मंगलवार, 17 जनवरी 2012

कहाँ ढूढने जाएँ "उनको"

उन्हें ढूढू कहाँ जाकर मिलू क्यूँकर कहाँ उनसे 
जो मिल जाएँ तों कह दूँ अपनी सारी दास्ताँ उनसे 
"राद" 
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मोको कहाँ ढूंढे रे बंदे
[गतांक के आगे]
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हजारों वर्ष पूर्व द्वापर  में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अपने सखा अर्जुन को जो गूढ़ रहस्य बताया था वही रहस्य कलियुग में हम सबके लाभार्थ कबीरसाहेब तथा भक्ति काल के अन्य विचारकों ने आसान से आसान शब्दों में व्यक्त कर के हमारा मार्ग दर्शन करने का प्रयास किया !

परन्तु उससे इंसान की बेचैनी कम नहीं हूई !  इंसान ,रूढिवादी विधियों और पारंपरिक मान्यताओं की गांठ बाँधे आजीवन भ्रम भूलों के गलियारों में भटकता रहा ! बेचारा अपने "इष्ट"-  [प्रेमास्पद] की तलाश में , असंख्य चौखटों पर सिर पटकता रहा ,वह राह में पड़े सभी दरवाज़ो पर दस्तक देता रहा और न जाने क्या क्या उपाय करता रहा !

इतना उलझ गया जीव मत मतान्तरों के जटिल जाल में कि कम से कम मेरे  जैसे मूर्ख के  लिए अधेड़ अवस्था तक दृढ़ता से यह कह पाना कठिन हो गया कि पुरातन वैदिक विधि पालन करने वालो तथा समय समय पर बदलती परिस्थिति के कारण बदले विधि विधान को अपनाने वाले आध्यात्मिक यात्रियों में से कौन सा पथिक अपने "गंतव्य" तक [चाहे वह जो रहा हो - "परम धाम गमन" अथवा "हरि दर्शन" ]  पहुंचने में सफल हुआ !

प्रियजन तबतक , मैं यह नहीं समझ पाया था कि उन दोनों में  से कौन सा रास्ता मेरे लिए कारगर होगा ;  मैं निज आध्यात्मिक उत्त्थान के लिए इनमें से कौन सा मार्ग चुनू " सच तो यह है कि जीव अपने जीवन के अनुभवों से ही सीखता है ! मैं अपना अनुभव सुनाऊँ !

हमारे पूर्वज मूर्ति पूजक थे ! वे गंगास्नान , देवालयों में दर्शन, आरती वंदन  करते थे और समय समय पर ,कठिनाइयाँ झेल कर भी कष्टप्रद एवं दुर्गम "तीर्थ यात्राओं" पर जाते थे ! हमारे  एक परदादा ने तो ,"संकट के समय" न केवल "श्री संकटमोचन महाराज" के दर्शन पाए थे बल्कि उनके सुझावों को कार्यान्वित कर बड़े बड़े संकटों में अपने जीवन की रक्षा भी की ! [अन्यत्र पूरी कथा सविस्तार लिख चूका हूँ]

मैंने स्वयं अपने परिवार के अनेकानेक प्रामाणिक साक्षियों का निरीक्षण करके , अपनी आत्म कथा में एक स्थान पर कहा है कि ,एक तरह से  हमारे एक दादा जी की  उंगली पकड़ कर,"श्री हनुमान जी"  ने उन्हें - चारों धाम में से प्रमुख -" श्री जगन्नाथ पूरी धाम" [गंगा सागर]" तक  पहुँचाया तथा यात्रा के पूर्व दादाजी के गाँव में ही "विप्र" रूप में   की हुई अपनी भविष्यवाणी को भी सच करवा दिया था !

विप्र रूपधारी श्री हनुमान जी के कथनानुसार ही उस पवित्र देवालय के प्रांगण में "त्रिमूर्ति" के सन्मुख  हमारे दादा जी ने ,अपने पार्थिव शरीर का परित्याग  किया ! आप कुछ भी समझें इसे , हमारे परिवार के तथा गांव के आसपास के अधिकतर लोग इसे प्रत्यक्ष श्री  श्री हनुमान -दर्शन का ही नाम देते हैं !

ये तो है दर्शनाभिलाषी भक्तों की सफलता का एक उदाहरण !

दूसरी ओर हमारी अम्मा ने अपने अच्छे दिनो में ,परिवार के अधिकाधिक  बुजुर्गों को उनकी "चारों धाम" की यात्रा पर जाने में सहयोग दिया परन्तु वह स्वयं अपने जीवन में एक भी , जी हाँ, एक भी "धाम" की यात्रा नहीं कर पायीं ! हमारी अम्मा  ने "धाम यात्राओं" से कहीं अधिक महत्व दिया ,"प्रेम भक्ति" वाले "धर्मपथ" पर चल कर "परहित-परसेवा" रूपी धर्माचरण को !

वह दरिद्रों में "नारायण" का दर्शन करतीं थीं ! अम्मा , देवमन्दिरों तक , खासकर इस लिए पैदल जातीं थीं कि मार्ग में फुटपाथों पर झोली फैलाये बैठे दरिद्रियों की सेवा कर सकें और घाट पर स्थित अनाथलय के बच्चों को भोजन करा सकें ! उनकी यही उपासना थी , यही थी उनकी साधना !

