप' साधना द्वारा की हुई प्रार्थना' से ,प्रेम जी महाराज द्वारा किये 'लोक कल्याण' का इससे अधिक उत्कृष्ट उदहारण और कौन सा बता सकता हूँ ! इस कथन में मेरा कोई निजी स्वार्थ नहीं है और न मैं इसके द्वारा दिवंगत श्री प्रेम जी महाराज के द्वारा प्राप्त 'सिद्धि' की पबलिसिटी ही कर रहा हूँ !

मैं आज भी, सौभाग्य से कुछ ऐसे दिव्यात्माओं को जानता हूँ जो सैकड़ों मील दूर रह कर भी जब हमे याद करते हैं तब उनकी शुभ कामनाओं की जीवनदायनी तरंगें हमारे पास पहुंच कर तत्क्षण हमारे अंतर को पूर्णतः आनंद से भर देती है !

प्रियजन , ,मेरे उपरोक्त कथन का एकमात्र उद्देश्य है कि मैं आपको विश्वास दिलाऊँ कि आप भी अपने गुरुजन से प्राप्त मंत्र के विधिवत जाप के द्वारा प्रार्थना करके , 'आत्म- जाग्रति' के साथ साथ "सिद्धि" की वह स्थिति प्राप्त कर सकते हैं जिससे आप को परसेवा ,परोपकार एवं परहित के कर्म करने की प्रेरणा मिले और इससे आपका 'कल्याण" भी सुनिश्चित' हो जाये !

चलिए हम मिल जुल कर एक प्रार्थना कर लें ! यह प्रार्थना मैंने अपनी सबसे छोटी पौत्री नंदिनी से , दिल्ली में २००८ में , जब वह केवल ८ वर्ष की थी ,सुनी थी ! यह प्रार्थना नंदिनी ने अपने स्कूल की संगीत शिक्षिका "शिवानी "जी से सीखी थी !

प्रार्थना
हे ईश्वर तुम हमको ऐसा वर औ शक्ती दो
निष्काम सेवा सत्संग सिमरन और अनन्य भक्ती दो


हे ईश्वर तुम हमको ऐसा वर औ शक्ती दो
निष्काम सेवा सत्संग सिमरन और अनन्य भक्ती दो
हे ईश्वर तुम मुझको ऐसा वर औ शक्ती दो

(नंदिनी द्वारा स्कूल में सीखे भजन की दो पंक्तियाँ )
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भेजा है तूने हमे इस धरा पर कि हम तेरी महिमा क गायन करें
हमारा हरिक कर्म हो तेरी पूजा ,सुफल कर्म के तुझ पे अर्पण करें
हे ईश्वर तुम हमको ऐसा वर औ शक्ती दो
("भोला"द्वारा रचित )

जीवन मिला है हमे दो दिवस का, इसे मिल के क्यूँ ना सजाते है हम ?
आपस में लडते झगड़ते सदा हम स्वयम अपना गौरव गंवाते है हम
हे ईश्वर तुम हमको ऐसा वर औ शक्ती दो
('भोला"द्वारा रचित)

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निवेदक :व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग :डॉक्टर श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

नाम महिमा

नाम जाप त्रय ताप निवारे
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प्रेम भाव से सिमरिये परम मधुर शुभ "नाम"
तीन ताप त्रिदोष हर देवे शान्ति विश्राम
(भक्ति प्रकाश )

कठिन परिस्थिति में हमारे घनिष्ठ से घनिष्ठ साथी हमारा साथ छोड़ देते हैं ! हमें असहाय कर देते हैं ! ऐसे में , नीली छतरी वाले "कारण बिनु कृपालु - प्रभु" ,अक्सर हमारे पुकारने के पहले ही , दोनों बांह पसारे हमारी सहायतार्थ दौड़ पड़ते हैं और हमारी उंगली थाम कर हमारा मार्ग दर्शन कर देते हैं ! कभी कभी की छोड़िये वो "दीनदयालु" "कृपानिधान" एकेवाद्वितीय "परमेश्वर" ,वास्तव में सदैव ही इन तीनों कष्टप्रद भवतापों से हमारी रक्षा करते हैं !


प्रियजन ये महापुरुषों से सुने सुनाये सूत्र नहीं हैं !यह अनुभूत सत्य है ! इस सृष्टि में प्रत्येक प्राणी के जीवन में पल पल ऐसा हो रहां है , आपके और हमारे जीवन में भी , खेद तो इसका है कि अधिकतर प्राणी "उनकी" इस अहेतुकी कृपा का लाभ तो उठाते रहते हैं ,लेकिन अपने इस लाभ के लिए उस दाता - "परम" को , तनिक भी "मान" (क्रेडिट) नहीं देते !

अब तक के अपने ८२ वर्ष के जीवन में मैंने , निजी जीवन तथा अपने आसपास वालों के जीवन में "प्रभु" की ऐसी अहेतुकी कृपा के अनेकों दृष्टांत देखे सुने हैं ! अपनी आत्मकथा में मैंने अपने जीवन में घटीं ऐसी अनेक घटनाएँ बतायी हैं जिनमे हमे अपने प्यारे प्रभु के द्वारा हमारे ऊपर की हुई अनेकों अहेतुकी कृपा के प्रमाणों के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं !

अपने एकाध अनुभव यहाँ सुना देता हूँ! प्रियजन , अभी मुझे याद आ रही है अपने विद्यार्थी जीवन की एक घटना : १९४२-४३ में ,गांधी जी का असहयोग आंदोलन कहीं कहीं हिंसक हो रहा था ! उन्ही दिनों मैं एक रात कानपूर से आगरा जाने के लिए अन्य वरिष्ठ (सीनियर) विद्यार्थियों के साथ ट्रेन में खिड़की की सीट पर बैठा ! एक सीनियर ने मुझे जबरदस्ती वहाँ से हटा दिया और दो टॉयलेटो के बीच की सकरी गली में बक्सों का बेड बना कर उसपर सोने का फरमान जारी कर दिया ! मैं बक्सों पर दुबक कर बैठ गया ! तभी , प्लेटफार्म पर ,ठीक हमारे डिब्बे के सामने ही एक भयंकर बम् विस्फोट हुआ , अफरा तफरी मच गयी , बत्तियाँ गुल हो गयीं , घायलों की दर्द भरी चीखें और कराहने की आवाज़ ,तथा स्टेशन की एस्बसट्स की छत के टूट टूट कर गिरने की आवाज़ कान में पड़ती रहीं और मैं सांस रोके हुए , चुप चाप दोनों टोयलेट्स के बीच की गली में सुरक्षित बैठा रहा ! जब बत्तियाँ जली तब पता चला कि मेरी जगह जो व्यक्ति खिड़की पर बैठा था , वह बम बारी में बुरी तरह घायल हो गया और उसे रेलवे होस्पिटल ले जाया गया है ! किसने बचाया मुझे ? प्यारे प्रभु के उन अदृश्य हाथों के अतिरिक्त कौन हो सकता है इतना कृपालु ? अनेक और ऐसी घटनाएँ मेरे जीवन में हुईं जब "उन्होंने" मुझको भयकर आपदाओं की मार से बचा लिया ! इनका विस्तृतविवरण मैं अपनी आत्मकथा में अन्यत्र दे चूका हूँ ! अतः यहाँ नहीं दुहराऊंगा !

प्रियजन आपको भी तो , जीवन में इस प्रकार के अनेक अनुभव हुए होंगे ! इस बुज़ुर्ग शुभचिंतक की एक बात मानिए , थोड़ी देर को अपनी आँख मूंद कर अपने "इष्ट" का स्मरण कर लीजिए और अपने ऊपर की हुई "प्रभु" की कम से कम एक महती कृपा को याद करके "उन्हें" अपार श्रद्धा से हार्दिक धन्यवाद दीजिए !

