सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

जागो सोने वालों जागो

ऐसे हैं हम ,ऐसे ही रहेंगे क्या ?


लगभग १० दिन हो गए , बहुत चाह कर भी मैं इस बीच कोई नया सन्देश नहीं लिख पाया !सच पूछो तो कुछ लिखना पढ़ना तो दूर ,मैंने पिछले कुछ दिनो में एक बार भी गाने बजाने के लिए अपने "केसियो कीबोर्ड" को "ओंन" तक नहीं किया और न "इलेक्ट्रोनिक तबला" और न तानपूरा ही छेडा ! ऐसा क्यूँ हो रहा है ?

आजकल हमारी मनोस्थिति कुछ कुछ वैसी ही हो रही है जैसी महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन की हो गयी थी !आपको याद होगा कि तब ,विषाद में डूबे अर्जुन ने अति कातर ह्रदय से अपने सारथी योगेश्वर श्री कृष्ण को सम्बोधित कर के कहा था :

गांडीव हाथों से गिरा , जलता समस्त शरीर है
कैसे रहूँ मैं खड़ा मेरा मन भ्रमित व अधीर है !!
[श्रीमद भागवत गीता : अ.- १ , श्लोक - ३०]

कायर बना मैं ,भुला बैठा, स्वयम सत्य स्वभाव को
मति ने भ्रमित होकर भुलाया धर्म के भी भाव को !!
अब आ गया हूँ शिष्य बन ,मुझको शरण में लीजिए
औ कृपा कर कल्याणकारी राह दिखला दीजिये !!
[श्रीमद भगवत गीता : अ.- २ , श्लोक - ७]

मेरी इस बदहाली का मूल कारण तो केवल "वह" ही जानते हैं जिन्हें मैं कभी "प्रियतम" कभी "मदारी" , कभी "खिलाडी", कभी "यंत्री"और कभी 'डिक्टेशन' देने वाला "बॉस" कह कर पुकारता हूँ ?

याद होगा आपको,अपनी आत्मकथा में,मैंने कहीं, कुछ ऐसा कहा है :

करता हूँ केवल उतना ही , जितना "मालिक" करवाता है ,
"रचता-गाता" हूँ गीत वही जो "वह" मुझसे लिखवाता है !
मेरी रचना मत कहो इसे ,सब "उनकी" कारस्तानी है ,
यह मेरी आत्म कहानी है !
"भोला"

अस्तु मेरी वर्तमान चुप्पी के कारण चिंतित न हों ! प्यारे प्रभु की कृपा से ,मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ , भली भांति खाता पीता हूँ, चलता फिरता हूँ , और लेटे लेटे ,सारे दिन क्या ? , देर रात तक "टेलीविजन" पर भारत के समाचार ,सीरियल्स और सोप देखता रहता हूँ !

खेद केवल इसका है कि मेरी यह पार्थिव काया ,आजकल कोई निजी,"शब्द-स्वर-बद्ध" रचना नहीं कर पा रही है और मैं इस प्रकार अपनी वह "ईषोपासना" नहीं कर पा रहा हूँ जिसकी पैरवी मैं अपने संदेशों में करता रहता हूँ !

(भैया याद् रखियेगा, कि कोई भी 'सन्देश' मेरा नहीं हैं ,सबही "उनके" हैं ,मैं उनका लिपिक मात्र हूँ ! जी हाँ मेरा यह सन्देश भी "वह" ही लिखवा रहे हैं )

अब आप ही कहें अपनी इस वर्तमान अकर्मण्यता के लिए मैं अपने उस प्रियतम ,

"करता पुरुख , निरभउ निरवैर , अकालमूरति , मात-पिता,
सकल-समग्रीधारी ,गरीबनिवाज ,सच्चे बादशाह ,
अखंड ज्योतिस्वरूप --- "

के अतिरिक्त और किसे दोषी ठहराऊँ और किससे फरियाद करूं अपने इस असामयिक कायारपने से उद्धार पाने के लिए ?

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हाँ तो , मैं आश्चर्य चकित हूँ कि अपने जीवन के, अब तक के ८२ वर्षों में यथासंभव राजनीति और राजनीतिज्ञों से कोसों दूर रहने वाला मैं ,क्यूँ और कैसे ,अपने १८ फरवरी वाले सन्देश में ,लीक बदल कर ,आध्यात्मिक अनुभूतियों के स्थान पर ,देशवासियों से न जाने क्या क्या कह गया ! अंततोगत्वा मैंने उनसे चुनावों में 'वोट' डालने की अपील भी करदी !

अनायास ही , मेरे "बॉस" ने मुझे उस प्रातः ऐसा "डिक्टेशन" क्यूँ दिया था ,इसका कारण तो केवल "वह"ही बता पाएंगे ! पर इसमें कोई शक नहीं कि कोई न कोई गूढ़ रहस्य तो होगा ही , जिससे अवगत होकर "उन्होंने" वह सब मुझे डिक्टेट किया !