प्रियजन , मैं अज्ञानी हूँ अस्तु नहीं  कह सकता कि हमारी अम्मा अपने उपरोक्त धर्म पथ पर चल कर ,अपने गंतव्य तक पहुंच पायीं या नहीं ! पर इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि उस "आनंदघन - परमानंद स्वरूप" -"प्यारे प्रभु"  का दर्शन लाभ  उन्हें उनके जीवन के अंतिम क्षणों तक होता रहा !  जिस पल उन्होंने शरीर त्यागा , उनका सारा परिवार उनके पलंग को घेरे , आनंद से कीर्तन कर रहा था -

"श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण बासुदेवा'

और भयंकर केंसर से पीड़ित हमारी अम्मा वैसे ही मुस्कुरा रहीं थीं , जैसे वह दो दिन पूर्व मुझे अपनी कुर्सी के हत्थे पर बिठाकर , मेरी ओर प्यार से निहारती हुई मुस्कुराईं थीं !.हम और आप अनुमान नहीं लगा सकते कि अंतिम क्षणों में वह कितनीं आनंदित थीं ! उनका
पार्थिव शरीर भी नवजात शिशु के समान कोमल था और उनके चेहरे पर जैसी  परम शांति की मुद्रा अंकित थी  वैसी जीवित प्राणियों में भी साधारणत:  दृष्टिगत नहीं होती  !

अम्मा ने यह प्रमाणित कर दिया कि उन्होंने देवालयों तथा "धामों" में विराजित देवों के स्थान पर अपने  हृदय  में विराजित  "श्री हरि" के दर्शन अंतिम क्षण तक किये !  हमारी अम्मा को अपने "प्यारेप्रभु" की खोज में दर दर नहीं भटकना पड़ा  !

प्रभु के लिए कैसी खोज ,कैसी तलाश ?  वह न तो हमसे दूर गया है , न वह कहीं खोया है !
प्रियजन ! खोज उसकी की जाती है ,जो कभी हमारी असावधानी के कारण मेले में हमसे बिछड कर भीड़ में कहीं खो गया है ! जरा सोच कर देखें कि हमारा प्रभु हमसे कहाँ और कब बिछडा ?  महा पुरुषों ने सत्य ही कहा है कि " प्यारे प्रभु ,अपने भक्तों का साथ कभी भी नहीं छोड़ते ! वह  आजीवन अपने प्रेमी भक्तों के अंग संग ,[निकटतम] बने रहते हैं ! उनके रोम रोम में रमे रहते हैं " लेकिन फिर भी हम  अक्सर यह शिकायत करते रहते हैं कि "वह" हमें  मिलता नहीं है !"

ऐसे ही खोये हुए अपने हरदिल अज़ीज़ "प्रभु" को ढूँढते हुए रामपरिवार के एक बुज़ुर्गवार - [ हमारी धर्मपत्नी कृष्णा जी  के नाना जी ] मरहूम जनाब मुंशी हुब्बलाल साहेब "राद" ने अपनी एक गजल में फरमाया है - और मैं उसे आपको गा कर सुना रहा हूँ :

उन्हें ढूँढूँ कहाँ जाकर मिलूं क्यूँ कर कहाँ उनसे 
जो मिल जाएँ तों कह दूँ अपनी सारी दास्ताँ उनसे 
Where should I go to look for HIM ?  I have to tell HIM my entire story 
समझता हूँ कि हाले दिल नहीं हरगिज़ निहां उनसे 
मगर जी चाहता है हाल सब कर दूँ बयां उनसे 
 I understand HE knows all about me yet I crave to narrate my whole story to  HIM   
परेशां जुस्तजू में हूँ ,कोई दे दे पता उनका 
मिलेंगे वो कहाँ मुझको ,मिलूं जाकर कहाँ उनसे
I M anxiously looking for HIM .Will someone help me with HIS address ? 


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रहा करती है उनकी याद में इक महवियत तारी 
कहा करता  हूँ दिल ही दिल में अपनी दास्ताँ उनसे 
HIS very thought fills me with immense pleasure and in my heart of heart  
I constantly keep narrating my tale to HIM .
and finally the poet says 
अगर अय "राद "तू दिल में उन्हें ढूंढे उन्हें देखे 
तो फिर हरगिज़ न पूछेगा मिलूं जा कर कहाँ उनसे
If Raad ,you peep into your own heart , you will find HIM enthroned there .
and then you will not need enquiring others about HIS where about  ?

[ मुंशी हुब्ब लाल साहेब "राद" का कलाम ]
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बड़ी परेशानियों से गुजर कर यह वीडियो तैयार हो पाया है , भोला जी की फेमिली के तींन
पुश्तों ने मिलकर इसे अंजाम दिया है ! बाबा दादी बेटा बेटी और पौत्र पौत्रियों की टीम की यह भेंट, जैसी भी है सुनियेगा ज़ुरूर !
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निवेदन : व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग: श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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4 टिप्‍पणियां:

रेखा ने कहा…

गजल तो काफी अच्छी थी ,आपकी आवाज में सुनने का आनंद ही अलग होता है ....फिर तीन -तीन पीढ़ियों की मेहनत भी इसके पीछे है ,बहुत अच्छा लगा .आभार

ZEAL ने कहा…

Awesome!... Enjoyed listening...Thanks.

Bhola-Krishna ने कहा…

धन्यवाद दिव्या बेटा ,"श्री राम कृपा आप पर सदा बनी रहे"!सदैव स्वस्थ व सानंद रहें !
शुभाकांक्षी - भोला-कृष्णा

Bhola-Krishna ने कहा…

रेखा बेटी , धन्यवाद ! हाँ गजल सचमुच बहुत भाव भरी है ! 'राद साहेब' -[नाना जी ] प्रेम-भक्ति पथ के अनुयायी अपने जमाने [१९ वी - २०वी शताब्दी ] में भिंड [एम् पी ] के नामी वकील व ख्यातिप्राप्त शायर थे ! उनके आशीर्वाद से ही मैं उनकी रचनाओं को गा सका ! वीडीओकरण दोषपूर्ण है फिर भी आप को पसंद आया पुनः धन्यवाद , आभार स्वीकारें !