कर्म करो त्यों जगत के धुन में धारे राम
हाथ पाँव से काम हो , मुख में मधुमय नाम

(भक्ति प्रकाश)

माता पिता एवं गुरुजनों के आदेशानुसार आस्तिकता का मार्ग अपना कर अपने जीवन में सात्विकता ,अनुशासन और प्रेम का संचार करें ! "राम नाम" के प्रति अटूट श्रद्धा मन में भर कर नाम का सिमरन कीजिए "उनकी" कृपा दृष्टि आपको निहाल कर देगी !

इधर कुछ दिनों से हाई ब्लड प्रेशर झेल रहा था , सिस्टोलिक १६० - १८० से नीचे नहीं आ रहा था ! सारी दवाइयां विधिवत चल रही थीं फिर भी 'बी पी' कंट्रोल में नही आ रहा था ! अपनी आखरी दवाई है "भजन" , आज वह दवा ली , अब कुछ ठीक महसूस कर रहा हूँ ! लीजिए आप भी सुन लीजिए वह भजन ----

राम राम काहे ना बोले , व्याकुल मन जब इत उत डोले



राम राम काहे ना बोले
राम राम काहे ना बोले , व्याकुल मन जब इत उत डोले
राम राम काहे ना बोले

लाख चौरासी भुगत के आया , बड़े भाग मानुष तन पाया ,
अवसर मिला अमोलक तुझको , जनम जनम के अघ अब धोले
राम राम काहे ना बोले , व्याकुल मन जब इत उत डोले
राम राम काहे ना बोले

नाम जाप से धीरज आवे , मन की चंचलता मिट जावे ,
परमानंद हृदय बस जाने , यदि तू एक नाम का होले ,
राम राम काहे ना बोले , व्याकुल मन जब इत उत डोले
राम राम काहे ना बोले

इधर उधर की बात छोड़ अब, राम नाम से प्रीति जोड़ अब ,
राम धाम में स्वागत करने श्री गुरुदेव खड़े , पट खोले ,
राम राम काहे ना बोले , व्याकुल मन जब इत उत डोले
राम राम काहे ना बोले

(शब्दकार स्वरकार और गायक
"भोला")
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निवेदक: व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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बुधवार, 21 सितंबर 2011

एक खुला पत्र - हिन्दी ब्लोगर परिवार को

यह गृह युद्ध
" प्रणव दा और चिदम्बरम जी का नहीं- 'हमारा' "
मेरे परम प्रिय हिन्दी ब्लोगर बंधुओं

मैं - ब्लोगर परिवार का एक ८२ वर्षीय सदस्य और मेरी ७६ वर्षीया ,
५५ वर्षों से मेरी जीवन संगिनी तथा इस ब्लॉग लेखन में मेंरी सहयोगिनी
हम दोनों इस विशेष ब्लॉग द्वारा आप से एक नम्र निवेदन कर रहे हैं !

"राम परिवार" और "भोला परिवार" के स्वजनों से भी ,आज ,कहीं अधिक प्रिय बन गए ,मेरे अपने "हिन्दी ब्लोगर परिवार" के सदस्यों के नाम यह संदेश लिखते समय हम दोनों पति पत्नी हिन्दी ब्लोगर बन्धुत्व में छिड़े इस गृह युद्ध के कारण मन ही मन बहुत दुखी है !

ब्लोगर बन्धु ! हम एप्रिल २०१० में , एक ईश्वरीय प्रेरणा और अपने सद्गुरु के आदेशानुसार आपके इस विशिष्ट परिवार में शामिल हुए ! तब ,इस ब्लॉग लेखन द्वारा मेंरा एक मात्र उद्देश्य था, अपने "राम व भोला" परिवार के स्वजनॉ को अपनी "आत्मकथा" के द्वारा निजी अनुभव बताऊ और उनके जीवन शैली में आस्तिकता का संचार करूं और स्वजनों में "प्रेम-भक्ति" और निष्काम व निःस्वार्थ सेवा करने की भावना जगाऊँ ! "राम व भोला परिवार" के सैकड़ों सदस्य जन्म से ही अपने परिवार के उच्च संस्कारों से प्रेरित हो कर मेरी बात प्रेम से सुनते हैं और उनके परिवार के नन्हे नन्हे बच्चे भी मेरी बातें सुन कर लाभान्वित होते हैं !

शुरू शुरू में राम - भोला- परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त बाहर के केवल दो चार ब्लोगर बंधु ही मेरा ब्लॉग पढते थे ! बीच में प्रोत्साहन के आभाव और अपनी अस्वस्थता के कारण हमने लिखना बंद करने की सोची ! ऐसे में निष्काम और निःस्वार्थ भाव से आप चंद ब्लोगर बंधुओं ने हमे ह्तोत्साहित होने से बचा लिया और उन्होंने हमारा मनोबल इतना बढाया कि आज हम आपके पास यह ४३५ वां ब्लॉग प्रेषित कर रहे हैं ! हम उन विशाल हृदयी ब्लोगर्स के हार्दिक आभारी हैं ! हम आजीवन भुला नहीं सकते हिन्दी ब्लोगर बन्धुत्व के उस उपकार को ,उनकी उदारता को !

लेकिन आज यह क्या हो रहा है ? मेरे जैसे परदेसी नये ब्लोगर को अपने स्नेह से जीत लेने वाले आप महानुभाव आज न् जाने क्यों एक दूसरे के ही बैरी हो रहे हैं , एक दूसरे पर कीचड उछाल रहे हैं ,अंधाधुं दोषारोपण कर रहे हैं , अपशब्दों की बौछार कर रहे हैं ? और हम सब दर्शनार्थी बन्धु इस युद्ध के हवन कुंड में भर भर कटोरी घी की आहुती डालते जा रहे हैं !
बन्धुजनों , आग बुझाइए ,अपने हरे भरे परिवार को दावानल में भस्म होने से बचाइए ! प्रभु का आदेश है कि मैं आपको ,,७० - ७५ वर्ष पूर्व सुने एक गीत के आधार पर आज के इस गृह युद्ध के माहौल में रचित ,अपनी यह रचना आपको सुनाऊँ , प्रस्तुत है
:
ओ इंसान , भले इंसान ,
परम विद्वान बात लो मान
स्वजन ,लो अपने को पहचान
मान लिया इक घर के बर्तन आपस में टकराते हैं
मान लिया जंगल के पंछी कभी कभी लड जाते हैं
उनके रैन बसेरों के तिनके न बिखरने पाते हैं
ब्लोगर बन्धु किन्तु अपना घर अपने हाथ जलाते हैं
भला क्यूँ बने हुए अनजान
गंवाते निज अपना सम्मान
(कितना दुर्भाग्य है कि इस प्रकार )
अपनी भाषा अपनी संस्कृत को हम स्वयम लजाते हैं
ओ इंसान भले इंसान
(भोला)
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निवेदन : व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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सोमवार, 19 सितंबर 2011

नाम महिमा

प्रभु का नाम सकल दुःख टारे
संकटहर ,त्रयताप उबारे

(भोला)

( केवल प्रभु के नाम का स्मरण ही हमारे सभी दुखों को टाल सकता है और
हमारे संकट का हरण कर हमे तीनों तापों से उबार सकता है )
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परमप्रिय स्नेही पाठकगण , हम कुछ दिनों से "तीन तापों" के विषय में चर्चा कर रहे हैं , और इन्हीं कुछ दिनों में हमारे "प्यारे प्रभु" ने ,एक एक कर के , इन तीनों तापों के नमूनों से हमारा सामना करवा दिया !

संसार में अन्यत्र क्या क्या हो रहा है कहाँ तक गिनाएं ! अपने पड़ोस के मुल्कों को ही देखें - पाकिस्तान में फिदायनी हमलावर कितना नरसंहार कर रहे हैं और अफ़गानिस्तान में कितने तालिबानी आक्रमण और बदले की भावना से कितने जवाबी ड्रोन हमले हो रहे हैं ! जान माल का बेहिसाब नुक्सांन हो रहा है चारों तरफ ! कौन है इसका उत्तरदायी ? मानव और कौन !