प्रियजन मुझे तो अब पक्का विश्वास हो गया है कि उन "ऊपरवाले", दयानिधान , परम पिता परमेश्वर को भी अब भारत वासियों पर दया आ रही है ! उन्हें अब भारतीयों पर पड़े भयंकर संकट का ज्ञान हो गया है और अब "दीनानाथ" के मन में भी भारतीयों के भविष्य के विषय में विशेष चिंता होने लगी है !

वह ,१८ फरवरी वाला सन्देश डिक्टेट कर देने के बाद मेरे "बॉस" ने मुझे "रेस्ट् एंड रिक्रीएशन" के लिये "कम्पलसरी फरलो" पर भेज दिया ?

प्रबुद्ध ब्लोगर बिरादरी ने मेरी [?] उस अनगरल वार्ता [?]पर कोई कमेन्ट नहीं दिया ! मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्यूंकि मैं भली भांति जानता हूँ कि बिरादरी का एक एक जागरूक विद्वान स्वदेश की वर्तमान दुर्गति के वास्तविक कारणों से अवगत है ,वह यह भी जानता है कि कौन "रिस्पोंसिबिल" है उनकी इस दुर्गति के लिए ! मुझे विश्वास है कि ,उन्होंने दोषियों को उचित सजा देने का मन बहुत पहले से ही बना लिया होगा और आज नहीं तो २०१४ तक तो वह अवश्य ही सम्पूर्ण देश को ऐसे बेईमान शाशकों से मुक्त करा लेंगे !

हाँ , इस विषय पर एक टिप्पडी मुझे एक अज्ञात व्यक्ति के "ई मेल" के जरिये , भारत से प्राप्त हुई ! प्रियजन ,उनके समग्र पत्राचार से मुझे ऐसा लगा जैसे भारत में "करप्शन" नामक महामारी का कोई अता पता ही नहीं है !

यह सज्जन अच्छे खासे अंग्रेजी पढे लिखे ,भारत की जमीनी स्थिति से पूरी तरह वाकिफ जान पड़ते हैं ! कदाचित वह किसी मल्टीनेशनल कम्पनी अथवा किसी प्रगतिशील भारतीय "बिजिनेस हाउस" से सम्बन्धित हैं ! जो भी हों , उनके विचार अति अनूठे हैं !

उनके समग्र पत्राचार से मुझे ऐसा लगा जैसे भारत में "करप्शन" नामक महामारी का कोई अता पता ही नहीं है ! उनकी दृष्टि में भारतीय संकट का मूल कारण करप्शन नहीं है !उन्हें लगभग डेढ़ लाख करोड का २ जी स्पेक्ट्रम घुटाला और हजारों करोड का राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का घुटाला नजर नहीं आ रहा है ! इन्हें नगण्य बता कर वह चिंता कर रहे हैं , इसकी कि भारतीय नागरिक ,"पेपर नेपकिन' अथवा हेंड कर्चीफ़ " इस्तेमाल नहीं करते और बेख़ौफ़ निश्चिन्तता से , बेबाक सड़क के किनारे अथवा ,बड़ी बड़ी इमारतों की सीढियों में थूक देते हैं ! इसके अतिरिक्त उनका कहना है कि अधिकतर भारतीय "आयकर" चोर हैं ! उनका विश्वास है कि यदि सभी भारतीय अपने "कर" यथासमय अदा करते रहें तो अपना देश आर्थिक संकट से उबर जायेगा !

हमे ऎसी समझ वाले मनीशियों को उचित उत्तर देना है ! नहीं तो हम जैसे हैं वैसे ही बने रहेंगे सदा सदा के लिए !

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निवेदक: व्ही. एन. श्रीवास्तव "भोला"
सहयोग : श्रीमती कृष्णा भोला श्रीवास्तव
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3 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

हमेशा की भांति रोचक-सार्थक-आनंददायक .अंत में दी गयी कीमती सलाह भी हमारे लिए प्रेरणादायक है .आभार

vandana gupta ने कहा…

कभी कभी ऐसा हाल होता है सबका कुछ नही करते हम शायद इसमे भी उसकी ही कोई रज़ा होती है।

Bhola-Krishna ने कहा…

टिप्पडी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और हार्दिक आभार शिखा बेटी ! इधर कुछ दिनों से ,शायद बृद्धावस्था जनित शिथिलताओं के कारण लिखने पढ़ने , गाने बजाने में अरुचि सी हो गयी है ! ऐसा लगता है कि , कुछ दिनों के '"फरलो" पर भेज दिया है मेरे ऊपर वाले "मालिक" ने मुझे ! आत्म कथा के अनेकों प्रसंग अधूरे रह गए हैं ! न् जाने क्या है "उनके" मन में ! न् जाने कब आगे की लिखवायेंगे ! "राम" कि बातें "राम" ही जानें !