हमारी भारत भूमि पर भी आतंकवादी हमले हो रहे हैं ! अभी सात सितम्बर को दिल्ली हाई कोर्ट की बमबारी में कितने ही बेकसूर दम तोड़ चुके हैं और कितने आई सी यू में बुरी तरह घायल पड़े तड़प रहे हैं ! कुछ दिनों बाद आगरा के एक होस्पिटल में भी बम फटा ! कोई तत्काल हताहत नहीं हुआ लेकिन सोचने की बात है होस्पिटल में बम् बारी क्यों ? इन जघन्य कर्मों को करने वाले भी तो हम मानव ही हैं !

अभी दक्षिण भारत में एक भयंकर रेल हादसा हुआ ! कितने रेल यात्री हताहत हुए , कितनी सम्पत्ति का विनाश हुआ ! दोषी चाहे स्पीड लिमिट से अधिक रफ्तार से गाडी भगाने वाला इंजन का चालक हो या सिग्नल बनाने वाला पॉइंट मेंन हो , या कोई बड़ा अधिकारी हो, वह होगा तो एक मानव ही ! आधिदैहिक ताप से जलन का एक अन्य उदाहरण !

आधि दैविक ताप भी कहाँ शांत रहने वाली है ! वो भी ,सुनामी , हरीकेन ,अति वृष्टि,सूखा और भूचालों द्वारा अपनी विराट शक्ति का प्रदर्शन यदा कदा करती रहती है ! अभी पिछले शनिवार को ही भारतीय धरती को भयंकरता से कम्पायमान कर दिया एक भयंकर भूकम्प ने ! कितनी हानि जान मॉल की हुई उसका आंकलन करने के प्रयत्न जारी हैं !

वास्तव में , भूकम्प आते तो आधि दैविक कारणों से हैं लेकिन उनके आने से जो क्षति होती है वह मानवीय कारणों से होती है ! जान माल के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं देश के सरकारी अधिकारी जो भवनो के नक्शे , नियमों को बलाए ताख रख कर पास करते हैं , विकास के लिए उपलब्ध धनराशि से अपनी कोठी को फर्निश करते हैं , एयर कन्डीशनर लगवाते हैं , होस्पिटल के ब्लड बेंक के डीप फ्रीज, सी एम् ओ साहेब के घर में इस्तेमाल होते हैं ! सिविल ठेकेदार और हम नागरिक भी कोई कम नहीं हैं !हम जितना सक्रिय योगदान देते हैं इन सब कुकृत्यों में इन भ्रष्ट अधिकारीयों का, हमसे अच्छा कौन जानता है ! ताली बजाने में दूसरा हाथ तो हमारा ही है ! है न भैया ?

आप मानवता पर पड़ने वाले इन आकस्मिक कष्टों का कारण जानना चाहते हैं ! आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि "वह" परम कृपालु , दीनानाथ , करुनासागर , दीनदयालु कहलाने वाला 'प्रभु" हमे ये हृदयविदारक नज़ारे क्यों दिखा रहा है ? इन हादसों के जरिये "वह" हमे क्या संदेश देना चाहता है ? प्रियजन , ये भयावह दृश्य दिखा कर "वह" हमे सावधान कर रहे हैं कि कमसेकम अब तो हम सुधर जाएँ ! कैसे सुधरें ?

मेरे प्यारे प्यारे पाठकों मैं तो केवल अपने सुधार की कहानी ही जानता हूँ ! कैसे इस अति साधारण भोले भाले "बलियाटिक" बालक का सुधार हुआ आप जानना चाहोगे तो सुनों (मैंने किसी दुर्भावना से स्वयम को "टिक" नहीं कहा मैं तो गर्व से कहता हूँ कि इस जीवन में मैं और चाहे जहां भी रहा हूँ , हूँ मैं शत प्रतिशत बलिया का ही )

हाँ तो मैं बता रहा था कि हम कैसे सुधरे ! प्रियजन हमारा सुधार गुरुजनों के आदेशानुसार आस्तिकता का मार्ग अपनाने से हुआ ! सद्गुरु ने एक सूत्र बताया था :

वृद्धी आस्तिक भाव की शुभमंगल संचार
अभ्युदय सदधर्म का राम नाम विस्तार

अमृतवाणी के पाठ से गुरुजन ने हमारे जीवन में "राम नाम" के प्रति एक अटूट श्रद्धा भर दी ! 'नाम" ने हमारे जीवन में सात्विकता ,अनुशासन और प्रेम का संचार किया ! फिर क्या था आनंद ही आनंद सर्वत्र !
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चलिए नाम महिमा पर मुकेशजी का एक भजन जो
श्री रविन्द्र जैन द्वारा रचित व स्वर बद्ध है ,
मैं स्वयम गा कर आपको सुना दूँ !

प्रभु का नाम जपो मन मेरे , दूर करे वही संकट तेरे



जीवन रैन बसेरा है क्या तेरा क्या मेरा है
क्यों इसका अफ़सोस करे रे , दूर करे वही संकट तेरे
प्रभु का नाम जपो मन मेरे
पिंजरा जब खुल जायेगा ,पंछी कब रुक पायेगा
क्यों नैनों से नीर झरे रे , दूर करे वही संकट तेरे
प्रभु का नाम जपो मन मेरे
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग
विडीओग्राफी : (पौत्र) गोविन्द (१३ वर्षीय)
कम्प्यूटरीकरण : श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

" नाम महिमा "


कलियुग केवल नाम अधारा


अपनी इस धरती पर ही हजारों वर्ष पूर्व प्रगटे युग-दृष्टा महापुरुषों ने तभी यह उद्घोषित कर दिया था कि जहां सतयुग त्रेता एवं द्वापर युग के जीवों को भगवत प्राप्ति हेतु तपश्चर्या, यज्ञ आदि अति कठिन चेष्टाएं करनी पडेंगी , वहाँ कलियुग के प्राणियों को वही मुक्ति केवल "नाम" जप सिमरन ,भजन कीर्तन से प्राप्त हो जायेगी ! पौरानिक ग्रंथों में इस सत्य का उल्लेख है!
आज के युग में , गोस्वामी तुलसीदास ने यही बात लोक भाषा में हमारे हितार्थ इस प्रकार कही है :

कलियुग केवल नाम अधारा ,सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा ,
चहु जुग चहु श्रुति नाम प्रभाऊ ,कलि बिसेस नहीं आन उपाऊ !!

एहि कलिकाल न साधन दूजा , जोग जज्ञ जप तप व्रत पूजा ,
रामहि सुमिरिय गाइह रामहि संतत सुनिय राम गुण ग्रामहि !!

महामंत्र जोई जपत महेसू , कासी मुकुति हेतु उपदेसू
महिमा जासु जान गन राऊ , प्रथम पूजियत नाम प्रभाऊ !!

जान आदि कबि नाम प्रतापू , भयऊ सुद्ध करी उलटा जापू ,
सहस नाम सम सुनि सिव बानी ,जपि जेई पिय संग भवानी !!

हरषे हेतु हेरि हर ही को , किय भूषण तिय भूषण ती को
नाम प्रभाऊ जान सिव नीको , कालकूट फलू दीन्ह अमी को !!

तुलसी ने उस पौराणिक कथन को दुहराते हुए कहा कि कलियुग में केवल नाम स्मरण से ही मानव का कल्याण हो जायेगा ! त्रिपुरारी महेश ने इसी महामंत्र का जाप किया ! आदि कवि बाल्मीकि तो उलटे नाम का जाप कर के ही सब पापों से मुक्त हो गए ! शिव जी के मुख से नामोच्चारण सुन कर भवानी ने भी अति श्रद्धा से नाम जाप किया और अपने रूठे पति को हर्षित कर दिया ! नाम का प्रभाव जान कर ही शिवजी ने कालकूट हलाहल को अति निश्चिन्तता से अपने कंठ में स्थान दिया !

अंत में निम्नांकित पंक्तियों में तो तुलसी ने यहाँ तक कह डाला कि 'नाम' की बडाई स्वयम राम भी नहीं गा सकते ! अच्छे भाव (प्रेम) से , बुरे भाव (वैर) से, क्रोध से या आलस से किसी तरह से भी 'नाम' जपने से दसों दिशाओं में कल्याण ही कल्याण होता है !

कहों कहा लगि नाम बडाई , राम न सकहि नाम गुन गाई
भायँ कुभायँ अलख आलस हूँ , नाम जपत मंगल दिस दसहूँ

अब आप ही कहो मेरे प्यारे पाठकों , जब स्वयम "राम" असमर्थ हैं , "नाम" के गुण गाने में ,तो मैं एक अति साधारण पूर्णतः अज्ञानी मानव कैसे साहस करूं "नाम महिमा" के उस अथाह सागर में डूबकी लगा कर "नाम" के गुणों के अनमोल मोती खोज निकालने की ! मैं तो केवल गुरुजनों से सुने वाक्यों को दुहरा सकता हूँ और अपने जीवन के ८२ वर्षों के अनुभवों को आपसे शेअर कर सकता हूँ !

तो लीजिए सबसे पहले , अभी कल ही ,एक विद्वान ब्लोग्गर बंधु ,डॉक्टर अनवर जमाल साहब से मिले अति सार्थक सन्देश को ज्यों का त्यों आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ ! डॉक्टर साहेब की बतायी सभी बातें , मुझे अपने अनुभवों के आधार पर भी बिलकुल ठीक लग रही हैं ,केवल उसमे बताई "तीन" महीने वाली बात मेरी समझ में नही आयी क्योंकि उस विषय का मेरा अनुभव शून्य है ! मेरे अनुभव में अपने प्यारे प्रभू की कृपा प्राप्ति के लिये "नाम जाप" जैसी किसी साधना के वास्ते कोई "समय सीमा" जैसे तीन महीने अथवा उससे कम या ज्यादा , नही निश्चित की जा सकती ! हम सब साधारण साधक कैसे ,स्वामी राम तीर्थ जी , हमारे गुरुदेव स्वामी सत्यानन्द जी महराज जी अथवा वर्तमान काल के जगतगुरु कृपालु जी महराज के समान किसी समय सीमा में "उनकी" कृपा प्राप्त कर सकते हैं ? (जब तक हम पर हमारे गुरुजनों की विशेष कृपा दृष्टि न हो )

चलिए डॉक्टर जमाल के बहुमूल्य वचन पढ़ लें :
नाम जाप एक अति प्राचीन पद्धति है. इसके कारगर होने में कोई शक नहीं है।कुछ लोग वाणी से उच्चारित करते हैं और कुछ लोगमन से जाप करते हैं !.किसी भी तरह से जाप किया जाए लेकिन जाप में निरंतरता रहने से वह जाप अखंड भाव से मनुष्य के अंतर्मन में जारी हो जाता है।तीन माह के बाद आदमी चाहे सोता रहे या रोता रहे या गाता रहे कुछ भी वह जाप उसके अंदर चलता ही रहता है और जाप करने वाला उसे सुनता है। दिल की आवाज़ को भौतिक जगत की अन्य ध्वनियों की तरह सुना जाना संभव है.जिसे शक हो ख़ुद करके या हमारे पास आकर देख ले, सुन ले.इस जाप से मन को शांति मिलती है लेकिन यह जाप तब तक ईश्वर की प्राप्ति का साधन नहीं बन पाता जब तक कि उसके आदेश निर्देश का पालन न किया जाए.!मन मानी के साथ नाम जाप से सिद्धि भी मिल सकती है और शक्ति भी लेकिन प्रभु का वह अनुग्रह नहीं मिल सकता जिसके लिए मनुष्य की सृष्टि की गई और उसे इस जगत में लाया गया। उसके आदेश से काटने के बाद नाम जाप मात्र एक मनोरंजन भर है।


पाठकगण , अपने इस बुज़ुर्ग शुभ चिंतक की बात मान कर , आज अभी ,अपने "प्यारे इष्ट" का नाम सुमिरन कर लीजिए ! कितनी बार अथवा कितनी देर कोई महत्व नहीं रखता !एक पल दो पल ही काफी होगे यदि पूरी श्रद्धा भक्ति से नाम लिया जाय !
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निवेदक : वही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : डॉक्टर श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव
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गुरुवार, 15 सितंबर 2011

संगीता स्वरूप "गीत" की गजल - "भरमाये हैं"

"भरमाये हैं"
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सुश्री संगीता स्वरूप "गीत" जी के ब्लॉग में उनकी उपरोक्त गजल पढ़ी !
पहला शेर पढते ही उनके शब्दों में निहित आज के भारत की
"गंदी राजनीति"
की वास्तविकता उजागर हो गयी !
("गंदे" के लिए , इससे गंदा शब्द मेरे मुंह से निकलेगा ही नहीं )
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मध्य रात्रि थी , बिस्तर छोड़ कर मैं तुरंत अपने केसियो सिंथेसाइजर पर बैठ गया ! दैविक प्रेरणा से , संगीता जी की ये गजल थोड़े परिवर्तित शब्दों के साथ, मेरे कंठ से प्रस्फुटित होने लगी ! गजल को स्वर बद्ध करके "गेय" बनाने के लिए शब्दों में हेर फेर करने की देवी- प्रेरणा हुई ,पर मैं इसका अधिकारी नहीं था , अस्तु 'गीत जी"से अनुमति मांगी और उन्होंने अति उदारता से मुझे अनुमति दे भी दी ! उनका आभार व्यक्त करते हुए उनकी वही गजल आप सब की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ !

(प्रियजन , मैं भारत से हजारों मील दूर हूँ
उतनी बारीकी से वहाँ की स्थिति का आंकलन नहीं कर सकता ,
आप वहीं हैं और उस वीभत्स परिस्थिति को धीरज से झेल रहे हैं !
आपके धैर्य को नमन करता हूँ )
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"गीत" जी की गजल
"भरमाये है "
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बावफा हैं मगर हम बेवफा कहलाए हैं
आज अपनों नें ही नश्तर हमे चुभाये हैं

चाहते थे न करे जिनपे यकी हम हरगिज़
आज दानिस्दा उन्ही के फरेब खाए हैं

है सियासत बुरी, क्यूँकर करें हम उनपे यकीं
झूठे वादों से जो जनता का मन लुभाए हैं

कैसे विश्वास करे "गीत" ऐसे लोगों का
भ्रमित स्वयम हैं, औरों को भी भरमाये हैं

बावफा हैं मगर हम बेवफा कहलाए हैं
आज अपनों नें ही नश्तर हमे चुभाये हैं

(मूल शब्द श्रजक - संगीता स्वरूप "गीत ")
संशोधक , स्वर शिल्पी एवं गायक : "भोला"
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यह गजल वीडियो रेकोर्ड कर के आपकी सेवा में भेज रहा हूँ !
उम्र और रोगों के कारण मेरी भर्राई आवाज़ के लिए क्षमा करियेगा !

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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : धर्मपत्नी कृष्णा जी एवं पौत्र गोविन्द जी
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बुधवार, 14 सितंबर 2011

नाम महिमा


त्रि ताप से मुक्ति का सहज साधन
"नाम जाप"

सद्गुरु स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने हम पर अतिशय कृपा कर के ,१९६० में ही , हमे राम नाम की महिमा बता कर ,एक मात्र नाम सिमरन द्वारा ही अपने आप को त्रि तापों से मुक्त करने का सहज मार्ग बताया था ! दीक्षा के उस शुभ दिन से आज तक महाराज जी से मिला 'नाम' का वह अभेद कवच सभी देहिक , दैविक ,भौतिक तापों में मेरी रक्षा करता रहा ! ऐसा नहीं है कि मेरे जीवन में कष्ट आये ही नहीं अथवा जटिल समस्याओं ने मुझे नहीं घेरा, भारत में साधारण नागरिकों को जो उलझनें सतत सताती हैं , उनसे बाहुबली नेताओं के आलावा कोई बच ही नहीं सकता ! सो उन सब समस्याओं ने मुझे भी घेरा लेकिन "नाम" का "ओवर आल" पहने मैं बेदाग़ ,बाइज्जत काजल की कोठरियों से निकलता गया ! मेरा बल भी बांका नहीं हुआ ! मेरी आत्म कथा में ऐसी अनेकों घटनाओं का विवरण है ! बहुत कुछ लिख चूका हूँ , और भी लिखता रहूँगा जैसे जैसे "स्वामी" लिखवायेंगे !

अभी तो सद्गुरु महाराज की "अमृतवाणी" से चुने हुए नाम महिमा के कुछ पद पेश कर रहा हूँ , एक बार मन लगाकर इसका पाठ करलें -- भाव समझ लें , जीवन में उतार लें , कल्याण सुनिश्चित है आपका !

(आवश्यक नहीं कि सब के गुरुजन ने
"राम नाम" से ही उन्हें दीक्षित किया हो , अस्तु सब जन अपने अपने
गुरु से प्राप्त मंत्र का ही ध्यान जाप व सिमरन करें )
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नाम महिमा

राम राम जप हे मना अमृत वाणी मान
राम नाम में राम को सदा विराजित जान

राम नाम मुद् मंगलकारी विघ्न हरे सब पातक हारी

राम नाम शुभ शकुन महान स्वस्ति शांत शिवकर कल्याण
राम नाम जो जन मन लावे , उस में शुभ सब ही बस जावे
जहां हो राम नाम धुन नाद , भगे वहाँ से विषम विशाद
राम राम जपिये कर भाव ,सुविधा सुविधि बने बनाव

राम नाम सिमरो सदा अतिशय मंगल मूल
विषम विक्ट संकट हरन ,कारक सब अनुकूल

जपना राम राम है सुकृत , राम नाम है नाशक दुष्कृत
सिमरे राम राम ही जो जन ,उसका होवे शुचितर तनमन
जिसमे राम नाम शुभ जागे , उसके पाप ताप सब भागे
जिसमें बस जाय राम सुनाम , होवे वह जन पूर्ण काम
राम सिमरन होय सहाई , राम सिमरन है सुखदाई
राम सिमरन सबसे ऊंचा ,राम शक्ति सुख ज्ञान समूचा

राम राम ही सिमर मन , राम राम श्री राम
राम राम श्री राम भज , राम राम हरि - नाम
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निवेदक : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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सोमवार, 12 सितंबर 2011

राम बिनु तन को ताप न जाई

मेरे राम , प्यारे राम
तीन ताप हारी तव नाम
श्री राम जय राम जय जय राम
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अभी हाल में दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नम्बर ५ के रिसेप्शन के निकट हुआ एक भयंकर बम् विस्फोट ! वहाँ के हृदय विदारक दृश्य अमेरिकन टेलीविजन की खबरों में तत्काल ही दिखाई दिए ! अभी हम दिल्ली के दृश्यों को भुला भी न पाये थे कि यहाँ अमेरिका में भी अल्कायदा ने ९/११ के दसवीं वर्षगांठ पर आयोजित मेमोरिअल सभा में शक्तिशाली बम् विस्फोट कर के ,बिनलादेन की मृत्यु का बदला लेने की धमकी दे डाली ! इमरजेंसी जैसी स्थिति यहाँ भी हो गई ! दो दिन पहले दिल्ली के पीड़ित परिवारों का रुदन हमने देखा ,और कल ग्राउंड जीरो की मेमोरिअल सभा में ११,सितम्बर २००१ के आतंकवादी हवाई हमलो में मारे गए ३००० से भी अधिक निर्दोष अमेरिकन नागरिकों के सगे सम्बन्धियों का फफक फफक कर रोना भी ! मेरा मन दुःख से भर गया !

इसके पूर्व भी विश्व में जहां तहां आये विध्वंसकारी - सुनामी , भूकम्प, अतिवृष्टि के कारण बाढ , तथा आयरीन जैसे भयानक समुद्री तूफान के कारण हुई तबाही के दृश्य भी हमने देखे थे ! यहाँ ,हम तो बाल बाल बच गए थे क्योंकि महारानी आयरीन हमारे नगर की प्राचीर छूती हुई निकल गयीं ! लेकिन निकट के ही अन्य स्थानों में हजारों घरबार उजड़ गए ,लाखों लोग बेघर हो गए ! सैकड़ों बच्चे अनाथ हो गए ! मैं सोच में पड़ गया :
आखिर मानवता पर दुःख के इतने बड़े बड़े पहाड़ एकाएक क्यों फट पड़ते हैं ?

एक उत्तर मिला; मानव जीवन की ये आपदाएं -विपदाएं और उनसे नि:सृत सुख -दुःख केवल मानवीय कार्य - व्यापारों से ही उत्पन्न नहीं होते ;कभी कभी ये देवताओं के प्रकोप के फलस्वरूप , भयंकर प्राकृतिक आपदाओं तथा संक्रामक रोगों के रूप में आते हैं और इनके ; कारण मानव को भयंकर पीडाएं और दुःख भोगने पड़ते है ! जीव धारिओं के लिए ये सभी वेदनाएँ जन्मसिद्ध और अनुभवगम्य हैं !

हमारे पौराणिक ग्रंथों में सुख दुःख के तीन भेद बताए हैं ; इन्हें "त्रयताप" कहा गया है !

(१). आधिदैहिक , (२). आधिभौतिक और (३).आधिदैविक( आध्यात्मिक )

(१) आधिदैहिक ताप -विषय -वासनाओं से निसृत शारीरिक सुख दुःख : है . (२) आधिदैविक ताप देवताओं की कृपा या कोप से प्राप्त सुख दुःख है जो कभी दुखदायी और कभी आनंददायी कल्याणकारी और हितकारी प्रतीत होते हैं (३) आधिभौतिक ताप सृष्टि के बाहरी साधनों के संयोग से , मानव द्वारा निर्मित सुविधाओं से उत्पन्न होने वाले दुःख -सुख है !
पर सच पूछो तो आज समस्त संसार की ही दशा दयनीय है .! ब्रह्मानंदजी ने अपनी एक रचना में आज के मानव की दुखद मनःस्थिति ,इन शब्दों में अभिव्यक्त की है :

सताया राग द्वेषों का, तपाया तीन तापों का ,
दुखाया जन्म म्रत्यु का ,हुआ है हाल तंग मेरा!!

दुखों को मेटने वाला तुम्हारा नाम सुन कर मैं
सरन में आ गिरा अब तो भरोसा नाथ है तेरा !!
आज मानवता एक के बाद एक विविध प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं को झेल रही है ! कहीं सुनामी और भूकम्प ,कहीं "आयरीन" (विनाशकारी समुद्री तूफ़ान) तथा कहीं पर भयंकर महामारिया और संक्रामक रोग हमे आये दिन त्रस्त करते रहते है ! दूसरी ओर अधिभौतिक प्रगति के फलस्वरूप मिले न्यूक्लिअर विध्वंसक अस्त्र शस्त्र , तथा मानव की सेवा के लिए आविष्कृत वायुयानों जैसे उपकरणों का दुरुपयोग कर के मानव ही दानव बना मानवता को मिटाने का संकल्प किये बैठा है ! आज परिस्थिति यह है कि ----

काम रूप जानहि सब माया ,सपनेहु जिनके धरम न दाया !
करहि उपद्रव असुर निकाया , नाना रूप धरहि कर माया !!

तामसी दुष्प्रवृत्तियों से अपनी आधिभौतिक शक्ति और तकनीकी ज्ञान तथा आधुनिक उपकरणों के दुरूपयोग से मानवता को नष्ट भ्रष्ट करने की आसुरी प्रवृत्ति वाले दानव कब तलक हमें सताते रहेंगे ? अब तो यही लगता है कि उनका अंत करने के लिए "श्री राम" जैसी परम सात्विक शक्तियों को अवतरित होना होगा और समस्त विश्व में राम राज लाना ही होगा क्योंकि
देहिक दैविक भौतिक तापा !
रामराज नहीं काहुहि व्यापा !!

इस विषय में संत कबीर ने तो यहाँ तक कह डाला कि
राम बिनु तन को ताप न जाई
चलिये आप को सुना दूँ यह भजन स्वयम गा कर



राम बिनु तन को ताप न जाई
जल में अगनि रही अधिकाई
राम बिनु तन को ताप न जाई
तुम जल निधि मैं जल कर मीना
जल में रहहि जलहि बिनु जीना
राम बिनु तन को ताप न जाई

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा
दर्शन देहु भाग बड मोरा
राम बिनु तन को ताप न जाई

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला
कहे कबीर राम रमूं अकेला
राम बिनु तन को ताप न जाई
जल में अगनि रही अधिकाई

राम बिनु तन को ताप न जाई
(कबीर)
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती डॉक्टर कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

गयाना की "पूजा" के "गिरिधर गोपाल" - "मुकेशजी"
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(गतांक से आगे)

आपको बता चुका हूँ ,मुकेशजी ने १९७५ में बम्बई के एक बिजनेस हाउस के सहभोज में मुझे बताया कि "श्री राम गीत गुंजन" में रामायण का गायन सुन कर ,कलकत्ते के हार्ट अटैक में उनकी जीवन रक्षा हुई और आत्मिक शांति प्राप्त हुई थी ! देखा आपने कितनी बड़ी बात उस बड़े दिल वाले मुकेश दादा ने हमारे तब तक बिलकुल ही अज्ञात संगीतज्ञ परिवार के सदस्यों के प्रोत्साहन के लिए कह दी थी ! वास्तव में देखा जाए तो उनका यह कथन प्रभु श्रीरामजी और रामायण के प्रति उनकी अटूट आस्था , श्रद्धा और निष्ठां का प्रतीक था !

इतना ही नहीं, उन्होंने अपने जीवन रक्षा का पूरा श्रेय दिया था मेरी एक शब्द-स्वर रचना को जिसमे मैंने रावण के भाई विभीषण की मनःस्थिति का चित्रण किया था ! यह गीत ,मेरे निदेशन में उन दिनो के नवोदित गायक "पंकज उधास" ने गाया था ( वही पंकजजी जो बाद में अपने "घुंघरू टूट गए" और 'चिट्ठी आई है' से विश्व विख्यात हो गये ) ! मुकेश जी ने 'राम गीत गुंजन" में खासकर "पंकज" के इस गीत को बहुत सराहा था ! खुले दिल से पंकज की तारीफ़ करके उन्होंने अपने हृदय की विशालता से हमे परिचित कराया था !

चलिए उस रचनाविशेष के विषय में आपको कुछ बताऊ :

तुलसीदास ने मानस में कहा है कि , रीछ राज "जामवंत" के प्रेरणात्मक वचन सुनकर हनुमान जी ,एक छलांग में ही शत योजन सागर पार कर लंका में प्रवेश कर गए :

मसक समान रूप कपि धरी ! लंकहि चलेउ सुमिर नरहरी !!
अति लघु रूप धरेऊ हनुमाना ! पैठा नगर सुमिर भगवाना !!

निरंतर अपने इष्टदेव प्रभु श्रीराम का सिमरन करते हुए ,हनुमान जी , सीता माता की खोज में , रावण की लंका के प्रत्येक सुवर्ण प्रासाद में पैठ रहे थे

तभी हनुमान जी को

भवन एक पुनि दीख सुहावा ! हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा !!

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाय !
नव तुलसिका वृन्द तहँ देखि हरष कपिराय !!

यह महल लंकापति रावण के छोटे भाई विभीषण का था , जो प्रातः की अमृत बेला मे जागकर अपने इष्ट देव "श्री राम" का सुमिरन कर रहे थे :

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा , हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा !

मन ही मन हनुमानजी ने विचार किया कि इस भौतिक सुख -सुविधाओं से पूर्ण तामसी जीवन जीने वाली नगरी में सात्विक -तरंगों से पूरित और तुलसी -वृन्द से सुसज्जित इस भव्य मंदिर में कौन राम भक्त संत रहता है ? इधर बड़े भाई रावण द्वारा सीता जी के अपहरण के समाचार से दुखी विभीषण की उस समय की मनो भावना को संजोये ,मेरी वह रचना जिसे पंकज उधास तथा अन्य कलाकारों ने मिल कर गाया था , हाँ वही जिसका उल्लेख मुकेशजी ने किया था ,आपको सुना देता हूँ :



राम राम राम राम राम राम बोलो
राम सुमिर पल भर में भव के बंध खोलो
राम राम राम राम राम राम बोलो

भाई नाहि बन्धु नाहीं , अपनों कोउ मीत नाहि
लंक कीच बीच पड्यो राम तेरो चेरो

राम राम राम राम राम राम बोलो
राम सुमिर पल भर में भव के बंध खोलो
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शब्द-स्वर शिल्पी : "भोला"
गायक : पंकज उधास ,मधु चन्द्र ,अनुराग तथा अन्य
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तब १९७६ में मुकेशजी के निधन का समाचार मिलने के बाद न्यू एम्स्टर्डम में कोमरेड जैक्सन की शोकाकुल बड़ी बेटी "पूजा" की मुकेशजी के प्रति उस अद्भुत श्रद्धायुक्त प्रीति के विषय में जैक्सन से ही जान कर मैं आश्चर्य चकित था ! पूजा का यह व्रत कि ,वह मुकेश के अतिरिक्त किसी और से विवाह नहीं करेगी ,चाहे आजीवन अविवाहित रहना पड़े ,मुझे बड़ा अटपटा लगा ! उसने वह व्रत ,कम से कम , १९७८ तक , जब तक मैं उस देश में रहा नहीं तोडा था ! अवस्था में वह तब तक लगभग ४ ५ वर्ष की हो गयी थी ! १९७८ के बाद, भविष्य में क्या हुआ ,नहीं कह सकता , क्यों कि तब से अब तक मैं दुबारा गयाना नहीं जा पाया हूँ !

भारत में मैंने अनेक लोगों को मुकेशजी की गायकी की तारीफ करते सुना है लेकिन शायद ही किसी को गयाना की "पूजा" के समान मुकेशजी पर इतना दीवाना होते सुना हो !

भारतीय इतिहास में केवल एक ऐसी देवी का उल्लेख है , जिसने अपने बचपन में ही "पूजा" जैसा व्रत लिया था , हाँ ठीक पहचाना आपने , वही देवी जिसने गाया था :

मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
(मीरा बाई)
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निवेदक : व्ही . एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव





मंगलवार, 6 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

मुकेश जी
आज जब आप 'खुदा के गाँव' पहुँच गए
आत्मा परमात्मा का मिलन हो गया
प्यार की नदी परमानन्द के सागर से मिल गयी
नीर क्षीर में कोई भेद न रहा
मुझे आप में "मेरे प्यारे प्रभु" और "प्रभुजी" में आप नज़र आ रहे हैं
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प्रियजन ,
मुकेशजी से केवल मेरी जान पहचान ही नहीं थी ,सच पूछिए तो फिल्मी गायकी के क्षेत्र में वह मेरे आदर्श,मेरे मेंटर ही नहीं वरन मेरे "इष्ट" के समान मेरी परम श्रद्धा के पात्र भी थे ! उनसे दो भेंट में ही मैं जान गया कि जीवनकाल में उनके प्रति मेरा आकर्षण दैवयोग से 'मेरे इष्ट' की कृपा से ही हुआ है ! उनके जाने पर तो यह मत और दृढ हो गया !

२००३ से आज तक ,यहाँ अमेरिका में मुझे क्रिटिकल हालत में तीन बार होस्पिटल में एडमिट होना पड़ा है ! एक बार हॉस्पिटल के बेड पर लेटे लेटे मेरे " डेविल्स वर्कशॉप " में अनायास ही मुकेश जी की याद आयी जिसमे जीवन मरण की कुछ वीभ्स्त कल्पनाएँ हुईं जिनका उल्लेख कर अपने स्वजनों को दुखी नहीं करना चाहता ! आज आपको उस समय मेरे मन में उठे एक दूसरे विचार से अवगत करवा रहा हूँ ! मानव स्वभाव वश ,किंचित थोडा अहंकारी बन कर मैं उस दिन अपनी तुलना मुकेशजी से करने लगा था !

मुकेशजी और मैं दोनों ही जुलाई के महीने में इस धरती पर आये ,हम दोनों ही "केंसेरियन" हैं और इत्तेफाक से बाह्यस्वरूप -"लुक्स" में मैं उनसे जितना मिलता हूँ ,सो तो आपने देखा ही है ! इसके अतिरिक्त , उनके स्टेंडर्ड का नहीं पर मैं भी थोडा बहुत गा बजा लेता हूँ तभी तो शुरू से ही लोग मुझे 'मुकेश' जी का नकलची "भोला" कहते हैं !

और एक सबसे बडी समानता जो उनमे और मुझमे है वह है हम दोनों का प्रभु की कृपा पर अनन्य भरोसा और ईश्वरीय कृपा पर हमारी सम्पूर्ण निर्भरता ! हम दोनों का यह दृढ़तम विश्वास है कि हमारे जीवन में अब तक जो हुआ है,अभी जो होरहा है और आगे जो भी होने को है ,वह सब प्यारे प्रभु के इच्छानुसार ही हुआ है और होता रहेगा ! और उसमें ही हम सब का वास्तविक कल्याण निहित है !

उनका यह दृढ़ मत था ,और मेरा भी कि , सांसारिक कोई व्यक्ति अथवा कोई परिस्थिति हमारे दुःख सुख का कारण नहीं होती ! हम अपने निज कर्मों के फलस्वरूप ही जीवन में प्रसन्न अथवा दुखी होते हैं ! उनका कहना था कि केवल प्रभु के नाम का जाप ही हमे दुखों से छुटकारा दिला सकता है ! आपने शायद उनका ये भजन सुना होगा -

प्रभु का नाम जपो मन मेरे , दूर करे वो ही संकट तेरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे , हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
प्रभु का नाम जपो मन मेरे

मुकेशजी द्वारा गायी श्री रवीन्द्र जैन जी की यह शब्द एवं स्वर रचना मुझे मेरे गुरुमंत्र के समान प्रिय लगती है ! इस भजन को बार बार सुन कर और स्वयम गा गा कर मैंने अपने जीवन में आये बड़े से बड़े दुःख को भी भयंकर दिवा स्वप्न समझ कर झुठला दिया ! यदि आपने यह भजन नहीं सुना है , तो मैं ही किसी दिन सुना दूंगा ,थोडा स्वस्थ हो जाऊं तब !

स्नेही पाठकगण , केवल मुकेशजी में ही नहीं ,आप सब में भी मुझे अपने प्रियतम प्रभु के दर्शन होते हैं ! मेरा दिल केवल उनसे ही नहीं आप सब से भी उतना ही लगा है जितना अपने प्यारे इष्ट से ! इन्ही भावनाओं से भरपूर अपना एक भजन सुनाने जा रहा हूँ जिसके शब्द एक पारंपरिक स्थायी पर ,एक मध्य रात्रि , जब मैं यहाँ अमेरिका में अति रुग्ण अवस्था में पड़ा था ,"प्रभु" की प्रेरणा से, अनायास ही मेरे मुख से प्रस्फुटित हुए :

तुझसे हमने दिल है लगाया जो कुछ है सो तू ही है
हर दिल में तू ही है समाया , जो कुछ है सो तू ही है



तुझसे हमने दिल है लगाया , जो कुछ है सो तू ही है
हर दिल में तू ही है समाया , जो कुछ है सो तू ही है

तू धरती है तू ही अम्बर , तू परबत है तू ही सागर
कठपुतले हम तू नटनागर , जड चेतन सब को ही नचाया
तुझसे हमने दिल है लगाया , जो कुछ है सो तू ही है

सांस सांस में आता जाता , हर धड़कन में याद दिलाता ,
तू ही सबका जीवन दाता , रोम रोम में तू हि समाया
तुझसे हमने दिल है लगाया , जो कुछ है सो तू ही है

बजा रहा है मधुर मुरलिया , मन वृन्दाबन में सांवरिया
सबको बना दिया बावरिया , स्वर में ईश्वर दरस कराया
तुझसे हमने दिल है लगाया , जो कुछ है सो तू ही है

गीतकार स्वरकार गायक :
आपका स्नेही
मुकेशजी का नकलची
"भोला"
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शेष अगले अंक में
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निवेदक : व्ही .एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : डॉक्टर श्रीमती कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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शनिवार, 3 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए
तोड़ गए बालम मेरा प्यार भरा दिल तोड़ गए
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(गतांक से आगे)

भारतीय मूल के ,गयाना के धनाढ्य व्यापारी - श्री जैक्सन (उस शाम के मेरे मेज़बान), मुझे अपनी भव्य कोठी का टूर दिला रहे थे ! बडे हॉल से निकलते ही उनका लेडीज़ लाउंज आगया, वही जहां जैक्सन मुझे कुछ समय पहले , अन्य अतिथिगण से मिलाने के लिए ले गये थे ! वही हाल जिसमे प्रवेश करते ही मुझे ऐसा लगा था जैसे मैं किसी देव स्थल में आगया हूँ ! लेकिन इस बार वह मुझे अंदर नहीं ले गए , मुझे दरवाजे पर ही छोड़ कर ,वह उस छोटे हॉल में अकेले ही प्रवेश कर गए और केवल उसमे झांक कर फटाफट बाहर आगये ! ऐसा क्यों ?
खुल जायेगा यह राज़ भी धीरे धीरे , थोड़ी सी प्रतीक्षा करे !

हॉल से निकल कर उन्होंने फिर मेरा हाथ पकड़ लिया ,और एक तरह से खींचते हुए मुझे एक अन्य प्रकोष्ट के बंद द्वार तक ले आये! धीरे से उन्होंने वह बंद द्वार खोला ! कमरे में घना अँधेरा था ! हम बाहर की चकाचौंध से उठ कर उस अँधेरे कमरे में आये थे ,हमे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था ! जैक्सन ने एक एक कर के कमरे के लाईट के सभी स्विच ओंन कर दिए !

कमरे में धीरे धीरे रोशनी की एक झीनी चादर पसर गयी जिसमे मुझे सबसे पहले नज़र आयी उसकी सजावट !अति गंभीर रंग के सिल्क के पर्दों से सुसज्जित था वह कमरा ! कोने में एक पलंग के साइज़ की चौकी, जिस पर बिछा था एक बहुरंगी चीनी रेशमी कालीन ! उस कालीन पर दो मसनदों (गोल तकियों) के सहारे टिका था मीरज (भारत) से आयातित एक अति सुंदर "सितार"! जैक्सन ने बताया कि वह सितार उनकी दिवंगता पत्नी भारत से लाई थीं , और यदा कदा उस पर रियाज़ किया करतीं थीं !

इस कमरे में ,दीवाल के सहारे लम्बी सी एक मेज़ पर करीने से रखे हुए थे औडीयो रेकोरर्डिंग और रेकोर्ड प्लेयिंग के फिलिप्स के लेटेस्ट ओरिजिनल , होलेंड से आयातित इक्यूपमेंट ! (मैं दूर से ही पहचान गया क्यूंकि गयाना में मेरे पास भी फिलिप्स का वही फोर ट्रेक रेकोर्डर था) उस कमरे में इसके अतिरिक्त था एक बड़ा सा H M V का रेडीयोग्राम और उसके निकट लंबे लंबे रैक्स में सैकड़ों लॉन्ग प्लेयिंग तथा २-३ मिनिट बजने वाले अनगिनत स्टेंडर्ड ग्रामाफोन रेकोर्ड ! (रेकोर्डों के उस हजूम के बीचोबीच खड़े ,मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं नयीदिल्ली में कनाटप्लेस स्थित "महराज लाल एण्ड संस " के रेकोर्ड बार में खड़ा हूँ !)

जैक्सन ने मुझे बताया कि वह कमरा उनकी दिवंगता पत्नी का म्यूजिक रूम था और अब वह उनकी बड़ी बेटी पूजा का कमरा है ! बड़ी होते हुए भी पूजा का विवाह अभी नहीं हुआ था ! कारण बता चका हूँ कि उन्होंने यह व्रत ले लिया था कि वह यदि शादी करेंगी तो भारत के ही किसी सुयोग्य वर से करेंगी अन्यथा करेंगी ही नहीं !

पति के लिए उसने जो मानक बना रखा था , वह था , बताऊँ ,चलो बता देता हूँ - मुकेश !

वह जानती थी कि मुकेश विवाहित हैं!"सरलबेन" से उन्होंने वर्षों पूर्व प्रेम विवाह रचाया था अस्तु मुकेशजी उसे इस जीवन में नहीं मिल सकते थे ! किसी तरह उसने अपने दिल को तो समझा लिया ,लेकिन किसी और से विवाह न करने का अपना व्रत वह तब ३८ वर्ष की अवस्था तक नहीं तोड़ पायी थी और अपना सारा समय इसी कमरे में मुकेशजी के गीत सुन सुनकर और उनके चित्र देखने में ही उनसे मिलन का आनद लेती हुई व्यतीत करती थी !

मेरी नज़र इस बीच कमरे की दीवालों पर लगी बोलीवुड की संगीत प्रधान फिल्मों के हीरो हीरोइंस के बीच मुकेशजी के अनेक चित्रों ,उनके ही बड़े बड़े रंगीन पोस्टर्स और लाइफ साइज़ कट आउट्स पर पड़ी ! मैं हक्का बक्का हो कर सोचने लगा कि मैं भारत की किसी फोटो आर्ट गैलरी में खड़ा हूँ जहां मुकेशजी के तस्वीरों की नुमाइश लगी है !

वही मुकेशजी जो अब हम सब को छोड़ कर परमानन्द के अथाह सागर में मिल चुके थे ! इस मंगल मिलन के बाद वह कहाँ गए "कोई जाने ना " ! याद आई शैलेन्द्र जी कि वह रचना जिसे मुकेशजी ने "तीसरी कसम " के लिए गाया था :

ताल मिले नदी के जल में ,नदी मिले सागर में ,
सागर मिले कौन से जल में " कोई जाने ना !

लेकिन ये गीत नहीं , आज मैं आपको मुकेशजी का एक दूसरा गाना सुनवाऊंगा ! अभी मुझे सामने की दीवाल पर "बंदिनी" फिल्म का वह पोस्टर नज़र आ रहा है जिसमे फिल्म की हीरोइन "नूतन" स्टीमर घाट में उदास बैठी है और नेपथ्य से माझी का दर्द भरा गीत सुनाई पड़ रहा है :
ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना
ये घाट जोहे बाट कहीं भूल न जाना


गायक : मुकेश , शब्दशिल्पी : शैलेन्द्र
संगीत :सचिन देव बर्मन
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शेष अगले अंक में
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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

मुकेशजी और उनका नकलची "मैं"

सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है


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अगस्त १९७6 की उस शाम
अमेरिका के डेट्रोयट (मिशीगन) में एक कंसर्ट में स्टेज पर आते आते
हमारा दिलेश- मुकेश , खुदा के पास चला गया
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सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है
न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

तुम्हारे महल चौबारे यहीं रह जायेंगे सारे
अकड किस बात की प्यारे ,ये सर फिर भी झुकाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

भला कीजे भला होगा बुरा कीजे बुरा होगा
बही लिख लिख के क्या होगा यहीं सब कुछ चुकाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है

बचपन खेल में खोया जवानी नींद भर सोया
बुढ़ापा देख कर रोया वही किस्सा पुराना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है
न हाथी है न घोडा है वहाँ पैदल ही जाना है
सजन रे झूठ मत बोलो ,खुदा के पास जाना है
(गीतकार : शैलेन्द्र , गायक : मुकेश )

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उस दिन मैं गयाना की राजधानी जोर्जटाउन से लगभग १०० किलोमीटर दूर न्यू एम्स्टरडम में अपने प्रोजेक्ट साईट पर आया था और हिंदुस्तानी संगीत में मेरी रूचि के मद्देनजर उस नगर के मेयर ने वहाँ के एक सम्रद्ध ,संगीत प्रेमी व्यापारी (कामरेड) जैक्सन की कोठी में मेरे लिए एक विशेष संगीतमय भोज आयोजित किया था !

स्थानीय कलाकार मुझे हिंदुस्तानी भजन और फिल्मी गीत सुनाने की पूरी तैयारी करके आये थे ! उन कलाकारों को मुझसे परिचित कराते समय मेयर महोदय ने उनमें से किसी को गयांना की 'लता', किसी को 'आशा' और किसी को 'गीता' नाम से पुकारा ! पुरुषों में भी कोई 'मन्नाडे' ,कोई 'मुकेश' और कोई 'मोहम्मद रफी' कह कर परिचित कराया गया !

हाँ , एक गायिका से परिचित कराते समय उन्होंने कहा " ये है "सीलिया" ,गयाना की दूसरी "लता मंगेशकर" ! हमारी पहली 'लता' तो भारत के 'हरिओम शरण' की पत्नी बन कर अब भारत में ही बस गयी है" ! (प्रियजन तब मैं कहाँ जानता था कि गयाना की उन पहली 'लता' - 'नंदिनीजी " और उनके पतिदेव 'हरीओम जी' से हमारी भेंट, ७ - ८ वर्ष बाद अपने भारत के घर में ही होने वाली है )

कार्यक्रम के बीच बातें करते हुए कामरेड जैक्सन ने मुझसे कहा , " हमारा पूरा परिवार जबर्दस्त संगीत प्रेमी है ! मेरी बीवी तो वर्षों पहले भारत में लखनऊ के मेरिस म्यूजिक कोलेज से सितार सीख कर आयीं थीं ! छोटी बेटी "पोर्ट ऑफ स्पेन" (त्रिनिदाद) के मशहूर संगीत प्रेमी "मोहम्मद" परिवार में ब्याही है ! लेकिन बड़ी बेटी "पूजा" अभी अविवाहित है !ऐसा लगता है जैसे वह संगीत के लिए ही जी रही है ! प्रातः से रात्रि तक वह संगीत में ही डूबी रहती है !जब भी उससे शादी की बात चलाता हूँ ,वह गयाना की पहली "लता"- (अब भारत की नंदिनी) की तरह अपना यह व्रत दुहरा लेती है कि यदि वह विवाह करेगी तो केवल किसी भारतीय संगीतग्य के साथ ही करेगी ! उसकी पसंद भी ऐसी है जो मैं इस जीवन में पूरी नहीं कर सकता" ! इतना कह कर वह चुप हो गए ! उनके नेत्र सजल हो गए ! जैसे वह मुझसे कह रहे हों कि मैं उनकी बड़ी बेटी के लिए कोई सुयोग्य भारतीय संगीत प्रेमी "वर" बताऊं !

इस बीच गाना थम गया ! स्टार्टर्स सर्व होने लगे ! ड्रिंक्स की ट्रेज़ मेहमानों के बीच घूमने लगीं और मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे अपनी कोठी का टूर दिलाने चल पड़े !

शेष अगले अंक में

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निवेदक : व्ही . एन . श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : कृष्णा "भोला" श्रीवास्तव
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